इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्रिकेटर यश दयाल की गिरफ्तारी पर लगाई रोक, गाजियाबाद में दर्ज है मुकदमा
क्रिकेटर यश दयाल पर गाजियाबाद के इंदिरापुरम थाने में यौन उत्पीड़न के आरोप में एक महिला ने एफआइआर दर्ज कराई थी। इसके बाद यश दयाल ने खुद को फंसाए जाने का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस मामले में हाई कोर्ट ने उन्हें राहत दी है।

प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्रिकेटर यश दयाल की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है और यौन शोषण का आरोप लगाने वाली पीड़िता तथा राज्य सरकार को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति अनिल कुमार (दशम) की खंडपीठ ने यशदयाल की याचिका पर दिया है।
क्रिकेटर के खिलाफ पीड़िता ने गाजियाबाद के इंदिरापुरम थाने में एफआइआर दर्ज कर शादी का झूठा वायदा कर लगातार पांच वर्ष तक शारीरिक शोषण करने का आरोप लगाया है। याचिका में छह जुलाई को दर्ज कराई गई एफआइआर रद करने की मांग की गई है।
याची की तरफ से बहस की गई कि किसी व्यक्ति को बीएनएस की धारा 69 के तहत अपराध का दोषी केवल तभी माना जा सकता है, जब यह स्थापित हो जाए कि उसने किसी महिला से शादी करने का झूठा वायदा किसी इरादे को पूरा करने के लिए किया था।
कहा गया कि एफआइआर के अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता पिछले पांच वर्षों से याची के साथ शारीरिक संबंध में थी। उसने बहुत लंबे समय तक चुप्पी साधे रखी और जैसे ही याची का चयन भारतीय क्रिकेट टीम में हुआ, यह प्राथमिकी गलत इरादों से मनमानी मांगों को पूरा करने के लिए दर्ज करा दी गई। याची ने संबंध के पांच वर्षों के दौरान शिकायतकर्ता को वित्तीय सहायता प्रदान की थी।
वित्तीय लेनदेन को कोर्ट के समक्ष अवलोकन के लिए प्रस्तुत किया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल स्वरूप चतुर्वेदी ने कहा कि याची ने शिकायतकर्ता से कभी भी कोई झूठा वादा नहीं किया था। इसके अलावा एफआइआर में लगाए गए आरोप यह नहीं बताते हैं कि याची ने शिकायतकर्ता के साथ छलपूर्ण साधनों से यौन संबंध बनाए हैं।
धारा 69 की व्याख्या छलपूर्ण साधनों को परिभाषित करते हुए यह बताती है कि इसमें रोजगार या पदोन्नति का झूठा वादा, प्रेरणा या विवाह के बाद पहचान को दबाने के लिए किसी भी अन्य बात को शामिल किया जाएगा। सरकारी वकील ने कहा, ‘शिकायतकर्ता ने एफआइआर में बताया है कि याची उसका शारीरिक रूप से शोषण कर रहा था और पिछले पांच वर्षों से शारीरिक संबंध बना रहा था।
याची ने शिकायतकर्ता को विवाह के बहाने परिवार से भी मिलवाया था।’ कोर्ट ने कहा, एफआइआर के अवलोकन से स्पष्ट है कि पक्षकारों के बीच संबंध पांच वर्षों तक जारी रहा। इस स्तर पर यह निर्धारित करना मुश्किल है कि विवाह का कोई वादा था? यदि कोई ऐसा वादा था तो यह शुरू से ही यौन सहमति प्राप्त करने के इरादे से झूठा था। कोर्ट ने मामले को विचारणीय माना।
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