पहलगाम के आतंकी हमले से बाल-बाल बचे प्रतापगढ़ के 14 लोग, प्लान में बदलाव करना आया काम; बोले- मां बेल्हा की कृपा से..
प्रतापगढ़ के 14 पर्यटकों का एक समूह पहलगाम में हुए आतंकी हमले में बाल-बाल बच गया। पहलगाम घूमने का प्लान बदलने और पहले श्रीनगर जाने से उनकी जान बच गई। हमले की खबर सुनकर वे कांप उठे और मां बेल्हा देवी का आभार व्यक्त किया। पर्यटकों का मानना है कि यह हमला कश्मीर में दहशत फैलाने की साजिश थी।
राज नारायण शुक्ल राजन, प्रतापगढ़। पहलगाम बैसरन घाटी में हुए जघन्य आतंकी हमले का शिकार प्रतापगढ़ से घूमने गया 14 लोगों का जत्था भी हो जाता। संयोग अच्छा था कि इस जत्थे ने पहले पहलगाम घूमने का प्लान बनाया और वहां भ्रमण के बाद श्रीनगर आ गया था।
घटना के एक दिन पहले यह लोग कश्मीर से घर के लिए चल पड़े थे। जब हमले की खबर आई तो यह लोग भी कांप उठे। वह जान बच जाने पर बार-बार मां बेल्हा देवी का आभार जता रहे हैं।
कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। इसे देखने का दिल तो हर किसी का करता है। इसी लालसा में चौरसिया समाज के नेता शिव कुमार चौरसिया समेत 14 लोगों का ग्रुप 12 अप्रैल को कश्मीर के लिए यहां रवाना हुआ था। इसमें शिव की पत्नी बबिता, उनके दोस्त राजेंद्र चौरसिया-उनकी पत्नी रेनू, मित्र सुभाष मौर्य, चंद्रशेखर निषाद समेत पांच दंपती व चार बच्चे तनू, शुभी, नैना, हर्षिता थे।
पहलगाम के पास बैसरन घाटी में प्रकृति का नजारा देखकर आनंदित होते प्रतापगढ़ से गए पर्यटक।सौ. पर्यटक ग्रुप
यह लोग श्रीनगर में कई दिन बिताने के बाद पहलगाम जाने का प्लान बनाया था। वहां जाने पर मन में प्लान बदलने का विचार आया। ऐसे में एक दिन श्रीनगर रुकने के बाद पहलगाम के लिए कूच कर दिया।
डिब्रूगढ़ में होटल लिया। वहां देखने के लिए कई जगह है। यह लोग 17 अप्रैल को सुबह बैसरन घाटी के लिए खच्चर से चल पड़े। करीब तीन बजे पहुंचे। पांच बजे तक रहे। इसके बाद वापस हो गए।
पर्यटकों द्वारा खींची गई बैसरन घाटी के उस स्थल की तस्वीर, जहां हुई घटना।
जत्थे में शामिल लोग दैनिक जागरण से यात्रा की यादें साझा करते हुए कहने लगे...टीवी पर हमले की तस्वीरें देखी तो वहीं जगह दिखी, जहां पर हम लोग रुके थे। चाय-नाश्ता कर रहे थे। हे भगवान...अगर हम लोग वहां रुक गए होते तो पता नहीं हमारा क्या होता। अच्छा हुआ पहलगाम घूमकर हट गए थे।
मिनी स्विट्जरलैंड जैसा, रास्ता दुर्गम
बैसरन घाटी को प्रकृति ने क्या खूब संवारा है। इसकी सुंदरता के कारण इसे कश्मीर का मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। कश्मीर जाने वाले लोग वहां जरूर पहुंचाना चाहते हैं। यहां से कई अन्य घाटियों का नजारा भी अनूठा दिखता है।
लोग देखते हैं और रील बनाते हैं। पहलगाम से ही अमरनाथ दर्शन की यात्रा को भी रफ्तार मिलती है। पहलगाम से इस घाटी की दूरी करीब छह किलोमीटर है, जो बहुत ऊंचाई पर है। वहां जाने का रास्ता का साधन केवल खच्चर है। कोई गाड़ी, मोटर नहीं चलती।
पैदल जाना भी लगभग असंभव होता है। खच्चर से भी वहां पहुंचने में करीब चार से पांच घंटे लगते हैं। तब तक खच्चर वाले वहीं खड़े रहते हैं। फिर वह सवारी को लेकर पहलगाम आते हैं। एक सवारी का भाड़ा 2800 से 3000 रुपये तक लेते हैं। यहां पर फोर्स की तैनाती अक्सर नहीं रहती।
इसीलिए आतंकियों ने हमले के लिए इस जगह को चुना, ताकि उनको जवाबी फायरिंग का सामना न करना पड़े और वह अपने मकसद में सफल हो जाएं। पर्यटकों के जत्थे ने यहां पर कुछ कश्मीरी फल और वहां के खाद्य पदार्थों का सेवन किया। वहां से परिवार समेत यह लोग अगले दिन डल झील चले गए। वहां से 19 अप्रैल की रात ट्रेन पकड़कर घर चल दिए।
जेहादी बनाने की साजिश में हमला
पर्यटकों का मानना है कि यह हमला बेशक पाक की कायराना हरकत है, लेकिन इसे बाहर से आए आतंकियों ने नहीं किया। यह इस घाटी के आसपास रहने वाले लोकल आतंकियों से कराया गया है।
पाक में बैठक आतंकी संगठन चाहते हैं कि पर्यटकों को इतना आतंकित कर दिया जाए कि वह कश्मीर आना बंद कर दें, जिससे यहां के अधिकांश मुस्लिम दुकानदार जब भूखों को मरने लगेंगे तो वह जिहादी बनेंगे।
उनकी बात मानेंगे और इस तरह वह पाकिस्तान के साथ मिलकर अपने आतंकवाद को बढ़ावा दे सकेंगे, लेकिन पूरे देश को पक्का भरोसा है कि भारत सरकार उनको ठीक से सबक सिखाएगी।
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