Abbas Ansari News: अब्बास अंसारी को इलाहाबाद हाई कोर्ट से बड़ी राहत, विधायकी होगी बहाल
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बुधवार को पूर्व विधायक अब्बास अंसारी की याचिका पर अहम फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति समीर जैन की एकलपीठ ने हेट स्पीच मामले में अब्बास अंसारी की याचिका को स्वीकार करते हुए उनकी विधायकी बहाल कर दी। अपराध में सजा के आधार पर अब्बास अंसारी की विधायकी पहले निरस्त कर दी गई थी जिसके खिलाफ उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट से अब्बास अंसारी को बड़ी राहत मिली है। न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने हेट स्पीच मामले में उनकी दोषसिद्धि व सजा को निलंबित रखने का निर्देश दिया है और अपीलीय अदालत को कोर्ट की टिप्पणी से प्रभावित हुए बगैर अपील तय करने का निर्देश दिया है। हाई कोर्ट के इस निर्णय से अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता बहाल होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इससे पहले 30 जुलाई को सुनवाई के बाद कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया था।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी प्रत्याशी के रूप में मऊ सदर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए अब्बास अंसारी को मऊ की एमपी/एमएलए स्पेशल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 153-ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 189 (सार्वजनिक सेवक को चोट पहुंचाने की धमकी) के तहत अपराध के लिए दो साल की कैद की सजा सुनाई थी।
इसके अलावा धारा 506 में एक वर्ष और धारा 171-एफ (चुनाव में अनुचित प्रभाव ) के तहत अपराध के लिए छह महीने कैद की सजा सुनाई थी। स्पेशल कोर्ट ने कहा था कि सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। पुलिस ने अब्बास के खिलाफ उनकी इस धमकी के मद्देनजर यह केस दर्ज किया था कि विधानसभा चुनाव बाद समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने पर राज्य सरकार के अधिकारियों को परिणाम भुगतना पड़ेगा। ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रार्थना पत्र अपर सत्र न्यायाधीश ने पांच जुलाई 2025 को खारिज कर दिया था।
इस आदेश के खिलाफ अब्बास अंसारी ने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की थी। हाई कोर्ट में उनके अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय ने कहा कि जो आरोप लगाए गए हैं वह अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं, अगर मामला बनता भी है तो यह आचार संहिता उल्लंघन का है। ऐसे में ट्रायल कोर्ट ने जो सजा सुनाई है, उस पर रोक लगाई जाए। कोर्ट ने कहा, यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें सजा पर रोक लगाने से इन्कार किया जाए। कोर्ट ने सत्र अदालत के पांच जुलाई के आदेश को अवैध करार देते हुए इस हद तक रद कर दिया कि सजा पर रोक /निलंबन अस्वीकार है। कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली है।
‘यदि कुछ कम सजा दी होती तो विधायिकी बची रहती’
अदालत का कहना है कि प्रश्नगत मामले में विशेष अदालत ने अधिकतम सजा दी है। यदि कुछ कम सजा दी गई होती तो विधायकी बची रहती, निर्योग्यता की स्थिति नहीं आती। कोर्ट ने राहुल गांधी केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जिसमें जनप्रतिनिधियों के अधिकारों के संरक्षण पर बल दिया गया है। कोर्ट ने याची के खिलाफ लगे आरोपों का विस्तृत परिशीलन करते हुए कहा, ‘153 ए का अपराध नहीं बनता।’
याची का कहना था कि विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ अपील पर सजा निलंबित करने की अर्जी की सुनवाई करते समय अदालत ने कानूनी पहलुओं पर ठीक से विचार नहीं किया। सजा पर रोक न लगाने से याची का राजनैतिक कैरियर प्रभावित होगा। उसे अपूरणीय क्षति होगी। भीड़ के सामने प्रशासन को धमकी के अलावा अन्य साक्ष्य नहीं है। केवल राजनैतिक भविष्य दांव पर लगाने के लिए अधिकतम सजा दी गई है।
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