Allahabad High Court: दाखिले में देरी-माफी बिना अपील पर विचार व निर्णय अनुचित- हाई कोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपील में देरी होने पर जब तक देरी को माफ नहीं किया जाता तब तक अपील कानूनी रूप से मान्य नहीं होती। न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी की एकल पीठ ने वाराणसी के एक मामले में यह फैसला सुनाया जिसमें अपर आयुक्त के एक आदेश को रद्द कर दिया गया। मामला गाजीपुर में जमीन के सीमांकन से जुड़ा था।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जब तक अपील दाखिल करने में हुए विलंब को क्षमा नहीं किया जाता, अपील कानूनी रूप से अस्तित्व में नहीं आती है और न्यायालय के पास इसे गुण-दोष के आधार पर सुनने या निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी की एकल पीठ ने इस टिप्पणी के साथ वाराणसी के दीनानाथ सिंह व अन्य की याचिका स्वीकार कर ली है तथा अपर आयुक्त, न्यायिक (द्वितीय), वाराणसी मंडल का वह आदेश रद कर दिया है जिसे उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 24(4) के अंतर्गत 17 मई 2025 को पारित किया गया है।
मामला गाजीपुर में जमीन सीमांकन से जुड़ा है। एकल पीठ ने अपीलीय न्यायालय को निर्देशित किया है वह उचित निर्णय ले। याची के अधिवक्ता निखिल कुमार ने कहा कि आदेश इसलिए अवैध है क्योंकि अपर आयुक्त ने समय-सीमा समाप्त होने के बाद अपील को अनुमति देकर कानूनी मुद्दे की अनदेखी की है।
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 24(4) स्पष्ट रूप से अपील दायर करने के लिए 30 दिनों की समय-सीमा निर्धारित करती है और वर्तमान मामले में प्रतिवादी ने आठ जून 2022 के आदेश के विरुद्ध 12 अप्रैल 2023 को अपील दायर की अर्थात 10 महीने से अधिक देर हुई। याची की आपत्ति नजरअंदाज कर निर्णय दिया गया।
मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि याची के पिता ने डिप्टी कलेक्टर (प्रतिवादी संख्या 4) के समक्ष पहली सितंबर 2017 को उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 20/24 के अंतर्गत आवेदन दायर कर आराजी संख्या 950, मौजा खजूरगांव, परगना पचोतर, तहसील कासिमाबाद, जिला गाजीपुर में सीमांकन का अनुरोध किया। डिप्टी कलेक्टर ने राजस्व निरीक्षक को भूमि का निरीक्षण और माप का निर्देश देते हुए रिपोर्ट मांगी।
प्रतिवादी सुरेश सिंह ने इस आदेश एकपक्षीय बताते हुए रिकाल एप्लीकेशन दी। इसे डिप्टी कलेक्टर ने 11 दिसंबर 2018 को खारिज कर दिया। साथ ही राजस्व निरीक्षक की 12 जून 2018 की रिपोर्ट के आधार पर आठ जून 2022 को आदेश दिया कि तहसीलदार भूमि का सीमांकन कराएं।
तहसीलदार-लेखपाल ने 26 मार्च को 2023 को यह आदेश निष्पादित कराया। इसे सुरेश के भाई उपेंद्रनाथ सिंह ने चुनौती दी। अपर आयुक्त ने उसकी अपील पर नोटिस जारी कर निचली अदालत का रिकॉर्ड तलब कर लिया। उपेंद्र ने अंतरिम राहत की मांग करते हुए अपर आयुक्त के समक्ष आवेदन प्रस्तुत अन्य बातों के साथ-साथ पक्षकारों को विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश देने का अनुरोध किया।
अपर आयुक्त ने पहली जून 2023 के आदेश से ‘यथास्थिति’ बनाए रखने का निर्देश देते हुए अंतरिम आदेश पारित किया। याची ने इसके विरुद्ध इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि याची अंतरिम आदेश रद करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करता है तो वह उस पर 12 सप्ताह के भीतर विचार कर छह महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेगा, बशर्ते कोई अन्य कानूनी बाधा न हो।
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