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    बीसलपुर का विकास बाबू तेज बहादुर की देन

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 17 Jan 2022 11:17 PM (IST)

    पीलीभीतजेएनएन लंबी कद काठी श्याम वर्ण चेहरे पर रोबीली मूंछ उनके व्यक्तित्व को काफी आकर्षक बना देती थी। हम बात कर रहे हैं कि एक जमाने में दिग्गज राजनीतिक नेता रहे बाबू तेज बहादुर गंगवार की। वह बीसलपुर सीट से चार बार विधायक रहे। प्रदेश की कांग्रेसी सरकार में लोक निर्माण मंत्री भी रहे। इसके अलावा विधानसभा की स्टीमेट कमेटी के चेयरमैन का पद भी संभाला। वर्तमान में बीसलपुर में विकास के जो भी बड़े काम दिख रहे वे उन्हीं की देन हैं। इसी वजह से आज भी वहां के बुजुर्ग उन्हें विकास पुरुष के नाम से जानते हैं।

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    बीसलपुर का विकास बाबू तेज बहादुर की देन

    पीलीभीत,जेएनएन : लंबी कद काठी, श्याम वर्ण, चेहरे पर रोबीली मूंछ उनके व्यक्तित्व को काफी आकर्षक बना देती थी। हम बात कर रहे हैं कि एक जमाने में दिग्गज राजनीतिक नेता रहे बाबू तेज बहादुर गंगवार की। वह बीसलपुर सीट से चार बार विधायक रहे। प्रदेश की कांग्रेसी सरकार में लोक निर्माण मंत्री भी रहे। इसके अलावा विधानसभा की स्टीमेट कमेटी के चेयरमैन का पद भी संभाला। वर्तमान में बीसलपुर में विकास के जो भी बड़े काम दिख रहे, वे उन्हीं की देन हैं। इसी वजह से आज भी वहां के बुजुर्ग उन्हें विकास पुरुष के नाम से जानते हैं।

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    अपनों के बीच बाबूजी के नाम से प्रसिद्ध रहे तेज बहादुर गंगवार ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत नौगवां संतोष न्याय पंचायत के सरपंच के चुनाव से की। इसी गांव के वह मूल निवासी थे। सरपंच का चुनाव जीतकर उन्होंने अपनी पहचान कायम की। साठ के दशक में ही जब बिलसंडा विकास खंड बना तो वह पहले ब्लाक प्रमुख चुने गए। बाद में वर्ष 1969 के विधानसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह की पार्टी बीकेडी से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। इसके बाद 1974 का चुनाव उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीता। हालांकि 1977 में जनता लहर के दौरान हुए विधानसभा चुनाव में वह पराजित हो गए लेकिन फिर 1980 और 1985 के दोनों चुनावों में उन्हें फिर शानदार जीत मिली। 1985 में चुनाव जीतने के बाद वह कांग्रेस की सरकार में लोक निर्माण मंत्री बनाए गए। बाद में जब मंत्री पद से हटे तो विधानसभा की स्टीमेट कमेटी के चेयरमैन बने। बीसलपुर की जनता ने जिस तरह उन्हें सिर आंखों पर बिठाया तो उसका कर्ज उन्होंने कई बड़े विकास कार्य कराकर चुकाया। बीसलपुर कस्बे में उन्होंने उस दौर में राजकीय स्नात्कोत्तर महाविद्यालय की स्थापना कराई, जब तहसील मुख्यालयों पर की कल्पना करना भी कठिन हुआ करता था। सहकारी चीनी मिल की स्थापना कराकर गन्ना किसानों को सुविधा दिलाई। कृषि उत्पादन मंडी समिति, जिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, बीसलपुर को बरेली से जोड़ने वाला देवहा नदी का पुल भी उन्हीं की देन है। विधायक या मंत्री रहने के दौरान जब भी वह गांव में होते तो छप्पर के नीचे बैठकर जनता दरबार लगाते। शहर की राजाबाग कालोनी में रहने वाले उनके पौत्र सौरभ गंगवार बताते हैं कि जो लोग फरियाद लेकर उनके जनता दरबार में पहुंचते थे तो सभी तो चाय अवश्य पिलवाते। दोपहर का समय होने पर भोजन की व्यवस्था सबके लिए रहती थी। यही कार्य दादाजी तब भी करते, जब लखनऊ में होते। जीवन के अंतिम समय तक वह राजनीति और समाजसेवा से जुड़े रहे। जिला सहकारी बैंक की स्थापना कराने और विधायक रहते हुए संचालक मंडल में पहले उपाध्यक्ष व चीफ प्रमोटर रहे। वर्ष 2002 का विधानसभा चुनाव अंतिम रहा। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से उनकी शुरू से ही मित्रता रही। जब कल्याण सिंह ने भाजपा से अलग हटकर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई तो बाबूजी को बीसलपुर से प्रत्याशी बनाया। पार्टी का चुनाव चिह्न देर से आने के कारण उन्हें नहीं मिल सका। इसका परिणाम यह रहा कि लगभग चार हजार मतों के अंतर से वह बसपा उम्मीदवार से पराजित हो गए थे। अलबत्ता भाजपा को तीसरे स्थान पर ढकेल दिया। वर्ष 2005 में उनका निधन हो गया लेकिन जब भी चुनाव आते हैं तो बीसलपुर में लोग बाबू तेज बहादुर गंगवार को याद करते हैं। शहर की राजा बाग कालोनी में हर साल उनकी पुण्यतिथि पर पौत्र सौरभ गंगवार की ओर से रखे जाने वाले श्रद्धांजलि सभा कार्यक्रम में काफी लोग एकत्र होते हैं।

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