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    पत्नी करती रहीं इंतजार, जंगल से नहीं लौटे जमींदार

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 10 Feb 2021 11:53 PM (IST)

    ब्रिटिश हुकूमत के दौर में 486 गांवों के जमीदार गोपाल सेवक दुबे के नाम से बीसलपुर में मुहल्ला दुबे प्रसिद्ध हुआ। कहा जाता है कि वह मां लक्ष्मी के अनन्य ...और पढ़ें

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    पत्नी करती रहीं इंतजार, जंगल से नहीं लौटे जमींदार

    पीलीभीत,जेएनएन : ब्रिटिश हुकूमत के दौर में 486 गांवों के जमीदार गोपाल सेवक दुबे के नाम से बीसलपुर में मुहल्ला दुबे प्रसिद्ध हुआ। कहा जाता है कि वह मां लक्ष्मी के अनन्य भक्त थे। लक्ष्मी के दर्शन होने के बाद वह ऐसे गायब हुए कि दोबारा अपने महल में नहीं लौटे। बाद में उनके नाम पर ही मुहल्ला दुबे का नामकरण कर दिया गया । लगभग 100 बीघा क्षेत्र में बना उनका महल अब पूरी तरह से खंडहर हो चुका है।

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    जिस जगह मुहल्ला दुबे बसा हुआ है, वहां पर पहले अधिकांश हिस्से में बगीचे थे। आबादी कम थी। जमींदार गोपाल सेवक का विशाल महल बना हुआ था जो दुबे महल के नाम से जाना जाता था। वह ब्रिटिश हुकूमत में नगर के सबसे धनी जमींदार के रूप में जाने जाते थे। 486 ग्रामों में उनकी जमींदारी थी। महल के पश्चिम दिशा में सेवक सरोवर बना था। स्नान करने के लिए जमींदार रानी रोहणी देवी जाया करते थे। स्नान के लिए अंदर ही अंदर सुरंग बनवा दी थी। सुरंग स्नानघर तक जाती थी। पुरुषों के नहाने के लिए इस सरोवर में उत्तर दिशा में गऊघाट बनवाया गया था। सरोवर के पास फलों का बगीचा लगाया गया था। कुछ दूरी पर भगवान शिव का मंदिर बना था। महल के पूरब दिशा में हाथियों व घोड़ों को बांधने के लिए स्थान था। हाथियों को सजाने के लिए जमींदार ने स्वर्णकार लोगों को पास में ही बस्ती बनाकर रखा था। हाथियों के काफिले के साथ जमींदार निकला करते थे। संगीत का बहुत शौक था उनके दरबार में संगीतकार आकर प्रस्तुति देते थे। बाद में कहा जाता है कि एक दिन मां लक्ष्मी के दर्शन पाकर वह जंगल चले गए। फिर लौटकर नहीं आए। पत्नी कई वर्षों तक प्रतीक्षा करती रहीं। गोपाल सेवक की ओर से पिता सेवक राम दुबे का बनाया गया समाधि स्थल आज भी है।

    ब्रिटिश हुकूमत के दौर में गोपाल सेवक बड़े जमींदार थे। उनके नाम से ही मुहल्ला दुबे का नाम पड़ा है। दुबे सरोवर व दुबे समाधि स्थल आज भी इस खानदान की संपन्नता का प्रतीक बने हुए हैं।

    मनोज दुबे, इतिहासकार

    गोपाल सेवक दुबे के नाम से मुहल्ला दुबे मशहूर हुआ। ब्रिटिश हुकूमत में वह नगर के धनाढ्य माने जाते थ। इनका महल सबसे बड़ा था।

    डॉ. अश्वनी गंगवार

    गोपाल सेवक दुबे ने शुक्ल व मिश्र कुल के ब्राह्मणों को हरदोई से बुलाकर बसाया था। पूरा मुहल्ला उनके नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र उनकी जमींदारी का मुख्य हिस्सा था। अंग्रेजी हकूमत में उनका बोलबाला था।

    रमेश शुक्ल

    अपनी पुस्तक पहचान बीसलपुर में नगर के धनाढ्य जमींदार गोपाल सेवक की ओर से बनवाए गए दुबे सरोवर के बारे में लिखा है, उनके नाम से मुहल्ला दुबे का नाम जाना जाता है। वह अंग्रेजी हुकूमत में नगर के सबसे धनाड्य जमींदार थे।

    सुधीर विद्यार्थी, क्रांतिकारी साहित्यकार