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    इविवि की पूर्व शोधार्थी विकसित करेंगी गर्मी सहने और कम पानी में तैयार होने वाली फसलें, मिली 1.44 करोड़ की फेलोशिप

    Updated: Tue, 23 Dec 2025 07:48 PM (IST)

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व शोधार्थी गर्मी सहने वाली फसलें विकसित करेंगी। उन्हें इसके लिए फेलोशिप मिली है। उनका शोध कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर् ...और पढ़ें

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    गर्मी सहने और कम पानी में तैयार होने वाली फसलें विकसित करेंगी इविवि की पूर्व शोधार्थी।

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। दुनियाभर के विज्ञानी ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते तापमान के बीच पौधों की सहनशीलता को समझने में जुटे हैं। इसी दिशा में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व शोधार्थी डॉ. नमिरा आरिफ को जलवायु परिवर्तन से कम प्रभावित फसलों का विकास के लिए स्लोवाक गणराज्य की प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पोस्ट-डॉक्टोरल फेलोशिप प्रदान की गई है।

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    अध्ययन में यह समझने का प्रयास किया जाएगा कि तेज धूप की स्थिति में उत्पन्न होने वाली फोटो-इनहिबिशन प्रक्रिया पौधों के भोजन निर्माण तंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है।

    साथ ही यह भी विश्लेषण किया जाएगा कि पौधे अपने भीतर मौजूद किन जैविक संकेतों और फोटोप्रोटेक्शन तंत्र के माध्यम से इस प्रकार के पर्यावरणीय तनाव से स्वयं को कैसे सुरक्षित रखते हैं।

    शोध से यह पता चलेगा कि तेज धूप और बढ़ते तापमान में भी कौन-से जैविक तंत्र पौधों को सुरक्षित रखते हैं। इन्हीं तंत्रों के आधार पर भविष्य में ऐसी फसलें विकसित की जा सकेंगी, जो अधिक गर्मी सहन कर सकें और कम पानी में भी जीवित रह सकें।

    शोध बताएगा कि पौधों की ऊर्जा प्रणाली कैसे कमजोर होती है और पौधे किस तरह अपने भीतर सेल्फ-डिफेंस सिस्टम सक्रिय करते हैं। इस फेलोशिप के तहत डॉ. नमिरा को लगभग एक करोड़ 44 लाख रुपये की शोध सहायता राशि प्राप्त होगी।

    डॉ. नमिरा के अनुसार शोध के माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयास होगा कि बदलते जलवायु परिदृश्य में पौधों की सहनशीलता बढ़ाने के लिए कौन-कौन से आंतरिक जैविक तंत्र सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

    यह भविष्य में जलवायु परिवर्तन के अनुरूप अधिक सहनशील फसलों के विकास और कृषि सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। डॉ. नमिरा आरिफ ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय स्थित वनस्पति विभाग में प्रोफेसर डीके चौहान के मार्गदर्शन में अपना शोध कार्य पूर्ण किया है।

    अपने शोध के दौरान उन्होंने पर्यावरणीय परिवर्तनों और प्रदूषण की बढ़ती चुनौती के संदर्भ में पौधों की एंटीआक्सीडेंट क्षमता, संरचनात्मक अनुकूलन तथा फ्लेवोनायड्स की भूमिका का गहन अध्ययन किया।