'16 साल से अधिक उम्र की बीवी से यौन संबंध दुष्कर्म नहीं', HC ने रद की दो दशक पहले सुनाई गई सजा
नाबालिग पत्नी से दुष्कर्म के दो दशक पुराने मामले में सुनाई गई दोषसिद्धि व सजा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद कर दी है। कहा है कि किसी व्यक्ति को 15 वर्ष से अधिक आयु की नाबालिग पत्नी संग यौन संबंध बनाने के लिए इंडिपेंडेंट थाट बनाम भारत संघ (2017) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद ही दोषी ठहराया जा सकता है, उससे पहले के मामलों में नहीं।
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विधि संवाददाता, प्रयागराज। नाबालिग पत्नी से दुष्कर्म के दो दशक पुराने मामले में सुनाई गई दोषसिद्धि व सजा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद कर दी है। कहा है कि किसी व्यक्ति को 15 वर्ष से अधिक आयु की नाबालिग पत्नी संग यौन संबंध बनाने के लिए इंडिपेंडेंट थाट बनाम भारत संघ (2017) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद ही दोषी ठहराया जा सकता है, उससे पहले के मामलों में नहीं।
शीर्ष अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (दुष्कर्म) के अपवाद 2 को, जिसमें यह प्रविधान था कि 15 वर्ष से अधिक आयु की पत्नी से यौन संबंध दुष्कर्म नहीं है, 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की पत्नी के रूप में पढ़ा है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि संशोधन भविष्य में लागू होगा न कि पूर्वव्यापी प्रभाव से।
न्यायमूर्ति अनिल कुमार (दशम) की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा, अपीलार्थी इस्लाम उर्फ पलटू को दुष्कर्म के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि घटना के समय पीड़िता 16 वर्ष से अधिक उम्र की थी और दोनों के बीच शारीरिक संबंध निकाह बाद बने थे। भोगनीपुर थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी में अपीलार्थी शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 16 वर्षीय नाबालिग बेटी को अपीलार्थी बहला-फुसलाकर भगा ले गया था। अपीलार्थी ने दलील दी कि उसने और कथित पीड़िता ने 29 अगस्त 2005 को निकाह किया। निकाहनामा भी प्रस्तुत किया गया।
निचली अदालत ने पाया कि पीड़िता के बयान के आधार पर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि उसे बहला-फुसलाकर भगाया गया था। अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों ने निकाह किया और महीने भर कालपी व भोपाल में किराये के कमरे में खुशहाल विवाहित जोड़े की तरह साथ रहे। हालांकि, निचली अदालत ने अपीलार्थी को इसलिए दोषी ठहराया क्योंकि पीड़िता नाबालिग थी। न्यायमूर्ति ने कहा, माता-पिता की गवाही से ऐसा कुछ भी पता नहीं चलता जिससे यह साबित हो कि अपीलार्थी ने पीड़िता को साथ ले जाने के लिए बहकाया था।
पीड़िता ने बयान में कहा था कि वह स्वेच्छा से गई। इसलिए धारा 363 के तहत फुसलाना और ले जाना अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा, मुस्लिम कानून के तहत विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष है। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है। प्रश्न यह था कि कौन सा कानून प्रभावी होगा? मुकदमे से जुड़े संक्षिप्त तथ्य यह हैं कि आपराधिक अपील अपर सत्र न्यायाधीश, न्यायालय संख्या आठ, कानपुर देहात की ओर से 11 सितंबर 2007 को पारित निर्णय और आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने धारा 363 आइपीसी में पांच वर्ष सजा और एक हजार रुपये जुर्माना, धारा 366 आइपीसी में सात वर्ष सजा और एक हजार रुपये जुर्माना व धारा 376 आइपीसी में सात वर्ष की सजा और दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया था।
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