Allahabad HC से मोदीनगर बम ब्लास्ट में दोषसिद्ध इलियास बरी, हाई कोर्ट ने कहा- पुलिस के समक्ष कबूलनामा अस्वीकार्य
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मोदीनगर बम ब्लास्ट मामले में मोहम्मद इलियास को बरी कर दिया। 1996 में गाजियाबाद में एक बस में हुए विस्फोट के मामले में इलियास को निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस के सामने दिया गया इकबालिया बयान स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने अभियोजन पक्ष को आरोप साबित करने में विफल बताया और इलियास को बरी करने का आदेश दिया। इस घटना में 18 लोगों की जान गई थी।

मोदी नगर विस्फोट मामले में दोषसिद्धि इलियास को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी किया।
प्रयागराज। वर्ष 1996 में मोदीनगर-गाजियाबाद में चलती बस में हुए विस्फोट की घटना को लेकर उम्र कैद काट रहे मोहम्मद इलियास को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह कहते हुए भारी मन से बरी कर दिया है कि पुलिस के सामने दिया गया कबूलनामा अस्वीकार्य है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। अपने 51 पेज के निर्णय में खंडपीठ ने कहा-अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा और पुलिस द्वारा दर्ज इकबालिया बयान साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के तहत प्रतिबंध के मद्देनजर अस्वीकार्य है।
इलियास की आपराधिक अपील स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा, अपीलकर्ता के खिलाफ कानूनी रूप से स्वीकार्य कोई साक्ष्य नहीं बचा है। इसलिए वह ‘भारी मन से’ बरी करने का आदेश पारित कर रही है। घटना में 18 निर्दोष लोगों की जान चली गई थी।
प्राथमिकी के अनुसार, रुड़की डिपो की बस 27 अप्रैल 1996 की दोपहर 3:55 बजे लगभग 53 यात्रियों को लेकर दिल्ली से रवाना हुई। मोहननगर में 14 और यात्री इसमें सवार थे। शाम करीब पांच बजे, बस के अगले हिस्से में शक्तिशाली विस्फोट हुआ और 10 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि लगभग 48 यात्री घायल हुए। पोस्टमार्टम में शवों में धातु के टुकड़े पाए गए।
डॉक्टरों ने बताया कि मौतें बम विस्फोट के बाद अत्यधिक रक्तस्राव के चलते कारण हुई। फोरेंसिक जांच में ड्राइवर की सीट के नीचे कार्बन मिला आरडीएक्स रखे जाने की पुष्टि हुई थी। विस्फोट रिमोट स्विच के ज़रिए किया गया था। अभियोजन का आरोप था हमले को पाकिस्तानी नागरिक और हरकत-उल-अंसार के कथित जिला कमांडर अब्दुल मतीन उर्फ इकबाल ने मोहम्मद इलियास (अपीलार्थी) और तस्लीम के साथ मिलकर अंजाम दिया था।
मूल रूप से मुजफ्फरपुर निवासी लेकिन लुधियाना में रहने वाले इलियास को जम्मू-कश्मीर के आतंकवादियों ने भड़काया था। वर्ष 2013 में निचली अदालत ने सह अभियुक्त तस्लीम को बरी कर दिया, लेकिन इलियास और अब्दुल मतीन को विभिन्न धाराओं में आजीवन कारावास के साथ-साथ कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई।
तस्लीम को बरी किए जाने के खिलाफ सरकार ने कोई अपील दायर नहीं की। हाई कोर्ट के समक्ष मुख्य मुद्दा इलियास के इकबालिया बयान की स्वीकार्यता था। पुलिस का दावा था कि जून 1997 में लुधियाना में गिरफ्तारी के बाद उसने पिता और भाई की मौजूदगी में बम लगाने की बात कबूल की थी।
बयान सीबीसीआईडी के सेक्टर अधिकारी, विवेचनाधिकारी ने ऑडियो कैसेट पर रिकॉर्ड किया था। हाई कोर्ट ने पाया कि अभियोजन ने कुल 34 गवाहों को परीक्षित कराया था। यात्रियों और प्रत्यक्षदर्शियों ने घटना को साबित कर दिया, लेकिन कोई भी यह नहीं पहचान सका कि विस्फोटक किसने लगाया था?
दरअसल बस के आईएसबीटी दिल्ली से रवाना होने से पहले बम रखा गया था, जिससे पहचान असंभव हो गई। खंडपीठ ने अभियोजन पक्ष के इस तर्क को खारिज कर दिया कि टाडा अधिनियम की धारा 15 के तहत, पुलिस अधीक्षक के पद से नीचे के पुलिस अधिकारी के समक्ष दिया गया इकबालिया बयान स्वीकार्य है।
खंडपीठ ने कहा, विस्फोट अप्रैल 1996 में हुआ था, जब टाडा लागू नहीं था और इस प्रकार टाडा में प्रदत्त विशेष अपवाद (जो पुलिस के इकबालिया बयानों को सबूत के तौर पर इस्तेमाल करने की अनुमति देता था), मामले में लागू नहीं होता। कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस टेप रिकॉर्डर में कथित तौर पर बयान दर्ज किया गया था, उसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया था।

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