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परिस्थितिकी संतुलन में सहायक होते हैं पशु-पक्षी

धरती पर रहने वाले समस्त जीवों में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो समझदारी बुद्धि विवेक सद्भावना प्रेम करुणा उदारता आदि गुणों की विशेषताओं के कारण समस्त जीवधारियों से अलग स्थान रखता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 05:41 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 05:41 PM (IST)
परिस्थितिकी संतुलन में सहायक होते हैं पशु-पक्षी
परिस्थितिकी संतुलन में सहायक होते हैं पशु-पक्षी

धरती पर रहने वाले समस्त जीवों में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो समझदारी, बुद्धि, विवेक, सद्भावना, प्रेम, करुणा, उदारता आदि गुणों की विशेषताओं के कारण समस्त जीवधारियों से अलग स्थान रखता है। काम, क्रोध, वात्सल्य, आहार एवं विहार जैसे अन्य जीवधारियों में सामान्य रूप से देखने को मिलते हैं। पृथ्वी पर जब से मानव ने होश संभाला है, तभी से वह प्रकृति के मध्य रहकर जीव-जंतुओं, वनस्पति, जलचर, नभचर व उभयचरों के साथ अपना सामंजस्य स्थापित करता रहा है। वर्तमान में परिस्थितिकी तंत्र इसकी पुष्टि करता है कि मनुष्य का जीवन बिना प्रकृति के सहयोग के पृथ्वी पर संभव नहीं है। महर्षि वाल्मीकि के अंदर से प्रकृति के एक ²श्य को देखकर इतना द्रवित हो गए कि रामायण ग्रंथ का प्रारंभ ही प्रकृति का चित्रण करते हुए हो गया। वैदिक साहित्य से लेकर आधुनिक साहित्य तक बिना प्रकृति और प्राणियों के लिखा ही नहीं गया। हमारे ऋषि, मुनियों, साहित्यकारों, धर्म ग्रंथों ने बिना वन्य प्राणियों के मानव के सुखद जीवन की कल्पना भी नहीं की है। हिदू धर्म ग्रंथों में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए नियम भी बनाए गए। नाग पंचमी के दिन नाग पूजा, गणेश चतुर्थी को गजपति एवं मूषक की पूजा, भगवान श्रीकृष्ण के सिर पर मोर पंख लगाकर मयूर पूजा से यही संदेश मिलता है। इसके अलावा वट व पीपल जैसे वृक्ष जो वायुमंडल की सबसे ज्यादा कार्बन डायऑक्साइड ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। पूजा का वृक्ष बनाकर काटने से रोकने का सार्थक प्रयास किया गया। वन्य प्राणियों के साथ रहकर वाणभट्ट ने शुक्र कथा लिखी। कालिदास ने मेघदूत ग्रंथ की रचना भी प्राकृतिक सौंदर्य वन्य प्राणियों के साथ सुखद जीवन की कल्पना की। कहने का अभिप्राय यह है कि संसार में पशु-पक्षी, जीव-जंतु मनुष्य के साथ हमेशा रहे हैं और मनुष्य का साथ दिया। गाय तथा भैंस ऐसे पशु हैं जो वैदिक काल से आधुनिक काल तक मनुष्य के मित्र रहे। मनुष्य के भोजन एवं अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करते रहे। वन्य जीवों को हम दो भागों में बांट सकते हैं। एक वह जो मनुष्य के सहचर हैं। कुत्ते, बिल्ली, कौवे, गिलहरी, कोयल, चील, बाज, गिद्ध आदि जो हमारी परिस्थितिकी में संतुलन रखते हैं। दूसरे जीव-जंतु जो जंगलों में रहते हैं लेकिन मानव का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण संतुलन में सहयोग करते हैं। बहुत से प्राणी मनुष्य के निकट रहकर मनोरंजन करते हैं तो कुछ इतने वफादार होते हैं कि एक सच्चे मित्र की तरह हमारा साथ देते हैं। हम नागपंचमी पर सांप को दूध पिलाएं लेकिन सामने दिखाई दे तो मारने पर आमादा हो जाएं यह कहां का सिद्धांत? धरती पर समस्त प्राणी अपना अपना कार्य ईमानदारी से संपन्न करते हैं। शेर और बाघ बिना भूख के किसी प्राणी का शिकार नहीं करता है। हिरन भी अकारण किसी का अहित नहीं करता। आवश्यकता इस बात की है कि हमें पशु-पक्षियों के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। जीवों के प्रति क्रूरता की अपेक्षा दयाभावना, नफरत की जगह प्रेमभाव तथा उदारता रखना चाहिए। उनके प्राकृतिक वास को सहेजना चाहिए। जीव आक्रमक तभी होता है, जब उसको भोजन न मिले या प्राकृतिक वास छिन्न भिन्न कर दिया जाए। संरक्षित क्षेत्र बनाकर पशु-पक्षियों को संरक्षित करना आधुनिक वैज्ञानिक युग में परम आवश्यक है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमारा परिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होगा। मानव की करुणा, प्रेम, वात्सल्य, उदारता जैसी भावनाओं में कमी मानव और प्राणी दोनों के लिए ही हितकारी सिद्ध नहीं होगी।

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-डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्विवेदी, प्रधानाचार्य

गुरुनानक पब्लिक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, करनापुर शाहगढ़ (पीलीभीत)

मानव जीवन के लिए जीव-जंतुओं का महत्वपूर्ण स्थान

फोटो-2पीआइएलपी-19

प्राचीन काल के इतिहास में पशुओं का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पशु हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक हैं। जीव-जंतु हमारी जिदगी का एक अहम हिस्सा हैं। जीव-जंतु कभी हमें प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से लाभ प्रदान करते हैं। प्राचीनकाल में पृथ्वी पर सरीसृपों एवं डायनासोरों का विलुप्तीकरण प्राकृतिक प्रक्रिया का अंग समझा जाता था। परंतु वर्तमान में इनके विलुप्तीकरण का कारण मानवीय गतिविधियों एवं उसके क्रियाकलापों को माना गया है।आज वैज्ञानिक उन्नति एवं औद्योगिक विकास से पृथ्वी के पर्यावरण को बहुत हानि उठानी पड़ी है। सर्प, छिपकली, बिच्छू, शेर, चीता, बाघ, तेंदुआ की खालों की विदेशों में तस्करी होती है। गैंडे का उसके सींग के लिए और हाथी का उसके दांत के लिए निरंतर शिकार किया जाता रहा है। आज भारत में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए पूरे देश में राष्ट्रीय उद्यान, अभ्यारण्यों, पक्षी अभ्यारण्यों और अन्य जीव अभ्यारण्यों की स्थापना की गई है। जलीय जंतुओं में मगरमच्छ एवं घड़ियाल के प्रजनन तथा संव‌र्द्धन के लिए भी अनेक स्थानों पर केंद्र स्थापित किए गए हैं। यद्यपि इन वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार की ओर से तीव्र गति से प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु अभी भी इस दिशा में सुधार की आवश्यकता है। जंतुओं की तस्करी करने वालों के लिए सख्त कानून बनना चाहिए। पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले उद्योगों की स्थापना के लिए सुरक्षात्मक उपायों को कानूनन अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। सरकार तो अपना कार्य कर है लेकिन जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य निभाते हुए हमें जीव-जंतुओं के संरक्षण में सरकार का सहयोग करना चाहिए।

पूजा छाबड़ा, प्रधानाचार्य ज्ञान इंटरनेशनल स्कूल (पीलीभीत)


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