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    दूसरों के गुण नहीं देखें दोष

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    Updated: Sun, 11 Oct 2015 10:36 PM (IST)

    पीलीभीत : गुण और दोष सिक्के के दो पहलु की तरह हैं। किसी भी व्यक्ति में ये दोनों ही चीजें विद्यमान रह

    पीलीभीत : गुण और दोष सिक्के के दो पहलु की तरह हैं। किसी भी व्यक्ति में ये दोनों ही चीजें विद्यमान रहती हैं। ऐसा कोई इंसान नहीं, जिसमें सिर्फ गुण ही गुण हो, कोई दोष न हो। इसी प्रकार ऐसा भी नहीं हो सकता है कि किसी के अंदर सिर्फ दोष ही हों कोई गुण न हो। व्यक्ति को चाहिए कि दूसरों के गुणों को देखे, उनमें दोष न ढूंढे। दोष ढूंढने ही हैं तो अपने अंतर्मन में झांकें। अपने अंदर के दोष दूर करके अच्छा इंसान बनने का प्रयत्न करना चाहिए। बच्चो को भी परिवार से ही यह सीख मिलना चाहिए कि वे आत्म अवलोकन करने की आदत डालें। अपनी बुद्धिमत्ता की परख स्वयं करना सीखें। भावना के स्तर पर चीजों को महसूस करें। अच्छी भावना के साथ किए जाने वाले कार्यों का परिणाम भी अनुकूल निकलता है।

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    अंत:करण से दोष निकालकर बनें गुणग्राही

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    मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज से ही सीखता है। जैसे समाज में रहेगा, उसका आचरण उसी के अनुरूप होगा। महाकवि संत तुलसीदास ने भी रामचरित मानस में लिखा है कि बिनु सत्संग विवेक न होई। अर्थात गुणवान बनने के लिए अच्छे लोगों का साथ करना चाहिए। लोग आत्म अवलोकन नहीं करते बल्कि दूसरों के दोष गिनाने लगते हैं। परिवार के बड़े लोग जब ऐसा करते हैं तो उसका असर बच्चों पर भी पड़ता है। बच्चों को शुरू से ही यह सिखाना चाहिए कि दूसरों के दोष न देखें बल्कि उनके गुणों को देखकर आत्मसात करने का प्रयत्न करें। अक्सर लोगों को दूसरों के दोष तो दिखाई देते हैं लेकिन उनके गुण नहीं। यह प्रवृत्ति उचित नहीं है। वास्तव में दूसरों को गुणों को देखकर ही हम अपने अंदर के दोष दूर कर सकते हैं। सभी महापुरुष, समाज सुधारक, संत-महात्मा आदि ने यही उपदेश दिया है कि हमेशा दूसरों के गुण देख-सुनकर गुणवान बनो। अपना आंतरिक अवलोकन करके अंत:करण से दोष निकालकर गुणग्राही बनना चाहिए। ऐसा करके ही समाज उत्थान में अपनी सही भूमिका निभा सकते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण समस्या आती है भावनात्मक। इस संबंध में एक कवि ने कहा है कि जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। भावहीन व्यक्ति पाषाण की तरह है। जो दूसरों को देखकर दुख महसूस न करे, उसे निष्ठुर ही कहेंगे। भावनात्मक एकता ही परिवार, समाज और राष्ट्र को एक द सरे से जोड़े रखती है। मनुष्य केवल बुद्धिबल के सहार ही समस्त प्राणि जगत पर शासन करता है। जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है। बुद्धि के अभाव में मनुष्य का कोई महत्व नहीं है।

    ब्रह्म शंकर गंगवार, प्रधानाचार्यसनातन धर्म बांके बिहारी राम इंटर कालेज, पीलीभीत

    क्या कहते हैं छात्र-छात्राएं

    फोटो-11पीआइएलपी-12अपने अंदर की कमियां खुद नहीं दिखाई देतीं। ऐसे में लगता है कि हम जो कर रहे हैं वह अच्छा ही है। दूसरों के गुणों को देखकर उसे अपनाना चाहिए।

    रेशू शर्मा, कक्षा आठ

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    हर समय दूसरों की कमियां नहीं निकालना चाहिए। उसके गुणों पर ध्यान दें। इससे खुद के लिए सीख मिलेगी। मैंने अपने परिवार से ही यह सीखा है कि सभी का सम्मान करो।

    विशाखा आर्या, कक्षा सात

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    सभी लोगों में कुछ न कुछ गुण अवश्य ही होते हैं। हमें चाहिए कि अच्छी बातें यहां भी मिलें, उन्हें सीखें और अमल करें। इसी में बुद्धिमानी है।

    साक्षी, कक्षा छह

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    बुद्धिमत्ता इसी में है कि दूसरों के दोष न देखें बल्कि उसके गुणों को अपने अंदर लाने का प्रयास करें। मेरे मम्मी-पापा का कहना है कि किसी भी कार्य को करने से पहले अपनी बुद्धि से विचार करें।

    मंगलम, कक्षा सात

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    कुदरत ने हर इंसान को किसी न किसी खूबी से नवाजा है। इंसान है तो उसमें दोष भी आ सकते हैं लेकिन अच्छी बातों को ही अपनाना चाहिए। अपनी अक्ल से निर्णय लेना चाहिए किसी के बहकावे में आकर कोई काम न करें।

    मो. कासिम, कक्षा आठ

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    अपने जेहन में इस बात को जरूर रखना चाहिए कि हम जो भी कार्य कर रहे हैं, वह किस तरह का है। उसके क्या फायदा और क्या नुकसान हो सकता है। घर-परिवार और स्कूल के साथ हमारी भावनाएं जुड़ी रहना चाहिए।

    मो. कैफ, कक्षा छह

    अभिभावकों की बात

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    बच्चों में शुरू से ही ये आदत डालना चाहिए कि वे दूसरों के गुणों को देखकर उसे आत्मसात करना सीखें। कोई भी निर्णय बुद्धिमत्ता के साथ लेना चाहिए। जल्दबाजी में कोई कार्य नहीं करना चाहिए। इससे नुकसान हो सकता है। बच्चों को समय समय पर आत्म अवलोकन करने की भी आदत होना चाहिए।

    राजेश स्वरूप वाजपेयी, अभिभावक

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    बच्चे हों या बड़े, आत्म अवलोकन सभी को करना चाहिए। हम जो भी कार्य कर रहे हैं, उसके परिणाम के बारे में सोचना चाहिए। परिवार के साथ ही सहपाठियों के साथ भावनात्मक संबंध बनाने से माहौल अच्छा रहता है। ऐसे बच्चे तेजी के साथ आगे बढ़ते हैं।कपिल आनंद, अभिभावक

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    बच्चे परिवार और स्कूल में अन्य लोगों को जैसा करते देखते हैं, वैसा ही करने लगते हैं। उन्हें यह सिखाया जाना आवश्यक है कि जो भी कार्य करें, उसे बुद्धिमत्ता के साथ करें। अपने अंदर गुणों का विकास करने के लिए आदर्श स्वरूप महापुरुषों की जीवनी जरूर पढ़ें।

    तर¨वदर पाल ¨सह, अभिभावक

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    बच्चे समय समय पर आत्म अवलोकन करें। पढ़ाई के साथ ही खेलकूद में कोई भी निर्णय बुद्धिमत्ता से लें। सहपाठियों एवं गुरुजनों के साथ भावनात्मक रिश्ता रखें तो कोई परेशानी नहीं होगी बल्कि इससे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी।वीरेंद्र गौड़, अभिभावक