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    अच्छा व्यवहार ही सफलता की कुंजी

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 10 Sep 2020 05:05 AM (IST)

    दोस्तों आज हम जिस दुनिया में रह रहे हैं उसमें सबसे ज्यादा अगर कोई चीज महत्व रखती है तो वह हमारा व्यवहार ही है। व्यवहार सर्वप्रथम हमारी वाणी से पहचाना जाता है। वाणी में अमृत भी होता है और विष भी। यदि मधुरतापूर्ण व्यवहार करते हैं तो आसपास के लोग हमारी ओर प्रेमभाव से आकर्षित होते हैं और बात भी सुनते हैं हमारे विचारों का सम्मान करते हैं।

    अच्छा व्यवहार ही सफलता की कुंजी

    पीलीभीत,जेएनएन : दोस्तों आज हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, उसमें सबसे ज्यादा अगर कोई चीज महत्व रखती है तो वह हमारा व्यवहार ही है। व्यवहार सर्वप्रथम हमारी वाणी से पहचाना जाता है। वाणी में अमृत भी होता है और विष भी। यदि मधुरतापूर्ण व्यवहार करते हैं तो आसपास के लोग हमारी ओर प्रेमभाव से आकर्षित होते हैं और बात भी सुनते हैं, हमारे विचारों का सम्मान करते हैं। इन सभी तथ्यों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं। अत: व्यवहार में वाणी की मधुरता प्रमुख स्थान रखती हैं। आप लाख दिल से अच्छे हों लेकिन यदि आपकी भाषा अच्छी व मधुर नहीं है तो आपके द्वारा किए गए कार्य पर पानी फिर जाता है। अक्सर लोग अगर अच्छा आचरण नहीं करते हैं तो हमें भी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। उस स्थिति में हमें क्रोध नहीं करना चाहिए, बल्कि स्वयं पर संयम रखना चाहिए।

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    अच्छे के साथ अच्छा बनें पर बुरे के साथ बुरा नहीं, क्योंकि हीरे को हीरे से तराशा जा सकता है पर कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं हो सकता। इस पर एक छोटा सा उदाहरण याद आ रहा है जिसे आप के साथ साझा कर रही हूं। एक बार की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे थे तभी उनका एक शिष्य जो स्वभाव से थोड़ा क्रोधी था, उनके समक्ष आया और बोला, गुरुजी आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाए रहते हैं। न आप किसी पर क्रोध करते हैं और न ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं। कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए। संत बोले, मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूं। मेरा रहस्य ! वह क्या है गुरु जी। शिष्य ने आश्चर्य से पूछा। तुम अगले एक सप्ताह में मरने वाले हो, संत तुकाराम दु:खी होते हुए बोले। कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था। शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद लेकर वहां से चला गया। उस समय से शिष्य का स्वभाव बिल्कुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध न करता। अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता, जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया हो। उनसे माफी मांगता।

    देखते ही देखते संत की भविष्यवाणी को एक सप्ताह पूरा होने को आया। शिष्य ने सोचा चलो आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेता हूं। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला,गुरु जी मेरा समय पूरा होने वाला है। कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिए। मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र ! अच्छा पहले ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते। क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए। उन्हें अपशब्द कहे। संत तुकाराम ने प्रश्न किया। नहीं-नहीं, बिल्कुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे। मैं बेकार की बातों में कैसे गंवा सकता था। मैं तो सबसे प्रेम से मिला। जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था, उनसे भी क्षमा मांगी, शिष्य तत्परता से बोला। संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। जानता हूं कि मैं कभी भी मर सकता हूं। इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूं। यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था। उसने मन ही मन इस पाठ को याद रखने का प्रण किया और गुरु के दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ गया। वास्तव में हमारा व्यवहार ही ऐसा हथियार है, जिसके प्रयोग से इस दुनिया से जाने के बाद भी लोगों की यादों में हमेशा जीवित रहते हैं। यदि आप चाहते है कि आपकी जीवन यात्रा बिना बाधा के सफलता की ओर बढ़ती रहे, तो उसके लिए जैसे व्यवहार की अपेक्षा स्वयं के लिए करते हैं, वैसा ही व्यवहार हमें दूसरों के साथ भी करना चाहिए।

    -रंजीत सैहमी, प्रधानाध्यापक बेनहर पब्लिक स्कूल (पीलीभीत)