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    वन रक्षक निहत्थे और जंगली जानवरों से मुकाबला

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 29 Dec 2017 10:12 PM (IST)

    राज नारायण शुक्ल राजन, प्रतापगढ़ : वन्य जीवों की ¨जदगी व उनके हमले से लोगों को बचाने में ि

    वन रक्षक निहत्थे और जंगली जानवरों से मुकाबला

    राज नारायण शुक्ल राजन, प्रतापगढ़ : वन्य जीवों की ¨जदगी व उनके हमले से लोगों को बचाने में जिले का वन महकमा सक्षम नहीं है। इसकी वजह है आधुनिक संसाधनों का अभाव। जिले में कहीं तेंदुआ तो कहीं लकड़बग्घा व अजगर निकलते रहे हैं। बंदरों की फौज लोगों को काट खा रही है और विभाग के पास ¨पजरे के अलावा कुछ नहीं है।

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    नदी, नालों से घिरे प्रतापगढ़ में नमी वाले क्षेत्र में तेंदुआ की चहलकदमी नई चुनौती बनकर उभरी है। बकुलाही नदी के तटवर्ती मानधाता, सदर, कुंडा व बिहार इलाके में ही अब तक तेंदुआ मिला है। 10 अक्टूबर को बाघराय में निकले तेंदुए को बड़ी मशक्कत के बाद पकड़ा जा सका था। इसके बाद 22 दिसंबर को बाघराय के बूढ़ेपुर में एक मादा तेंदुआ निकला, जिसे नासमझ लोगों ने मार डाला। तीन साल पहले लालगंज इलाके में मदमस्त हाथी का उत्पात भी विभाग नहीं रोक पाया था। इन सबके पीछे वजह रही कि वन विभाग के पास ऐसे ¨हसक व संरक्षित जीव जंतुओं को पकड़ने के लिए संसाधन ही नहीं हैं। है तो केवल तीन-चार ¨पजरा, जिसमें जानवर को पकड़ने के बाद रखा जा सकता है। पकड़ा कैसे जाए इसका जवाब विभाग के पास नहीं है। जब कहीं ¨हसक जंगली जानवर निकलते हैं तो वन विभाग खाली हाथ पहुंचता है। कानपुर के एक्सपर्ट टीम को सूचना देता है। उसके इंतजार में यहां हालात बेकाबू हो जाते हैं। इसी का दुष्परिणाम रहा बूढ़ेपुर में तेंदुए का कत्ल। उधर डीएफओ वाइपी शुक्ल का कहना है कि संसाधनों की डिमांड भेजी गई है।

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    नहीं है ट्रैंकुलाइजर गन

    जंगली जानवरों को काबू में करने के लिए उनको अचेत करना होता है। इसके लिए चाहिए ट्रैंकुलाइजर गन। यह गन प्रतापगढ़ के वन विभाग को आज तक नहीं मिली। जबकि यह गन पीलीभीत, लखीमपुर, कानपुर में ट्रैंकुलाइजर गन है।

    बोरे में भरते हैं अजगर

    जिले में अजगर बड़ी संख्या में मिलते हैं। अक्सर खेत में, घरों में, स्कूल में, जंगल में रेंगते दिखते हैं। कई बार लोग इनको मार डालते हैं। सूचना पाने पर विभाग के लोग जाते हैं और उसे बोरे में भरकर लाते हैं। इससे अजगर की त्वचा छिल जाती है। उसे लाकर चिलबिला के जंगल में सई नदी के किनारे यूं ही छोड़ दिया जाता है।

    प्रशिक्षित टीम का अभाव

    जिले में वन विभाग के किसी कर्मी को वाइल्ड लाइफ संबंधी प्रशिक्षण नहीं मिला है। वह अपने अनुभव के आधार पर जानवरों से मुकाबला करते हैं। इससे उनकी जान भी जोखिम में रहती है। जानवर गुस्से में हमलावर भी हो जाते हैं।

    सात रेंज का है जिला

    जिले में वन विभाग के सात रेंज हैं। इनमें सदर, लालगंज, कुंडा, कालाकांकर, पट्टी, रानीगंज व संडवा हैं। इनकी देखरेख रेंजर को करनी चाहिए, पर आधे ही रेंजर हैं। बाकी जगह डिप्टी रेंजर से काम चलाया जा रहा है। जैसे कुंडा रेंज।

    बेंती रेंज अब खाली

    मायावती के शासनकाल में कुंडा रेंज के बेंती तालाब को पक्षी बिहार बना दिया गया था। यही नहीं शासन ने बेंती नाम से जिले में आठवां रेंज भी गठित किया था। सत्ता परिवर्तन के साथ ही बेंती रेंज का अस्तित्व मिटने लगा। वहां अब कोई कर्मी तैनात नहीं है।

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