'बिना कानून किसी को भू-माफिया घोषित करना गलत', इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब किया तलब
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के व्यक्तियों को भू-माफिया घोषित करने पर सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। साथ ही हाई कोर्ट ने अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार की योजना पर भी असंतोष जताया है। कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता के हलफनामा को भी वापस कर दिया है।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है बिना किसी कानून किसी को भू-माफिया घोषित करना गलत है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याची को भू-माफिया सूची में शामिल करने पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाबी हलफनामा मांगा है। प्रकरण में अगली सुनवाई छह मार्च को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति डोनादी रमेश की खंडपीठ ने आगरा निवासी बनवारी लाल की याचिका पर दिया है। याची को भूमि हड़पने वालों की सूची में शामिल किया गया है। इसे चुनौती दी गई है।
याची ने अधिकारियों को भी लिखा था पत्र
याची का कहना है कि उनके विरुद्ध स्कूल की भूमि पर अतिक्रमण करने का एकमात्र आरोप था। इसमें भी कोई तथ्य नहीं पाया गया। जिला मजिस्ट्रेट, आगरा के कार्यालय ने भी उसका नाम भूमि हड़पने वालों की सूची से हटाने के लिए अधिकारियों को लिखा था। इसके बावजूद भू-माफिया की सूची से नाम नहीं हटाया गया। याची की तरफ से दलील दी गई कि किसी व्यक्ति को भू-माफिया घोषित करने से उसकी प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कहा गया कि राज्य प्राधिकारियों द्वारा किसी व्यक्ति को भूमि हड़पने वाला घोषित करना और इस प्रकार आम जनता के बीच उसकी प्रतिष्ठा व गरिमा का उपहास उड़ाना पूरी तरह असंवैधानिक है। जिस सरकारी आदेश का सहारा लिया गया है, उसमें केवल भूमि हड़पने वालों की ओर से किए गए अतिक्रमण को हटाने के लिए कार्यबल बनाने की बात की गई है। ऐसा आदेश किसी व्यक्ति को भूमि हड़पने वाला घोषित करने का आधार नहीं बन सकता है।
अवैध निर्माण रोकने के लिए सरकार की योजना पर हाई कोर्ट असंतुष्ट
वहीं इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने रिहायशी, वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्रों में अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने और इनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर तैयार की गई राज्य सरकार की योजना पर असंतुष्टि जताई है।
कोर्ट ने आवास एवं शहरी नियोजन विभाग के प्रमुख सचिव की ओर से प्रस्तुत व्यक्तिगत हलफनामे को वापस करते हुए सरकारी अधिवक्ता से कहा कि हलफनामा असंतोषजनक है, लिहाजा बेहतर हलफनामा लाया जाए। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को नियत की है। यह आदेश जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस सुभाष विभार्थी की पीठ ने वर्ष 2012 में दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने नाराजगी जताई थी कि 12 वर्ष पहले जिन निर्माणों को सरकार व लखनऊ विकास प्राधिकरण ने अवैध करार दिया था और जिन्हें ढहाने के लिए आदेश भी जारी हुए थे, उन पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई।
कोर्ट ने प्रमुख सचिव से कहा था कि वह व्यक्तिगत हलफनामे प्रस्तुत कर बताएं कि सरकार ने अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने के लिए क्या योजना बनाई है और यह भी बताएं कि अधिकारियों की आंख के नीचे किस प्रकार से अवैध इमारतें खड़ी हो जाती हैं। आदेश के अनुपालन में प्रमुख सचिव का व्यक्तिगत हलफनामा पेश किया गया।
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि सरकार अपनी योजना में साफ-साफ बताए कि वह किस प्रकार से अवैध निर्माण को रोकने के लिए योजना बना रही है। यह भी बताए कि जो अवैध निर्माण हो चुके हैं उनके शमन के लिए क्या प्रकिया है। कोर्ट ने साफ किया कि यदि किसी निर्माण का नक्शा पास हो गया और निर्माण नींव स्तर से ही नक्शे के विपरीत हुआ है तो ऐसे में उस अवैध निर्माण का शमन नहीं किया जा सकता है।
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