Road Safety: अकेले में रो पड़ते ये हैं तीन बच्चे, सिसकियां करती हैं सवाल, मम्मी-पापा...कहां चले गए छोड़कर
आए दिन मार्ग दुर्घटना में हंसती मुस्कराती जिंदगी चली जा रही है। इस दर्द में गौरा पूरे बदल के वह तीन बच्चे जी रहे हैं जिनके पिता को हादसे ने लीला था। सदमे में मां भी चल बसी। अब ये तीन भाई-बहन चाचा के परिवार के सहारे हैं।

प्रतापगढ़, जेएनएन। मम्मी-पापा तुम हमें यूं छोड़कर कहां चले गए...। दोनों लोग इतने कठोर कैसे हो गए...। अब हम किसके सहारे रहें। किससे कहें कि मेला घुमा दो, मनपसंद कपड़े दिला दो...। आंसुओं में डूबे यह सवाल उन मासूम बच्चों जान्हवी, मुस्कान और आर्यन की सिसकियां कर रही हैं, जिनके सिर से सड़क हादसे ने माता-पिता दोनों का साया छीन लिया। उनकी याद हर पल आती है। बच्चे कभी स्कूल में सिसक उठते हैं तो कभी घर के काेने में राेते हैं। कोई लाख समझाए, पर उनकी तड़प कम नहीं होती। अंत में वही एक दूसरे को समझाते हैं। उनको देखकर कई लोग तो सांत्वना देने का साहस भी खो देते हैं।
टक्कर लगने से पति की मौत के बाद पत्नी की थमी सांस
कहते हैं कि भागती दौड़ती जिंदगी कब कहां थम जाए, कोई भरोसा नहीं है। आए दिन मार्ग दुर्घटना में हंसती मुस्कराती जिंदगी चली जा रही है। इस दर्द में गौरा पूरे बदल के वह तीन बच्चे जी रहे हैं, जिनके पिता को हादसे ने लीला था। सदमे में मां भी चल बसी। पिछले महीने गांव के 35 साल का सोनू लाल सोनी घर से भोर में बाइक पर रानीगंज की तरफ रवाना हुआ था।
मीरपुर शिवनाथ तारा के आगे देवकी विद्या मंदिर के पास लखनऊ-वाराणसी हाईवे पर चार पहिया वाहन ने टक्कर मार दी। इससे सोनूलाल सोनी की मौके पर मौत हो गई थी। फोन पर मौत की सूचना उसकी पत्नी 30 साल की नीतू सोनी को मिली तो उसकी भी सांस थम गई।
एक साथ उठी पति-पत्नी की अर्थी और बच्चे हो गए बेसहारा
पति-पत्नी की अर्थी एक साथ उठी थी। इनके तीनों बच्चे बेसहारा हो गए। हालांकि इनकी जिम्मेदारी चाचा मोनूलाल व बाबा प्यारेलाल देख रहे हैं, पर ममता के आंचल व पिता के संरक्षण की कमी तो नहीं पूरी कर सकते...। घर की माली हालत ठीक नहीं है। ऐसे में इनकी पढ़ाई पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सोनू दो भाई में बड़ा था। गौरा में कास्मेटिक की दुकान खोला था। उसी से अपना गुजारा करने के साथ बच्चों की पढ़ाई करवाता था।
बड़ी बेटी रखती है छोटे भाई-बहन का ख्याल
दोनों के एक साथ इस दुनिया से चले जाने से बड़ी बेटी जान्हवी पर 15 वर्ष की अवस्था में अपनी छोटी बहन 14 साल की मुस्कान और भाई 11 साल के आर्यन की जिम्मेदारी आ गई। दोनों बेटियां कक्षा नौ में पढ़ती हैं। बेटा कक्षा पांच में है। बच्चों के बाबा व चाचा फेरी करके जेवरात का काम छोटे पैमाने पर करते हैं, जिससे किसी तरह दाल-रोटी ही चल पाती है।
जागरण ने पुचकारा तो बच्चे अपना दुख-दर्द बताते हुए रो पड़े। कहने लगे कि उनके सपने बिखर गए। जिंदगी की खुशियां चली गईं। यही नहीं प्यारेलाल सोनी व दादी धर्मा देवी भी उस मनहूस घटना को याद करके फफक पड़ती हैं। वह बताने लगीं कि बेटे-बहू के बिना घर काटने को दौड़ता है, पर क्या करें...जीना पड़ रहा है...अपने मांग मौत भी तो नहीं मिलती।
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