Nehru Death Anniversary: पंडित नेहरू को बेल्हा खींच लाया था किसान आंदोलन, यहीं से शुरू किया था राजनीतिक सफर
नेहरू के संपर्क में आ जाने से किसान आंदोलन ने राजनीतिक रूप ले लिया था। पट्टी के किसानों ने कई बार आनंद भवन में जाकर नेहरू से मुलाकात की। उनके बुलावे पर 21-22 सितंबर 1920 को नेहरू जी फिर प्रतापगढ़ आए।
प्रतापगढ़, जागरण संवाददाता: अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजादी दिलाने में जनपद का योगदान कम नहीं है। यहां पर बाबा रामचंद्र व झिंगुरी सिंह द्वारा चलाए गए किसान आंदोलन से प्रभावित होकर जून 1920 में पंडित जवाहर लाल नेहरू भी आए। पट्टी तहसील के रूर गांव वह किसानों से मिले, उनको संबोधित किया व उनका उत्साहवर्धन किया था। हालांकि, उनसे जुड़े स्थल संवर नहीं सके।
अवध किसान आंदोलन देश के पहले प्रधानमंत्री पं. नेहरू की पहली गंवई पाठशाला थी, जिसने उन्हें भूख, गरीबी, बदहाली से साक्षात्कार कराया था। यहां आने पर उन्हें भारत को समझने और समझाने का अवसर मिला। किसान आंदोलन को गतिशील बनाने के लिए नेहरू जी ने अवध किसान कांग्रेस का गठन भी कराया था। इसके अध्यक्ष पं. गौरीशंकर मिश्र बनाए गए थे।
नेहरू के संपर्क में आ जाने से किसान आंदोलन ने राजनीतिक रूप ले लिया था। पट्टी के किसानों ने कई बार आनंद भवन में जाकर नेहरू से मुलाकात की। उनके बुलावे पर 21-22 सितंबर 1920 को नेहरू जी फिर प्रतापगढ़ आए। महुली एवं देवली गांव में किसान सभा को संबोधित किया था।
जवाहरलाल नेहरू ने जितना अवध किसान आंदोलन को दिया नहीं, उससे कहीं ज्यादा, अपने लिए ग्रहण किया। अपनी राजनैतिक पकड़ को मजबूत बनाया और स्वयं को एक वैचारिक रूप से प्रतिस्थापित प्रधानमंत्री के पद तक ले जाने में सफल हुए। बाबा रामचंद्र ने किसान आंदोलन के राष्ट्रीय राजनीति की अगुवाई करने वाली कांग्रेस से जोड़ दिया था।
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष डाॅ. लाल जी त्रिपाठी बताते हैं कि पं. नेहरू का प्रतापगढ़ से करीबी रिश्ता रहा है। उन्होंने यहां आकर किसान आंदोलन को धार दी थी। यहीं से उन्होंने राजनीति का श्री गणेश किया। नेहरू जी पं. माता बदल पांडेय के घर कचहरी रोड पर भी आए थे। पट्टी के रूर में उनकी स्मृतियां सुरक्षित हैं।