Pilibhit Lok Sabha Seat : दूसरे आम चुनाव में ही लड़खड़ा गई थी कांग्रेस, 1984 के बाद से नहीं जीत सकी सीट
वर्ष 1952 में जब लोकसभा का पहला चुनाव हुआ तो कांग्रेस का काफी जोर था। लोग कांग्रेस को आजादी दिलाने वाली पार्टी मानते थे। उस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मुकुंद लाल अग्रवाल जीते थे। इसके बाद 1957 में दूसरा चुनाव हुआ। इसमें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से बरेली जिले के निवासी कुंवर मोहन स्वरूप को प्रत्याशी बनाया गया। उन्होंने कांग्रेस के मुकुंद लाल को हराकर प्रसोपा का परचम लहराया।
जागरण संवाददाता, पीलीभीत : देश को आजादी मिलने के बाद पहला आम चुनाव 1952 में हुआ, तब कांग्रेस के मुकुंद लाल जीते लेकिन इसके बाद 1957, 62, 67 के चुनाव में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर कुंवर मोहन स्वरूप से लगातार तीन चुनाव जीते थे। वह चुनावी हैट्रिक लगाने वाले इस सीट के पहले सांसद रहे।
कांग्रेस को सीट वापस पाने के लिए वर्ष 1971 के चुनाव तक इंतजार करना पड़ा। इसके बाद 80 और 84 के चुनाव में भी कांग्रेस ने विजय पाई। 84 के बाद से अब तक कांग्रेस यहां सीट जीतने के लिए तरस रही। पिछले चुनाव और इस बार तो कांग्रेस का प्रत्याशी ही नहीं है।
1952 में कांग्रेस का था दबदबा
वर्ष 1952 में जब लोकसभा का पहला चुनाव हुआ तो कांग्रेस का काफी जोर था। लोग कांग्रेस को आजादी दिलाने वाली पार्टी मानते थे। उस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मुकुंद लाल अग्रवाल जीते थे। इसके बाद 1957 में दूसरा चुनाव हुआ। इसमें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से बरेली जिले के निवासी कुंवर मोहन स्वरूप को प्रत्याशी बनाया गया। उन्होंने कांग्रेस के मुकुंद लाल को हराकर प्रसोपा का परचम लहराया।प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 80 हजार 809 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को 55 हजार 746 वोट ही मिल सके थे। इसके बाद 1962 के चुनाव में प्रसोपा ने फिर कुंवर मोहन स्वरूप पर ही भरोसा जताते हुए चुनाव मैदान में उतारा। दूसरी बार भी उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मुकुंद लाल अग्रवाल को पराजित कर दिया। प्रसोपा को 59 हजार 924, कांग्रेस को 55 हजार 192 और जनसंघ को 38 हजार 11 वोट मिले थे।
तीन चुनाव में लगातार हारी कांग्रेस
वर्ष 1967 के आम चुनाव में कुंवर मोहन स्वरूप फिर प्रसोपा से ही लड़े। इस बार कांग्रेस की ओर से शमशुल हसन खां को चुनाव मैदान में उतारा गया लेकिन सीट फिर प्रसोपा ने जीत ली। इस तरह लगातार तीन चुनाव में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। वर्ष 1971 का चुनाव आते आते कांग्रेस विभाजित हो चुकी थी। ऐसे में कुंवर मोहन स्वरूप प्रसोपा छोड़कर इंदिरा कांग्रेस में शामिल हो चुके थे।हरीश गंगवार ने की थी जीत दर्ज
इंदिरा कांग्रेस ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में मोहन स्वरूप के माध्यम से कांग्रेस को सीट वापस मिल सकी लेकिन 1977 की जनता लहर में शमशुल हसन खां से कांग्रेस से सीट छीन ली। वर्ष 1980 के चुनाव में कांग्रेस के हरीश गंगवार फिर जीत गए।तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में लोकसभा चुनाव हए तो कांग्रेस ने उप्र प्रदेश की तत्कालीन सरकार में मंत्री भानु प्रताप सिंह को मैदान में उतारा। इंदिरा गांधी की हत्या हो जाने के कारण कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर चल रही थी। लिहाजा भानु प्रताप सिंह ने 63.84 प्रतिशत वोट प्राप्त करके शानदार विजय हासिल की। उस चुनाव के बाद से कांग्रेस को फिर इस सीट पर अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।