Allahabad High Court : इलाहाबाद हाई कोर्ट में मथुरा की ईदगाह मस्जिद और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सुनवाई
Allahabad High Court Hearing On Mathura and Varanasi उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख धार्मिक स्थलों को लेकर शुक्रवार को हाई कोर्ट में सुनवाई की गई। कोर्ट ने मथुरा की ईदगाह मस्जिद को विवादित सरंचना मानने की मंदिर पक्ष की अर्जी खारिज कर दिया। उपासना स्थल कानून की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लंबित सुनवाई पूरी नहीं हुई है।
डिजिटल डेस्क, प्रयागराज : देश में मथुरा की ईदगाह मस्जिद और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई को लेकर बेसब्री हर ओर है। उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख धार्मिक स्थलों को लेकर शुक्रवार को हाई कोर्ट में सुनवाई की गई।
कोर्ट ने मथुरा की ईदगाह मस्जिद को विवादित सरंचना मानने की मंदिर पक्ष की अर्जी खारिज कर दिया। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में वुजुखाना सर्वे मामले की सुनवाई अब छह अगस्त को होगी।
ईदगाह मस्जिद को विवादित सरंचना मानने की अर्जी खारिज
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा स्थित श्री कृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में मंदिर पक्ष की वह अर्जी खारिज कर दी है जिसमें भविष्य की सभी कार्यवाहियों में ईदगाह मस्जिद को विवादित संरचना के रूप में संदर्भित करने की मांग की गई थी। यह अर्जी मामले में पक्षकार और अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने दाखिल की थी। न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने बीती 23 मई को इस मांग को लेकर सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने शुक्रवार को यह निर्णय सुनाया।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से एक विशेष प्रार्थना पत्र एप्लीकेशन A-44 के तहत यह आग्रह किया गया था कि आगे की सभी कानूनी कार्यवाहियों में शाही ईदगाह मस्जिद के लिए ‘विवादित ढांचा’ शब्द का इस्तेमाल किया जाये। मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति दर्ज की गई थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए हिंदू पक्ष की मांग को ठुकरा दिया। यह फैसला मुस्लिम पक्ष के लिए बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है।
दोनों पक्षों की प्रमुख दलीलें
हिंदू पक्ष की दलीलें
- ईदगाह की जमीन भगवान श्रीकृष्ण के गर्भगृह का हिस्सा है।
- मस्जिद का निर्माण मंदिर तोड़कर अवैध रूप से हुआ था।
- जमीन का वैध स्वामित्व कटरा केशव देव का है।
- वक्फ बोर्ड ने बिना अधिकार और प्रक्रिया के जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया।
- एएसआई और पुरातत्व विभाग इसे संरक्षित स्थल मानते हैं, इसलिए प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 यहां लागू नहीं होता।
मुस्लिम पक्ष की दलीलें
- 1968 में समझौता हो चुका है, जिसे 60 साल बाद चुनौती नहीं दी जा सकती।
- प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के अनुसार, धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 जैसी ही बनी रहनी चाहिए।
- यह मामला वक्फ ट्रिब्यूनल के क्षेत्राधिकार में आता है, न कि सिविल कोर्ट के।
- लिमिटेशन एक्ट के अनुसार भी मामला चलने योग्य नहीं है।
बाकी याचिकाओं पर जारी है सुनवाई
यह मामला सिर्फ एक प्रार्थना पत्र तक सीमित नहीं है। हिंदू पक्ष की ओर से श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर अब तक 18 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। इन सभी को शाही ईदगाह कमेटी ने सीपीसी (CPC) के ऑर्डर 7, रूल 11 के तहत चुनौती दी है, जिसमें यह कहा गया है कि ये मुकदमे सुनवाई योग्य नहीं हैं।
ज्ञानवापी वुजुखाना सर्वे मामले में अब छह अगस्त को सुनवाई
इलाहाबाद हाई कोर्ट वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में वुजुखाने का सर्वे कराने की मांग में दाखिल राखी सिंह की पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई अब छह अगस्त को करेगा। शुक्रवार को न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने यह प्रकरण सुना।
यह आदेश न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने उपासना स्थल कानून को लेकर दाखिल याचिका की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित रहने के कारण दिया है। शुक्रवार को राखी सिंह अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने कोर्ट को बताया कि उपासना स्थल कानून की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लंबित सुनवाई पूरी नहीं हुई है।
अंतरिम आदेश प्रभावी है जिससे किसी प्रकार के सर्वे आदेश पर रोक लगी है। इस पर हाईकोर्ट ने सुनवाई टाल दी। गौरतलब है कि श्रृंगार गौरी केस की पक्षकार राखी सिंह की सिविल पुनरीक्षण याचिका के साथ संबद्ध 1991 के स्वंभू लार्ड आदि विशेश्वर वाद में अतिरिक्त वैज्ञानिक सर्वेक्षण की मांग वाली याचिका में हाईकोर्ट नें विपक्षी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद एवं सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड से जबाब मांगा था।
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