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    श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में तय ‘प्रतिनिधि वाद’ पर असंतोष, 22 अगस्त को तय हो सकते हैं वाद बिंदु

    Updated: Fri, 18 Jul 2025 06:22 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह मस्जिद स्वामित्व विवाद में सुनवाई की जा रही है। इसी क्रम में शुक्रवार को वाद बिंदु तय करने को लेकर बहस हुई। इस पर दोनों ने अपनी-अपनी दलील पेश की है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 22 अगस्त को की जाएगी।

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    श्री कृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह मस्जिद स्वामित्व विवाद मामले में दोनों पक्षों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दलीलें पेश कीं।

    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि - शाही ईदगाह स्वामित्व संबंधी विवाद में सीपीसी के आदेश 1 नियम 8 के अंतर्गत प्रतिनिधि क्षमता के लिए दायर वाद संख्या के 17 के वादी का आवेदन स्वीकार कर लिया है। अब वाद संख्या 17 को ‘प्रतिनिधि वाद’ माना जाएगा और पहले उसकी सुनवाई कर निर्णय लिया जाएगा। हालांकि मंदिर पक्ष से जुड़े वादकारियों में इससे असंतोष है। आदेश पारित करते हुए न्यायालय ने कहा कि वादी इस संबंध में आवश्यक संशोधन कर सकता है। न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 22 अगस्त की तारीख तय की है। इसमें वाद बिंदु भी तय किए जा सकते हैं।

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    ‘प्रतिनिधि वाद’ संबंधी आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने शुक्रवार को पारित किया। इस आदेश के बाद मस्जिद पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता तस्लीमा नसीम ने दलील दी कि अन्य वादों की कार्यवाही पर रोक लगा दी जाए। अब वाद संख्या 17 में जो भी आदेश पारित किया जाए वह अन्य वादों पर भी बाध्यकारी हो।

    मंदिर पक्ष में असंतोष इस बात से है कि जिन 15 सिविल वादों को समेकित कर सुनवाई की जा रही थी, उनमें से किसी को ‘प्रतिनिधि वाद’ नहीं स्वीकार किया गया। वाद संख्या सात (श्री भगवान श्रीकृष्ण लला विराजमान और चार अन्य) में अधिवक्ता, अजय प्रताप सिहं व अनिल कुमार सिंह ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण जादौन क्षत्रिय थे और हम उनके वंशज हैं। इसलिए हमारे वाद को ‘प्रतिनिधि वाद’ बनाना चाहिए।

    वाद 13 में पक्षकार, अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह का कहना था कि वह मथुरा के निवासी और भगवान के वशंज हैं। सबसे पहले वाद दाखिल किया था। इसलिए उनके वाद को प्रतिनिधि वाद बनाया जाए। अजय सिंह ने ऑर्डर पढ़ने के बाद इसे चैलेंज करने की बात कही।

    श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के अधिवक्ता हरेराम त्रिपाठी ने वाद बिंदु तय करने पर जोर दिया। वाद संख्या तीन में कोर्ट ने यह कहते हुए कोई आदेश देने से मना कर दिया कि सर्वोच्च न्यायलय ने किसी भी प्रकार के सर्वे पर रोक लगाई है। इसमें वादी अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने आगरा स्थित जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे उन विग्रह की जांच के लिए एडवोकेट कमीशन गठित करने की मांग की है, जिसके लिए दावा है कि इन्हें जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त कर वहां ले जाया गया है।

    अक्टूबर 2023 से चल रही सुनवाई

    शाही ईदगाह मस्जिद को अतिक्रमण बताते हुए मंदिर पक्ष ने ज़मीन पर कब्जा पाने, जीर्णोद्धार और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए कुल 18 मुकदमे दायर किए हैं। हाई कोर्ट में 18 अक्टूबर 2023 से यह प्रकरण सुना जा रहा है। वाद संख्या तीन,10 व 17 को छोड़ शेष समेकित किए गए थे। पहली अगस्त 2024 को न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकलपीठ ने मस्जिद पक्ष की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था जिनमें पोषणीयता को चुनौती दी गई थी।

    कोर्ट ने माना था कि स्वामित्व संबंधी मुकदमे परिसीमा अधिनियम (लिमिटेशन एक्ट) वक्फ अधिनियम और उपासना स्थल अधिनियम 1991 से वर्जित नहीं हैं। इसके बाद 23 अक्टूबर, 2024 को कोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद समिति के उस आवेदन को भी खारिज कर दिया था जिसमें स्वामित्व संबंधी सभी मुकदमों को एकीकृत करने वाले 11 जनवरी, 2024 के आदेश को वापस लेने की मांग थी। छह नवंबर 2024 से इस प्रकरण की सुनवाई न्यायमूर्ति राम मनोहरनारायण मिश्रा कर रहे हैं।