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    उम्रकैद, हत्या मामलों में अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध लागू नहीं: इलाहाबाद हाई कोर्ट

    Updated: Sat, 05 Jul 2025 03:10 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 लागू होने के बाद मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय आपराधिक मामलों में अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध अब लागू नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बीएनएसएस की धारा 482 अग्रिम जमानत को नियंत्रित करती है और यह धारा 438 (6) सीआरपीसी के तहत किसी भी प्रतिबंध को बरकरार नहीं रखती।

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    तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण

     विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। एक महत्वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पहली जुलाई, 2024 से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) लागू होने के साथ ही राज्य में मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय आपराधिक मामलों में अग्रिम जमानत देने पर प्रतिबंध अब लागू नहीं है।

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    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बीएनएसएस की धारा 482, जो अब अग्रिम जमानत को नियंत्रित करती है, धारा 438 (6) सीआरपीसी के तहत निहित किसी भी तरह के प्रतिबंध को बरकरार नहीं रखती। बीएनएसएस लागू होने के बाद सीआरपीसी निरस्त हो गई है। सीआरपीसी की धारा 438(6) के तहत प्रदेश में उम्रकैद अथवा हत्या वाले मामलों में अग्रिम जमानत प्रतिबंधित की गई थी।

    न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह की एकल पीठ ने अब्दुल हमीद की दूसरी अग्रिम जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया है। अपीलार्थी 13 अगस्त 2011 को बरेली जिले के देवरानिया थाना क्षेत्र के ग्राम गिरधरपुर में हुई गुड्डू उर्फ जाकिर हुसैन की हत्या मामले में मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था, पुलिस ने जांच के दौरान उसके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया था।

    धारा 438(6) सीआरपीसी के तहत निहित प्रतिबंध के मद्देनजर अपीलार्थी की पहली अग्रिम जमानत याचिका फरवरी 2023 में हाई कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि हत्या मामले में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती, अर्जी पोषणीय नहीं है। यह रोक उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा लगाई गई थी।

    पहली जुलाई 2024 के बाद बीएनएसएस लागू हुआ तो आवेदक ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए धारा 482 बीएनएसएस के तहत दोबारा आवेदन दायर किया। सत्र न्यायालय ने मार्च 2025 में इसे खारिज कर दिया। इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।

    अपीलार्थी की ओर से यह तर्क दिया गया कि धारा 438(6) सीआरपीसी के तहत वैधानिक रोक अब बीएनएसएस के तहत मौजूद नहीं है और वर्तमान आवेदन पूरी तरह से अलग वैधानिक व्यवस्था के तहत है।

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