HC News: 'बालिग बेटी को मर्जी से विवाह का अधिकार पर सामाजिक मानदंड अलग, परिवार का विरोध गलत'
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि संविधान बालिग को अपनी मर्जी से विवाह करने का अधिकार देता है भले ही सामाजिक मापदंड विपरीत हों। कोर्ट ने पसंद के व्यक्ति से शादी करने के निर्णय का विरोध करने वाले परिवार पर अपहरण के आरोप को सही नहीं माना। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचीगण विपक्षी से संपर्क नहीं करेंगे। यह मामला मीरजापुर का है।

विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि संविधान बालिग को अपनी मर्जी से किसी से विवाह करने का अधिकार देता है, लेकिन सामाजिक मापदंड इसके विपरीत है। संवैधानिक व सामाजिक मानदंडों के बीच मूल्य का अंतर स्वाभाविक है। अधिकार की रक्षा करना कोर्ट का संवैधानिक कर्तव्य है।
कोर्ट ने पसंद के व्यक्ति से शादी करने संबंधी युवती के निर्णय का विरोध करने वाले परिवार पर अपहरण के आरोप को सही नहीं माना। कहा कि याचीगण ने अभी तक कोई अपराध नहीं किया है, इसलिए उनकी गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए।
साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि याचीगण विपक्षी (शिकायतकर्ता) से किसी भी माध्यम से संपर्क नहीं करेंगे। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने मीरजापुर निवासी अमरनाथ यादव व तीन अन्य की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा, ‘याची के परिवार के सदस्य 27 वर्ष की युवती के पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के निर्णय पर आपत्ति जताते हैं जबकि यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक वयस्क को है।’

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