पंडित जी नहीं मिले तो खुद स्थापित करिए कलश
राजनारायण शुक्ल राजन, प्रतापगढ़ : अगर आप जगदंबे की पूजा का कलश स्थापित करना चाहते हैं अ
राजनारायण शुक्ल राजन, प्रतापगढ़ : अगर आप जगदंबे की पूजा का कलश स्थापित करना चाहते हैं और आपको आसानी से आचार्य या पंडित नहीं मिल रहे हैं, तो परेशान न हों। मानसिक संकल्प लेकर लौकिक विधि से आप स्वयं कलश सजा सकते हैं। ऐसा करना धर्म-शास्त्र विरुद्ध भी नहीं होगा।
नवदुर्गा की कृपा की फुहार लेकर वासंतिक नवरात्र आ गया है। रविवार को प्रात: से घर-घर कलश स्थापित होंगे, पर शहर में इतने आचार्य व पंडित नहीं हैं, कि हर घर में मंत्रों की गूंज हो। श्रद्धालुओं के सापेक्ष आचार्यो की संख्या कम होने हजारों श्रद्धालु मुश्किल में पड़े हैं। उनको नहीं सूझ रहा है कि क्या करें, कैसे करें, कि मातारानी सुख-सौभाग्य से कनेक्शन जोड़ दें। इस समस्या पर दैनिक जागरण ने कई विद्वानों से परिचर्चा की। उनसे पूछा कि बात कैसे बन सकती है। इसमें सभी ने एक स्वर से कहा कि वैदिक विधि तो सनातन है ही, पर अगर उसके लिए आचार्य नहीं मिल पा रहे हैं तो घबराए नहीं। स्वयं ही कलश स्थापित करें। मां भाव पर प्रसन्न होकर कृपा की गठरी खोलेंगीं। वीएन मेहता संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य पं. ओम प्रकाश पांडेय आचार्य तो साफ कहते हैं कि पूजा की दो विधियां होती हैं, पहली वैदिक, दूसरी लौकिक। वैदिक यानी वेद सम्मत। देवों की भाषा संस्कृत है, इसलिए इसमें संस्कृत के मंत्रों का प्रयोग अनिवार्य होता है। लौकिक विधि में ¨हदी या क्षेत्रीय बोली में मन से संकल्प लेकर मन की प्रसन्नता के लिए पूजन करते हैं।
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यह करना है आपको
स्नान करें, मिट्टी का कलश लें, उसमें थोड़ा सा गंगा जल डालकर बाकी कलश को जल से भरें। उसमें हल्दी की गांठ, दूब, सुपाड़ी, अक्षत व आम के पल्लव डालें। उसके ऊपर पानी युक्त नारियल रखें। अब कलश तैयार है, इसे सात तरह के अन्न पर रख दें। सनातन रीति के अनुसार सबसे पहले पांच प्रमुख देवों पृथ्वी, गणेश, गौर, नवग्रह व कलश) का पूजन ऊं विष्णुए नम: कहते हुए करें। इसके बाद विशेष देवी-देवता (नवरात्र में दुर्गा जी) का पूजन करें। मां की प्रतिमा रखकर समर्पण भाव से उनको आहूत करें, देवी के मंत्र याद हों तो उसे भी बोलें। नवरात्र में मां के नौ स्वरूप होते हैं। ऐसे में हर दिन अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करना श्रेयस्कर होगा।
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अष्टमी-नवमी एक ही दिन
इस बार वासंतिक नवरात्र आठ दिनों का है। रविवार 18 मार्च को सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक कलश स्थापित करें तो श्रेष्ठ होगा। अष्टमी शनिवार 24 मार्च को दिन में 09:26 बजे से लग जाएगी और सोमवार को प्रात: 07:04 बजे तक है। ऐसे में सूर्योदय के अनुसार व्रत का विधान होने के कारण अष्टमी रविवार को पड़ेगी और नवमी भी इसी दिन मानी गई है।
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