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    आगरा में 35 साल पुराने जातीय हिंसा मामले में 32 दोषियों की जमानत मंजूर, 15 दिनों के भीतर जमा करना होगा जुर्माना

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 08:03 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आगरा में 35 साल पुराने जातीय हिंसा मामले में 32 दोषियों की जमानत मंजूर कर ली है। न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की एकलपीठ ने यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्तों को रिहाई की तारीख से 15 दिन के भीतर जुर्माना जमा करना होगा।

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    आगरा में 35 साल पुराने जातीय हिंसा मामले में 32 दोषियों की जमानत मंजूर

    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आगरा में 35 साल पुराने जातीय संघर्ष से जुड़े मामले में 32 दोषियों की जमानत स्वीकार कर ली है। न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की एकलपीठ ने यह आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्तों को रिहाई की तारीख से 15 दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई जुर्माने की राशि जमा करनी होगी। 

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    अपीलार्थी जयदेव व 31 अन्य की तरफ से अधिवक्ता राजीव लोचन शुक्ला ने सभी को झूठा फंसाए जाने की बात कही। तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष की ओर से लगभग 27 गवाहों से पूछताछ की गई है, लेकिन उनके बयानों में विरोधाभास है। इस पर सत्र अदालत ने विचार नहीं किया। 

    अधिकांश अपीलकर्ता 65 वर्ष से अधिक आयु के हैं और विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं। निचली अदालत ने साक्ष्यों को गलत पढ़ा और अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराया। अभियोजन भी मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। 

    कोर्ट को बताया गया कि अपीलार्थी मुकदमे के दौरान जमानत पर थे और किसी भी स्तर पर स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया। सभी 28 मई 2025 से जेल में हैं। भविष्य में अपील की शीघ्र सुनवाई की कोई संभावना नहीं है, इसलिए अपील लंबित रहने तक जमानत पर रिहा करने के पात्र हैं। 

    अपीलार्थी संख्या 21 देवी सिंह चार अगस्त 2025 के आदेश द्वारा अल्पकालिक जमानत पर रिहा कर दिया गया है। वह आगरा जेल अस्पताल में भर्ती हैं। 

    कोर्ट ने कहा, यह ध्यान में रखते हुए कि अपील के अंतिम निपटारे में समय लग सकता है, मामले में गुण-दोष पर कोई टिप्पणी किए बिना अपीलकर्ताओं को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। 

    यह है मामला

    इसी साल 30 मई को एससी-एसटी कोर्ट ने 32 दोषियों को पांच-पांच वर्ष के कारावास व 41-41 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई है। मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि 21 जून 1990 को सिकंदरा के गांव पनवारी में भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की बारात आई थी। 

    जाट बाहुल्य इस गांव में दबंगों ने बरात चढ़ने का विरोध किया। विवाद जातीय हिंसा में बदल गया। कुछ लोगों की जान भी चली गई। 24 जून 1990 को हिंसा की आग कागारौल थाना क्षेत्र के अकोला गांव में पहुंच गई। दोपहर करीब एक बजे दो सौ से ढाई सौ लोगों ने जाटव बस्ती पर हमला बोल दिया था। तत्कालीन थानाध्यक्ष ओमपाल सिंह ने मुकदमा पंजीकृत कराया था। 

    चार जून 1991 को न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की। इसमें 79 लोग आरोपित बनाए गए।  एससी-एसटी कोर्ट के फैसले के बाद क्षेत्रीय विधायक चौ. बाबूलाल ने हाई कोर्ट में जमानत याचिका दायर कराई थी।