सरकारी वकीलों को पुलिस तुरंत दे अदालत द्वारा मांगी गई जानकारी- इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग को सरकारी वकीलों द्वारा मांगी गई जानकारी समय पर उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि समय पर जानकारी मिलने से ...और पढ़ें

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत अर्जियों पर मांगी गई जानकारी समय से देने का निर्देश दिया है ताकि सुनवाई में अनावश्यक देरी न हो। कोर्ट ने डीजीपी को सभी जिला पुलिस प्रमुखों को इस आशय का परिपत्र जारी करने का निर्देश दिया है। यह भी कहा कि जमानत आदेश भी ओएमबी सिस्टम के जरिये सीधे जेल भेजा जाए।यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल की एकलपीठ ने बलिया निवासी याची विनोद राम की सशर्त जमानत मंजूर करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा, याची जमानत पाने का हकदार था, लेकिन थाना पुलिस ने मांगी गई जानकारी सरकारी वकील को देने में देरी की इससे उसे एक महीने तक जेल में रहना पड़ा। किसी आरोपित की स्वतंत्रता को केवल इसलिए बाधित नहीं किया जा सकता क्योंकि पुलिस अधिकारियों ने आवश्यक निर्देश देने में लापरवाही बरती है। याची के खिलाफ बांसडीह रोड थाने में बीएनएस की धारा 140(1), 61(2) और 238 के तहत केस दर्ज है।
पीठ ने कृत्य को बताया अवमाननापूर्ण
पूर्व में आठ अक्टूबर को सुनवाई में एजीए को जांच और अपहृत रामनिवास राम की बरामदगी के संबंध में निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन 17 नवंबर को सुनवाई के दौरान न्यायालय को सूचित किया गया कि बलिया के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने पत्र भेजे जाने के बावजूद कोई निर्देश नहीं दिया है। पीठ ने इस चूक को ‘न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप के अलावा कुछ नहीं’ करार दिया और कहा, कृत्य अवमाननापूर्ण है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया। एसएसपी ने 25 नवंबर को व्यक्तिगत हलफनामा दायर कर कोर्ट को सूचित किया कि शासकीय अधिवक्ता का पत्र मिला था, परंतु जांच अधिकारी ने आवश्यक जानकारी नहीं दी।
संबंधित उपनिरीक्षक महेंद्र रावत के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है और जांच पूरी होने तक उसे निलंबित कर दिया गया है। जांच के औचित्य के बारे में पुलिस ने दलील दी कि प्रयासों के बावजूद अपहृत व्यक्ति का शव नहीं मिल पाया है। आशंका है कि आरोपियों ने अपहृत को पुल से सरयू नदी में फेंक दिया।न्यायमूर्ति ने टिप्पणी की कि केवल जांच अधिकारी की लापरवाही के कारण आवेदक की जमानत याचिका का निपटारा एक महीने से ज्यादा समय तक नहीं हो सका।
कोर्ट ने राज्य सरकार पर हर्जाना लगाकर आवेदक को मुआवजा देने का प्रस्ताव रखा लेकिन अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा ऐसा नहीं करने के अनुरोध और इस आश्वासन पर कि भविष्य में राज्य सरकार समय पर निर्देश देने का प्रयास करेगी, हर्जाना नही लगाया। अदालत ने पाया कि याची को अपहृत व्यक्ति से जोड़ने वाला कोई साक्ष्य नहीं था और उसे केवल सह-अभियुक्त के बयान पर आरोपित बनाया गया। आरोपपत्र दाखिल हो चुका है और आवेदक का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।

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