प्रयागराज से निकली सेना के योद्धाओं की टोली, 231 किमी साइकिल चलाकर पहुंचेगे भारत-पाक युद्ध के हीरो वीर अब्दुल हमीद के गांव
1965 के भारत-पाक युद्ध की हीरक जयंती पर वीर अब्दुल हमीद की स्मृति में रेड ईगल डिवीजन प्रयागराज ने साइकिलिंग अभियान शुरू किया। सैनिकों ने वीर अब्दुल हमीद द्वार पर सलामी दी और 231 किमी यात्रा पर निकले। यह अभियान वीर अब्दुल हमीद के बलिदान को श्रद्धांजलि है और युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाने का प्रयास है। 22 सितंबर को गाजीपुर में समापन होगा जहा उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी।

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। न युद्ध का मैदान था, न युद्ध की रणभेरी बजी थी लेकिन जवानों का जोश वैसा ही था। देशभक्ति के उत्साह से आप्लावित पुराना छावनी क्षेत्र प्रात: साढ़े छह बजे जवानों के कदमताल का साक्षी बना। वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध की हीरक जयंती पर परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की स्मृति में रेड ईगल डिवीजन के सैनिक, वीर अब्दुल हमीद द्वार पर एकत्रित हुए।
सैनिकों की सलामी और “भारत माता की जय” के उद्घोष के बीच शुक्रवार को रेड ईगल का साइकिलिंग अभियान शुरू हुआ। साइकिल सवार सैनिकों का दल, अटूट उत्साह और देशप्रेम से परिपूर्ण, 231 किलोमीटर की यात्रा पर निकला है, जो 22 सितंबर को गाजीपुर के धामूपुर में वीर अब्दुल हमीद उद्यान पर पहुंचेगा, वहां कार्यक्रम का समापन होगा। इसी गांव में अब्दुल हमीद का जन्म हुआ था।
परमवीर चक्र विजेता के सम्मान में विशेष आयोजन
देशभक्ति का जज्बा और वीरता की मिसाल को सलाम करने का एक अनूठा प्रयास शुक्रवार को प्रयागराज के पुराने छावनी क्षेत्र में देखने को मिला। 1965 के भारत-पाक युद्ध की हीरक जयंती के अवसर पर रेड ईगल डिवीजन के सैनिकों ने परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की स्मृति में साइकिलिंग अभियान शुरू किया।
ब्रिगेडियर ने हरी झंडी दिखाकर शुरू किया अभियान
सुबह 6:30 बजे वीर अब्दुल हमीद द्वार पर सैनिकों की सलामी और “भारत माता की जय” के उद्घोष के बीच ब्रिगेडियर नवाब खान ने हरी झंडी दिखाकर इस अभियान को रवाना किया। साइकिल सवार सैनिकों का यह दल 231 किलोमीटर की यात्रा तय कर 22 सितंबर को गाजीपुर के धामूपुर में वीर अब्दुल हमीद उद्यान पहुंचेगा, जहां इस अभियान का समापन होगा।
वीर अब्दुल हमीद को देंगे श्रद्धांजलि
यह साइकिलिंग अभियान न केवल वीर अब्दुल हमीद के अदम्य साहस और बलिदान को श्रद्धांजलि है, बल्कि 1965 के युद्ध की गौरव गाथा को जन-जन तक पहुंचाने का भी एक प्रयास है। चार दिनों की इस यात्रा में सैनिकों का जोश और देशप्रेम देखते ही बनता है। लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष कुमार पाठक ने कहा, यह अभियान वीर अब्दुल हमीद की वीरता को याद करने और युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाने का एक माध्यम है। हम चाहते हैं कि उनकी कहानी हर दिल तक पहुंचे।
लोगों ने सैनिकों का बढ़ाया हौसला
अभियान के शुभारंभ के मौके पर सैनिकों ने वीर अब्दुल हमीद द्वार पर एकत्रित होकर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद साइकिल सवार दल ने अपनी यात्रा शुरू की। यह दल प्रतिदिन लगभग 60-70 किलोमीटर की दूरी तय करेगा और रास्ते में विभिन्न पड़ावों पर रुकेगा। स्थानीय लोग भी इस अभियान को देखकर उत्साहित हैं और सैनिकों का हौसला बढ़ाया।
कौन थे वीर अब्दुल हमीद क्या है उनकी अमर गाथा
वीर अब्दुल हमीद का नाम भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में जन्मे अब्दुल हमीद ने 1965 के भारत-पाक युद्ध में असल उत्तर के युद्धक्षेत्र में अपनी वीरता की ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है। अब्दुल हमीद भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की 4वीं बटालियन में हवलदार थे।
अपनी जीप से दुश्मन के सात पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया
सितंबर 1965 में जब पाकिस्तान ने पंजाब के खेमकरन सेक्टर में हमला किया, तब अब्दुल हमीद अपनी जीप पर लगी रिकॉइललेस गन के साथ मोर्चे पर डटे थे। पाकिस्तानी सेना के पास उस समय अमेरिका निर्मित पैटन टैंक थे, जो अपनी ताकत के लिए मशहूर थे। अब्दुल हमीद ने इन टैंकों के सामने हार नहीं मानी। 10 सितंबर 1965 को असल उत्तर के युद्ध में, अब्दुल हमीद ने अपनी जीप से दुश्मन के सात पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया।
गजब का था युद्ध कौशल, बार बार बदलते अपनी स्थिति
वह बार-बार दुश्मन की गोलियों और टैंकों के बीच अपनी स्थिति बदलते रहे, ताकि दुश्मन को निशाना बनाने में कठिनाई हो। उनकी यह रणनीति इतनी प्रभावी थी कि पाकिस्तानी सेना के टैंकों का जखीरा तबाह हो गया। लेकिन इस दौरान दुश्मन की गोलीबारी में अब्दुल हमीद गंभीर रूप से घायल हो गए और वीरगति को प्राप्त हुए। उनके इस साहस और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान, परमवीर चक्र से नवाजा गया।
देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की भावना
वीर अब्दुल हमीद पहले सैनिक थे, जिन्हें युद्ध के मैदान में इतने कम संसाधनों के साथ इतनी बड़ी उपलब्धि के लिए यह सम्मान मिला। उनकी वीरता ने न केवल युद्ध का रुख मोड़ा, बल्कि भारतीय सेना के जवानों में जोश का संचार किया। आज भी धामूपुर में उनकी स्मृति में बना उद्यान और उनकी प्रतिमा हर आने वाले को उनकी शौर्य गाथा सुनाती है। वीर अब्दुल हमीद की कहानी सिर्फ एक सैनिक की नहीं, बल्कि देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की भावना की कहानी है।
सेना के अभियान का महत्व
यह साइकिलिंग अभियान केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि देश के युवाओं को वीर अब्दुल हमीद की वीरता से प्रेरित करने का एक प्रयास है। रास्ते में सैनिक स्कूलों और कालेजों में रुककर छात्रों को युद्ध की कहानियां और अब्दुल हमीद के बलिदान के बारे में बताएंगे। स्थानीय प्रशासन भी इस आयोजन में सहयोग कर रहा है। 22 सितंबर को धामूपुर पहुंचने पर सैनिक वीर अब्दुल हमीद उद्यान में एक समारोह में भाग लेंगे, जहां उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की जाएगी। इस अवसर पर स्थानीय लोग और सैन्य अधिकारी भी मौजूद रहेंगे। यह आयोजन न केवल वीर अब्दुल हमीद को श्रद्धांजलि है, बल्कि भारत की सैन्य परंपरा और बलिदान की भावना को जीवंत रखने का एक प्रयास है।
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