'संस्कृति-मानवीय मूल्यों के बिना समाज अधूरा,' महाकुंभ में बोले पंकज त्रिपाठी; भारत के गौरवशाली इतिहास पर भी की चर्चा
बॉलीवुड एक्टर पंकज त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय सिनेमा को हमारी परंपराओं और लोककथाओं को संरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। निर्माता और निर्देशक एकता कपूर ने बताया कि कैसे सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है और उसे भारतीय जीवनशैली और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए एक प्रभावी माध्यम बनाया जा सकता है। महाकुंभ में भारत के गौरवशाली इतिहास संस्कृति और साहित्य पर विस्तार से चर्चा की गई।

जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम तट पर महाकुंभ का अद्भुत आयोजन, न केवल आस्था का महासंगम है, बल्कि विचारों, संस्कृति और कला का भी उत्सव बन गया है। परमार्थ निकेतन शिविर और त्रिवेणी पुष्प प्रांगण में आयोजित तीन दिवसीय विद्वत महाकुंभ इस आध्यात्मिक महोत्सव का एक स्वर्णिम अध्याय बना।
जहां कला, साहित्य और सिनेमा के संगम से नई दृष्टि उभरी तथा नारी सशक्तिकरण और सामाजिक समरसता का संदेश दिया गया। बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृति और मानवीय मूल्यों के बिना समाज अधूरा है।
सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है- एकता कपूर
कहा कि भारतीय सिनेमा को हमारी परंपराओं और लोककथाओं को संरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। निर्माता और निर्देशक एकता कपूर ने बताया कि कैसे सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है और उसे भारतीय जीवनशैली और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए एक प्रभावी माध्यम बनाया जा सकता है।
परमार्थ निकेतन, सोनचिरैया और प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस आयोजन में भारत के गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और साहित्य पर विस्तार से चर्चा की गई। विभिन्न विद्वानों और विशेषज्ञों ने भारतीय सभ्यता के अद्भुत योगदानों को बताया, जिसमें भारतीय राजनीति, समाज, दर्शन, और विज्ञान का योगदान विशेष रूप से उभरा।
विज्ञान में सबका योगदान अमूल्य है- स्वामी चिदानंद
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि "विद्वत महाकुंभ, भारतीय संस्कृति और विद्वता का अमृतस्नान है। यह भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और आध्यात्मिक चेतना को नई ऊर्जा देने का एक माध्यम है। साध्वी भगवती सरस्वती ने भारतीय संस्कृति की गहराई पर चर्चा करते हुए कहा, "हमारी संस्कृति केवल धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला है। भारतीय दर्शन, साहित्य, संगीत, कला, और विज्ञान में सबका योगदान अमूल्य है।"
भारत की प्रसिद्ध विदुषी रमा वैद्यनाथन ने बताया कि वर्तमान समय में भारतीय कला और संस्कृति को संजोने और उसका प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियां इन सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित कर सकें।
मिथिलेश नंदिनी और डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि नृत्य कला न केवल शारीरिक अभिव्यक्ति का रूप है, बल्कि यह एक मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का भी माध्यम है। लोकगायिका मलिनी अवस्थी ने लोकगीतों से भारतीय लोक संस्कृति की महिमा को जीवंत कर दिया और यह संदेश दिया कि संगीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और प्रेम का सेतु भी है।
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