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    प्रवासी मजदूरों ने घर आते ही शुरू की खेती

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 26 May 2020 11:23 PM (IST)

    घरों पर लौटे जिन प्रवासी मजदूरों के पास जमीन है उन्होंने खेतीबाड़ी शुरू कर दी है। जिन लोगों के पास जमीन नहीं है वह मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं लेकिन म ...और पढ़ें

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    प्रवासी मजदूरों ने घर आते ही शुरू की खेती

    जेएनएन, पूरनपुर (पीलीभीत) : घरों पर लौटे जिन प्रवासी मजदूरों के पास जमीन है उन्होंने खेतीबाड़ी शुरू कर दी है। जिन लोगों के पास जमीन नहीं है वह मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं लेकिन मनरेगा में कुछ दिन ही काम मिल पाने से वह खाली हो गए हैं। घर पर ही काम धंधा कर जीवन यापन कर बाहर काम न करने जाने की बात कह रहे हैं। देश के हरियाणा, दिल्ली, गुडगांव, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मुंबई सहित कई राज्यों से लौटे लोग शुरू में तो अपने घरों में रहे लेकिन मनरेगा के तहत गांव में रोजगार मिल जाने के कारण उन्हें खाली नहीं बैठना पड़ा। मनरेगा का काम कुछ दिन तक ही चला। जिन लोगों के पास अपनी जमीन है उन लोगों ने खेतीबाड़ी शुरू कर दी। धान लगाने की तैयारी में जमीन की खुदाई और जोताई का काम शुरू कर दिया। जिनके पास जमीन नहीं है उन लोगों ने मनरेगा के तहत काम किया और कुछ जगह मजदूरी भी शुरू कर दी है। प्रवासी बताते हैं कि लाकडाउन में उन्हें गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बमुश्किल वह घरों पर पहुंचे। अब बाहर के राज्यों में काम करने नहीं जाएंगे। यहीं धंधा कर अपना और परिवार का पालन पोषण करेंगे।लाकडाउन में कमाया हुआ अधिकांश धन खर्च हो जाने पर प्रवासी मजदूर हताश और निराश नजर आ रहे हैं लेकिन घर में अपनों के बीच पहुंचने पर चेहरे पर खुशी है।

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    गुरुग्राम से घर आने तक रास्ते में काफी तकलीफ हुई। घर आने के बाद कुछ दिन मनरेगा में काम मिला लेकिन अब खाली बैठे हैं। परिवार के भरण पोषण की चिता सता रही है। घर पर ही काम करेगें लेकिन बाहर नही जाएंगें।

    अनिल कुमार

    पिता के पास कुछ जमीन है। खेतीबाड़ी करने के साथ मनरेगा में काम मिल रहा है। मनरेगा में अगर इसी तरह से काम मिलता रहे हैं तो लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा। लाकडाउन के समय कई समस्याएं सामने आई थी।

    सोमिन्दर कुमार

    लाकडाउन के समय हरियाणा से दिल्ली तक पैदल आना पड़ा। दिल्ली से बरेली तक एक मैजिक से आया। बरेली से पीलीभीत तक पैदल पहुंचा। रास्ते में दो जगह गुरुद्वारों पर भोजन की व्यवस्था हो गई। घर पर हूं काम की तलाश कर रहा हूं।

    सोनू वर्मा

    दिल्ली की एक फैक्ट्री में काम करता था। फैक्ट्री बंद हो जाने से घर की तरफ रूख किया। कमाया हुआ रुपया भी अधिकांश खर्च हो गया। घर पर ही कुछ काम करने की सोच रहा हूं। अब बाहर नहीं जाएंगे।

    -विपिन कुमार