Ganesh Mahotsav 2025 : प्रयागराज के गणेश मंदिर, प्राचीनता व महत्व के कारण खिंचे चले आते हैं श्रद्धालु, जुड़ी हैं विशेष बातें
प्रयागराज में गणेश उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है। विघ्नहर्ता के मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहां के गणेश मंदिरों की प्राचीनता और महत्व के कारण दूर-दूर से श्रद्धालुओं का यहां पूजन-अर्चन के लिए आना लगा रहता है। गणेश उत्सव पर जगह-जगह पंडालों में श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना की जाती है।
अमरदीप भट्ट, प्रयागराज। गणेश महोत्सव 27 अगस्त से शुरू हो जाएगा। ऐसे में महत्वपूर्ण हो जाते हैं प्रयागराज नगर के ऐसे गणेश मंदिर, जिनके प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा है। गंगा नदी के तट पर ओंकार आदि गणेश मंदिर तो ऐसा है जिसका जीर्णोद्धार 1585 में राजा टोडरमल ने कराया था। गणेश मंदिरों की प्राचीनता और इनका महत्व भी कुछ अलग ही है।
विघ्नहर्ता' का निराला दरबार
एक ऐसा गणेश मंदिर, जहां वर्ष भर होते हैं कार्यक्रम
लोकमान्य तिलक महाराष्ट्र मंडल के अलोपीबाग स्थित मंदिर में प्रवेश करते ही होते हैं भगवान गणेश के दर्शन। लगभग तीन दशक से इस मंदिर में गणेशोत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसमें संगमरमर से बनी गणेश प्रतिमा की स्थापना एएच व्हीलर एंड कंपनी ने कराई थी जबकि मंदिर में व्यवस्थाओं का संचालन 1977 में गठित लोकमान्य तिलक ट्रस्ट के द्वारा होता है।
भक्तों पर बरसी है श्रीगणेश की कृपा
लोकमान्य तिलक महाराष्ट्र मंडल के अध्यक्ष प्राणेश देशपांडे कहते हैं कि साल भर इस मंदिर में विविध आयोजन होते रहते हैं। प्रत्येक माह गणेश चतुर्थी पर गणेश जी का अभिषेक किया जाता है लेकिन गणेशोत्सव मनाने में पूरी कमेटी की तन्मयता और अन्य श्रद्धालुओं का उत्साह आयोजन को खास बना देता है। किसी भी धार्मिक आयोजन में प्रथम पूज्य गणेश होते हैं और मंदिर में गणेश जी का साल के 365 दिन विराजना अपने आप में प्रभु की कृपा है। इस मंदिर में सुगम संगीत, प्रतियोगिता, जादू के शो, नाटक के मंचन, सुंदरकांड पाठ और भोग प्रसाद के लिए प्रतीक्षा सूची तक बनना इस बात का द्योतक है कि यहां के गणेश की कृपा ढेरों लोगों पर बरसी है।
दाहिनी ओर सूंड़, 213 वर्ष पुराना मंदिर
बादशाही मंडी में सिद्धि विनायक बड़े गणेश मंदिर की स्थापना हुए 213 वर्ष हो गए हैं। यहां मिट्टी से बनी प्राचीन प्रतिमा में गणेश जी की मुद्रा दाहिनी ओर सूंड़ की है। इसे अत्यंत सुखदायी और कल्याणकारी माना जाता है। मंदिर के पुजारी श्याम शुक्ला कहते हैं कि दाहिनी ओर सूंड़ वाले गणेश जी की प्रतिमा दुर्लभ है। बताया कि परबाबा बलदेव प्रसाद शुक्ला भी जीवन भर इस मंदिर में व्यवस्थाओं का काम देखते रहे। इसमें शंकर भगवान की प्रतिमा भी है।
जुटती है भक्तों की भीड़
प्राचीन और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस मंदिर में गणेशोत्सव मनाने के लिए व्यापक इंतजाम होते हैं। आरती पूजन और मंदिर में साज सज्जा देखने के लिए सुबह-शाम बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है। श्याम शुक्ला यह भी बताते हैं कि गणेश जी का श्रृंगार फूलों से और आकर्षक वस्त्रों से किया जाता है। इसमें शहर के अनेक मुहल्लों से श्रद्धालु आते हैं।
त्रिदेव के संयुक्त रूप हैं ओंकार आदि गणेश
तीर्थराज प्रयाग को सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा की यज्ञस्थली के रूप में मान्यता पुराणों में है। धरती पर ब्रह्मा जी ने यहीं दारागंज में किया था। पौराणिक मान्यता यह भी है कि सर्वप्रथम इसी क्षेत्र में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त रूप ओंकार आदि गणेश विराजमान हुए थे। इस मंदिर में प्राचीन मूर्ति की स्थापना के बारे में कोई ठीक-ठीक तो नहीं बता पाता लेकिन यह जरूर है कि इसका जीर्णोद्धार 1585 में राजा टोडरमल ने कराया था।
गंगा तट पर स्थित है मंदिर
यह मंदिर में गंगा नदी के तट पर और राजा टोडरमल के द्वारा बनवाए गए मोतीमहल परिसर में पीछे की ओर स्थित है। गणेशोत्सव के अवसर पर इस मंदिर की छटा निराली हो जाती है। जिस खूबसूरती से मंदिर में सजावट की जाती है इसे देखने के लिए दारागंज ही नहीं, आसपास के क्षेत्रों से भी लोग आते हैं और गणेश पूजन में शामिल होते हैं।
...जब आते हैं बप्पा तो खुशियों की बहार
'गणपति बप्पा मोरया' की गूंज, जन-मन ही नहीं बल्कि वातावरण में भी शक्ति का भरपूर संचार करती है। गणेशोत्सव प्रयागराज में श्रद्धा की लहरों की भांति मनाया जाता है। इसका चित्रण अभी से दिखने लगा है। प्रमुख मार्गों पर गणेश जी की आकर्षक प्रतिमाएं, घुमंतू समुदाय के द्वारा इनके निर्माण और बिक्री से लेकर बड़े-बड़े कारीगरों के द्वारा मिट्टी को साक्षात गणेश का स्वरूप देने के लिए रंग और ब्रश चलने लगे हैं। गणेश जी अब यहां घर-घर में विराजने लगे हैं और जब कण-कण में इनका वास हो जाता है तो गणपति बप्पा मोरया, देवा हो देवा गणपति देवा, देवा श्रीगणेश-देवा श्री गणेशा, जैसे गीतों पर पूजा पंडालों में खुशियों की बहार आ जाती है।
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