प्रतापगढ़, जागरण संवाददाता: कंडे से होलिका जलाने का अभियान सफल रहा। दैनिक जागरण अभियान एक मुहल्ला-एक होलिका कंडों के साथ से जुड़कर जनपद में मंगलवार शाम हर ओर कंडों की होलिका धधक उठी। लोगों ने जयकारे लगाए व होलिका की परिक्रमा करके पूजन किया।
जनपद में 2793 स्थानों पर होलिका दहन किया गया। इस बार दो दिन होलिका जलाने का भ्रम भी रहा। हालांकि अधिकांश लोगों ने मंगलवार का दिन ही इसके लिए उपयुक्त माना। शाम को मंत्रोच्चार के साथ कंडों की होलिका जल उठी।
लोग सनातन परंपरा को जीवंत होते देख प्रसन्न होकर भगवान नरसिंह के रूप में विष्णुजी के जयकारे लगाने लगे। डीजे, बैंड लगाकर होली गीतों पर वह थिरकने लगे। कंडे खरीदने व हाेलिका कमेटी को समर्पित करने का जो उत्साह कई दिन से बना था, उसे सार्थक होता देखा गया।
खासकर चौक के पास मारवाड़ी मुहल्ले की होलिका मुख्य रही। यहां पर दहन से पहले पूजा पद्धति राजस्थानी विधि से पूरी की गई। महिलाओं ने पारंपरिक परिधान में पूजन किया। होलिका दहन स्थलों पर हुडदंग न होने पाए, इस पर पुलिस सतर्क रही।
सर्वाधिक 180 स्थल महेशगंज में होने से वहां की पुलिस अधिक चौकन्नी रही। सबसे कम 56 स्थान हथिगवां में चिह्नित रहे। इस बार जागरण अभियान के प्रयास से 29 स्थल कम भी हुए हैं। होलिका दहन के बाद बाद अब बुधवार को फागुनी फुहार छाएगी। रंग बरसेगा और अबीर-गुलाल उड़ाया जाएगा।
महामूर्ख सम्मेलन आज
गोपाल मंदिर में होली पर होने वाला महामूर्ख समरसता सम्मेलन बुधवार को दोपहर तीन बजे से होगा। पूर्व एमएलसी विंध्यवासिनी कुमार के संयोजन में यहां पर प्राचीन परंपरा को एक बार फिर से संजीवनी दी जाएगी। चुटकुले होंगे, कविताएं सुनाई जाएंगी, राजनीतिक व्यंग्य के तीर भी चलेंगे और हंसी-ठिठोली के बीच दिलों का मलाल भी दूर होगा।
नवान्न यज्ञ ही है होलिका दहन
होली उत्सव की प्राचीन परंपरा है। इससे अनेक कथानक जुड़े हुए हैं। इसका वर्णन वेद में पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। वैदिक काल से नई फसल पकने के उल्लास में समरसता समृद्धि आरोग्य पाने व कष्टों, कुरीतियों के उन्मूलन के पर्व के रूप में होलिकोत्सव मनाया जाता है।
धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडेय अनिरुद्ध रामानुजदास बताते हैं कि जौ, चना, गेहूं आदि की नई फसल की बालियों को अग्नि में होम करने व भूनने से इस पर्व को नवशस्येष्ठी यज्ञ के रूप में मनाया जाता रहा है। नए अनाज की भूंनी हुई वालियों वा दानों को संस्कृत में होलाका कहा जाने से इस नवान्न यज्ञ का नाम होलिका प्रचलित हो गया।
नवान्न यज्ञ की इस वैदिक परंपरा के साथ भक्त प्रहलाद होलिका का प्रसंग, राजा रघु का प्रसंग, पूतना वध व राजा हर्षवर्धन आदि के प्रसंग जुड़ते चले गए। इसका वर्णन अथर्ववेद, काठात गृह्य सूत्र, नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
यही नहीं विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ में ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख है। अलबरूनी आदि मुस्लिम इतिहासकारों ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है।