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    अभी भी 'भगत के मंत्र' व भटार पर भरोसा

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 25 Jun 2017 01:42 AM (IST)

    पीलीभीत : कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी मंत्र को तो आपने पढ़ा ही होगा। सर्पदंश के शिकार बेटे कै

    अभी भी 'भगत के मंत्र' व भटार पर भरोसा

    पीलीभीत : कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी मंत्र को तो आपने पढ़ा ही होगा। सर्पदंश के शिकार बेटे कैलाश को लेकर किस प्रकार शहर के नामी डॉक्टर चड्ढा निढाल हो गए थे। नदी पार कर पहुंचे बूढ़े भगत ने मंत्र के सहारे कैलाश को मुफ्त में नई ¨जदगी दे दी। कहानी में पात्र भले ही काल्पनिक लगते हों, लेकिन नदी व जंगल किनारे के गांवों में सर्पदंश जैसी स्थिति का सोलह आना सच अभी भी यही है। पीलीभीत जिले में हर साल सर्पदंश की सैकड़ों घटनाएं होती हैं, कई लोग जान भी गवां बैठते हैं। इसके पीछे का सच यह है कि अधिकतर प्राथमिक या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एंटी स्नैक इंजेक्शन ही नहीं होता, जहां होता भी है वहां जटिल एवं खतरनाक प्रक्रिया के कारण लोग जाने से कतराते हैं। हांलाकि सीएमओ दावा करते हैं कि प्रत्येक सीएचसी-पीएचसी पर एंटी स्नैक इंजेक्शन है, लेकिन यह सच नहीं है।

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    शुक्रवार को सायंकाल खेत पर काम कर रहे जैतपुर निवासी चेतन प्रकाश को जब सांप ने डसा तो परिजनों ने किसी चिकित्सक के पास जाने के बजाय पूरी रात झाड़-फूंक वालों का चक्कर काटते रहे। यह बात उस नई नवेली दुल्हन चांदनी से भी छिपाई गई, जो महज तीन माह पहले चेतन के साथ सात फेरे लेकर आई थी। सबको पक्का यकीन था कि 'मंत्र' और भटार (औषधीय वनस्पति) की शक्ति बेकार नहीं जाएगी। आखिरकार सूर्योदय के साथ ही जब चेतन की चेतना पूरी तरह जवाब दे गई तो चांदनी को भी हकीकत पता चली। जंगल, नदी व नहरों से आच्छादित पीलीभीत जिले में सर्पदंश की घटनाएं आम बात हैं। ज्यादातर लोग इस बात से भी वाकिफ हैं कि सर्पों की गिनती भर प्रजातियां ही ऐसी हैं, जिनके दंश से आदमी की मृत्यु हो सकती है। बाकी प्रजातियां तो विषहीन सर्पों की हैं, जिन्हें देसज भाषा में पनिहा कहा जाता है। कई बार झाड़-फूंक कारगर हो जाता है। सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति की जान बचाने के लिए एंटी स्नैक इंजेक्शन आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की देन है। इस इंजेक्शन को तीन तरह के सर्पों के जहर के मिश्रण से तैयार किया गया है। उपचार की प्रक्रिया कुछ जटिल है। जिला अस्पताल में वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ. सीबी चौरसिया के अनुसार सर्पदंश से पीड़ित मरीज को एंटी स्नैक इंजेक्शन सीधे नहीं दिया जा सकता। पहले उस व्यक्ति पर इसका टेस्ट कर यह देखा जाता है कि इससे मरीज को एलर्जी तो नहीं हो रही। अगर टेस्ट से यह स्पष्ट हो जाता है कि मरीज को एलर्जी हो रही है तो फिर पहले एलर्जी को खत्म करने वाला इंजेक्शन देना पड़ता है। बाद में एंटी स्नैक इंजेक्शन देते हैं। यह कोई जरूरी नहीं कि एक या दो एंटी स्नैक इंजेक्शन देने से ही काम चल जाए। कई बार मरीज को 10-12 बार एंटी स्नैक इंजेक्शन देना पड़ता है। डॉ. चौरसिया के अनुसार सर्पदंश होने पर झाड़ फूंक के चक्कर में न पड़कर मरीज को तुरंत अस्पताल पहुंचाना चाहिए। सर्पदंश के तुरंत बाद जहां पर सर्प ने डसा है, उससे छह इंच ऊपर किसी कपड़े या रस्सी से बांध देना चाहिए। दंश वाले स्थान को खूब दबा-दबाकर वहां का खून बाहर निकाल देना चाहिए। इस खून के साथ सर्प का जहर भी बाहर निकलता है। बाद में उस स्थान को रगड़-रगड़ कर पानी से धो देना चाहिए। सर्पदंश के देसी इलाज और आधुनिक चिकित्सा दोनों में ही एक बात की समानता है। देसी इलाज करने वाले भी सर्पदंश वाले अंग को ऊपर से बांध देते हैं। साथ ही उस स्थान पर चीरा लगाकर दबाते हुए खून को निकालते हैं। इससे जहर का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। इसके बाद देसी इलाज करने वाले लोग भटार नामक पौधे की जड़ को पीसकर देशी घी में मिलाकर मरीज को पिलाते हैं। इससे मरीज मूर्छित नहीं होता और धीरे-धीरे भटार के प्रभाव से जहर का प्रभाव समाप्त होने लगता है। खास बात यह है कि सर्पदंश के तुरंत बाद अगर इलाज शुरू हो जाए तो मरीज की जान आसानी से बचाई जा सकती है।

    सर्पदंश से बचाव एवं उपचार- घबराएं नहीं शांत रहें, सर्पदंश हमेशा घातक नहीं होता। भागदौड़ न करें, क्योंकि इससे खून का दौरा बढ़ता है और शरीर में जहर तेजी से फैलता है।

    - दंशित अंग को हिलाएं डुलाएं नहीं। पैर में काटा हो तो लेट जाएं। हाथ में काटा हो तो पट्टी बांधकर लटका दें।

    - दंश स्थान के ऊपर खून रोकने के लिए रुमाल या रस्सी से बांध दे लेकिन बहुत दबाकर न बांधे, इससे गैंग्रीन का खतरा हो सकता है। सांप काटे दो घंटे हो गए हों तो न बांधे।

    - खाली सीरींज के अगले भाग को काटकर बेलन नुमा बना लें। इसे दंश वाले स्थान पर लगाकर जहर खींचें। ऐसा तुरंत करने पर काफी हद तक बचाव संभव है।

    जिला अस्पताल समेत सभी सीएचसी व पीएचसी पर एंटी स्नैक इंजेक्शन उपलब्ध हैं। सर्पदंश के तुरंत बाद मरीज को अस्पताल ले जाकर उपचार शुरू करा देना चाहिए। इसमें विलंब करना ठीक नहीं होता। झाड़-फूंक कराने के चक्कर में तो बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए।

    डॉ. ओपी ¨सह, सीएमओ।

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