'विवाह संबंध न चल पाना तलाक का आधार नहीं', इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- प्राइवेट पलों पर फैसला नहीं दे सकतीं अदालतें
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि विवाह संबंध न चल पाना विवाह भंग का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने परिवार अदालत फिरोजाबाद द्वारा तलाक मंजूर करने के आदेश को रद्द कर दिया है। साथ ही बेवजह मुकदमेबाजी के लिए विपक्षी (पति) पर 50 हजार रुपये हर्जाना लगाया है। कहा कि अदालतें गोपनीय क्षणों पर कोई फैसला नहीं दे सकतीं।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि विवाह संबंध नहीं चल पाना विवाह भंग का आधार नहीं हो सकता। यह टिप्पणी करते हुए परिवार अदालत फिरोजाबाद द्वारा तलाक मंजूर करने का आदेश हाई कोर्ट ने रद कर दिया है। साथ ही बेवजह मुकदमेबाजी के लिए विपक्षी (पति) पर 50 हजार रुपये हर्जाना लगाया है।
कहा है कि विपक्षी ने परिवार अदाल त फिरोजाबाद के आदेश के अनुपालन में ढाई लाख रुपये जमा कराए हैं। हर्जाना राशि उससे कटौती कर ली जाए। यदि गुजारा भत्ते का बकाया न हो तो शेष राशि विपक्षी को वापस की जाए। कोर्ट ने यह भी कहा जब तक अत्यधिक क्रूरता न हो अदालतें दंपती के अंतरंग क्षणों की जांच नहीं कर सकतीं।
'गोपनीय क्षणों पर कोई फैसला नहीं'
गोपनीय क्षणों पर कोई फैसला नहीं दे सकतीं। यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने दिया है। वर्ष 1999 में शादी के बाद युगल नौ महीने साथ रहे। कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ। फिर अलग हो गए। पति ने तलाक के लिए अर्जी दी। पारिवारिक अदालत ने 2015 में पति के पक्ष में फैसला सुनाया। इसे वर्ष 2015 में हाई कोर्ट में अपील में चुनौती दी गई।
पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि विवाह विच्छेद के लिए पति की याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी क्योंकि यह विवाह की तारीख से एक वर्ष के भीतर दायर की गई थी। हाई कोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी के एक साल के भीतर तलाक की याचिका की अनुमति नहीं है।
कोर्ट ने कहा, वास्तव में प्रविधान को पूरी तरह पढ़ने पर यह पता चलता है कि हिंदू विवाह को भंग करने की कार्रवाई का कारण विवाह के पहले वर्ष के भीतर किसी भी पक्ष के लिए उत्पन्न नहीं हो सकता है, सिवाय ‘अत्यधिक कठिनाई’ या ‘अत्यधिक भ्रष्टता’ से जुड़े मामलों को छोड़कर। शादी के एक साल के भीतर याचिका दायर करने की अनुमति मांगने के लिए विशिष्ट आवेदन दायर करना होगा। तलाक के मामले में एक साल बाद फैसला देने से कानूनी बाधा अप्रासंगिक नहीं हो जाती।
खंडपीठ ने पाया है कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की आपत्ति पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला है। खंडपीठ ने कहा, पारिवारिक अदालत ने कानूनी कार्यवाही के दौरान पत्नी के आचरण का उल्लेख किया था और इस बात पर भरोसा किया था कि उसने पति के खिलाफ 3-4 मामले दायर कराए थे। कोर्ट ने कहा, तलाक देने का कोई आधार नहीं है। पत्नी को अनावश्यक मुकदमे में घसीटा गया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।