संभल जामा मस्जिद में सर्वे का आदेश वैध, इलाहाबाद हाई कोर्ट में चली सुनवाई में सतयुग से लेकर कलयुग तक का जिक्र
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संभल स्थित शाही जामा मस्जिद के सर्वे के आदेश को वैध ठहराया है और निचली अदालत के फैसले को सही बताया। अदालत ने कहा कि यह मामला प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत बाधित नहीं है। कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी जिससे मस्जिद में सर्वे रास्ता साफ हो गया है।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में संभल स्थित शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण कराने के लिए एडवोकेट कमिश्नर भेजने संबंधी निचली अदालत के आदेश को वैध करार दिया है।
यह भी कहा है कि यह प्रकरण सिविल वाद प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 से बाधित नहीं है। अधीनस्थ अदालत के 19 नवंबर 2024 के आदेश में कोई अवैधानिकता या अनियमितता नहीं पाते हुए कोर्ट ने संभल जामा मस्जिद की प्रबंध समिति की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी है। इस निर्णय से जामा मस्जिद में प्रवेश व उसके संरक्षण के दावे की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ ने जामा मस्जिद, संभल की प्रबंध समिति की पुनरीक्षण याचिका पर दिया है। हाई कोर्ट ने कई मुख्य बिंदुओं पर विस्तृत विचार किया।
कहा, सर्वे कार्यवाही 19 नवंबर से 24 नवंबर 2024 तक चली। यह दो नहीं एक ही कार्यवाही थी। शास्त्रीय व ऐतिहासिक प्रमाणों का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा, 'कथित संभल मस्जिद 1920 से ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) से संरक्षित है। इस पर कोई विवाद नहीं है।
मुतवल्ली व ब्रिटिश सरकार के समय स्टेट सचिव के बीच करार से एएसआई को आधिपत्य दिया गया है। उसको मरम्मत संरक्षण का अधिकार है। मुतवल्ली को कलेक्टर की अनुमति बिना निर्माण के संबंध में कुछ भी करने का अधिकार नहीं है।'
याची के अधिवक्ता एसएफए नकवी की आपत्ति थी कि वाद दाखिल करने की धारा 80 की नोटिस की दो माह की अवधि पूरी नहीं हुई और पहले ही अदालत ने 19 नवंबर 2024 को वाद पंजीकृत कर लिया और उसी दिन सर्वे कमीशन जारी कर दिया। ऐसी कोई अर्जेंसी नहीं थी।
विपक्षी हरिशंकर जैन ने यह कहते हुए प्रतिवाद किया कि कथित मस्जिद से धार्मिक चिह्न मिटाए जा रहे थे, इसलिए ढांचे के संरक्षण की जरूरत थी। राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता राजेश्वर त्रिपाठी ने कहा, धारा 80 की नोटिस अवधि से पहले वाद पंजीकृत होने पर सरकार को आपत्ति नहीं है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल, भारत सरकार ने बताया कि एएसआई रिपोर्ट के अनुसार दीवारों पर पेंट की रंगीन मोटी परत ने मूल ढांचे के निर्माण को ढक दिया है। पीठ ने कहा, 'कोर्ट को नोटिस अवधि की छूट देने का अधिकार है। मस्जिद कमेटी प्राइवेट व्यक्ति है, उसे आपत्ति का अधिकार नहीं है।'
मस्जिद कमेटी की यह भी आपत्ति थी कि एडवोकेट कमिश्नर भेजने में नियमों की अनदेखी की गई। इस पर कोर्ट ने कहा, विचारण अदालत को साक्ष्य के लिए कमीशन भेजकर रिपोर्ट मंगाने का अधिकार है।
सर्वे में चार दिन के गैप पर कोर्ट ने कहा कि सरकार ने स्थिति स्पष्ट की है। 19 नवंबर को भीड़ ने सर्वे पूरा नहीं करने दिया। कुंदरकी चुनाव के कारण पुलिस नहीं उपलब्ध थी। 24 नवंबर को सर्वे पूरा हुआ। इसलिए इसे दो सर्वे नहीं कहा जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि याची मस्जिद कमेटी ने स्वयं ही 1904 व 1958 के कानून का सहारा लिया है। इसके तहत ढांचा एएसआई से संरक्षित है तो 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत वाद की पोषणीयता पर आपत्ति नहीं कर सकते।
सीलबंद सर्वे रिपोर्ट खोलने की मांग होगी
मंदिर पक्ष का कहना है कि सर्वे पूरा हो चुका है, इसलिए अब सीलबंद सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने की मांग सक्षम मंच पर की जाएगी।
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘संभल मामले में मस्जिद पक्ष की याचिका खारिज। दलील यह थी कि कोर्ट एकपक्षीय सर्वे कमिश्नर नियुक्त नहीं कर सकता। स्टे हट गया।’
सतयुग से लेकर कलयुग तक का जिक्र
हाईकोर्ट ने अधिवक्ता हरिशंकर जैन के तर्कों को सामने रखते हुए कहा कि उन्होंने अपने कानूनी अधिकार के लिए सिविल वाद दायर किया। कहा, मंदिर में प्रवेश से रोका न जाय। जैन ने सतयुग से लेकर कलयुग तक संभल की पौराणिकता का जिक्र किया। कहा, बाबर के समय मंदिर को तोड़ा गया। आइने अकबरी में इसका जिक्र है।
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