'मर क्यों नहीं जाते...', पारिवारिक झगड़े में ये कहने से खुदकुशी के लिए उकसाने का अपराध नहीं बनता- हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पति-पत्नी के झगड़े दहेज उत्पीड़न केस प्रताड़ना जैसे आरोप आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रमाण नहीं हैं। कोर्ट ने औरैया निवासी रचना देवी की याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया। रचना देवी पर पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था लेकिन कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में स्पष्ट साक्ष्य होना जरूरी है केवल पारिवारिक कलह नहीं।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पति-पत्नी के रोजमर्रा के झगड़े, दहेज उत्पीड़न का केस, प्रताड़ित व अपमानित करने व झगड़े में यह मर क्यों नहीं जाता... कहने से यह नहीं कहा जा सकता कि पत्नी ने पति को खुदकुशी के लिए उकसाया है।
कोर्ट ने कहा प्रताड़ित व अपमानित करने का आरोप सामान्य प्रकृति का है। सत्र अदालत ने अपराध से मुक्त करने की अर्जी खारिज कर गलती की है। यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन ने पति को खुदकुशी के लिए उकसाने की आरोपित औरैया निवासी रचना देवी व दो अन्य की पुनरीक्षण याचिका मंजूर करते हुए दिया।
याची पत्नी व उसके परिवार के खिलाफ 19 अक्टूबर 23 को औरैया के डिबियापुर थाने में एफआइआर दर्ज की गई जिसमें उनपर शिकायतकर्ता के बेटे को खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और अदालत ने संज्ञान भी ले लिया।
आरोपित पत्नी ने अदालत में अपराध से उन्मोचित (मुक्त) करने की अर्जी दी। कहा कि खुदकुशी करने के लिए उकसाने का उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है। अदालत ने अर्जी खारिज कर दी, जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
हाई कोर्ट ने कहा रोज पारिवारिक झगड़े होना, मर क्यों नहीं जाता कहना, प्रताड़ित व अपमानित करना, दहेज उत्पीड़न का केस करना इनसे यह साफ नहीं कि आरोपित ने पति को खुदकुशी के लिए उत्प्रेरित किया है। कोर्ट ने तमाम फैसलों का जिक्र किया और कहा कि खुदकुशी के लिए उकसाने का स्पष्ट साक्ष्य होना चाहिए।
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