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    यहां तो सचमुच 'गोबर-गणेश'

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    Updated: Wed, 16 Sep 2015 11:13 PM (IST)

    पीलीभीत : 'गोबर-गणेश' का भावार्थ लोग अलग-अलग तरीके से लगाते हैं। हमारे यहां पूजन में गोबर से गौ

    पीलीभीत : 'गोबर-गणेश' का भावार्थ लोग अलग-अलग तरीके से लगाते हैं। हमारे यहां पूजन में गोबर से गौरी-गणेश बनाने की परंपरा बहुत प्राचीन है। वक्त बदलने के साथ मिट्टी फिर प्लास्टर आफ पेरिस, टेराकोटा आदि से बनी मूर्तियां बाजार में आने लगीं तो गोबर गणेश की परंपरा पीछे छूट गई। नए दौर में गणेशजी की चायनीज मूर्तियां भी बाजार में आ गईं। इधर, भौती गौशाला (कानपुर) ने गोबर की इकोफ्रैंडली मूर्तियां बनानी शुरू कीं तो उसकी आमद तराई तक भी दिखाई पड़ने लगी। खास बात

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    यह है कि प्राकृतिक रंगों से रंगी गई यह मूर्तियां विसर्जित करने पर भी जल

    प्रदूषित नहीं करतीं और आसानी से घुल जाती है। गणेश चतुर्थी पर घरों में स्थापित करने के लिए गोबर की मूर्तियों ने बाजार में अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया है।

    'दिमाग में गोबर' 'गुड़-गोबर' व गोबर-गणेश जैसे मुहावरे भले ही अब नकारात्मक भाव में प्रयोग किए जाते हैं, लेकिन अतीत की बात करें तो हर मांगलिक अवसर या पूजा-पाठ के दौरान गोबर से भूमि लेपन करने के साथ गोबर से ही गौरी गणेश प्रतीक रूप में बनाए जाते रहे। यह परंपरा ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी जीवंत है। इसके पीछे एक वैज्ञानिक तथ्य भी है कि गोबर को वैक्टीरिया नाशक माना जाता है। पुराणों में कहा गया है कि गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है। इसके बाद बदले दौर में मिट्टी की मूर्तियां दीपावली या गणेश चतुर्थी के मौके पर बिकने लगीं। बीते करीब दो दशक से केमिकलयुक्त रंगों से रंगी प्लास्टर आफ पेरिस, टेराकोटा की मूर्तियां की मूर्तियों की भरमार हो गई। स्वाभाविक रूप से इन मूर्तियों का भी पूजन पश्चात नदियों में ही विसर्जन किया जाता है। प्लास्टर आफ पेरिस, टेराकोटा जैसे पदार्थ जहां जल में काफी हद तक अघुलनशील होते हैं, वहीं रंगों का केमिकल जलजीवों के लिए जहर बन जाता है। बीते कुछ वर्षों से चाइनीज मूर्तियों ने बाजार में जोरदार दस्तक दी। चिकनी और आकर्षक दिखने वाली इन मूर्तियों ने भी श्रद्धा के इस सरोवर में अपना स्थान बना लिया। चायनीज मूर्तियां भी विसर्जित किए जाने के बाद जल को प्रदूषित करती हैं। इन मूर्तियों के जब भूविसर्जन की बात आती है तो मान्यताएं आड़े आने लगती हैं। ऐसे में करीब तीन साल पहले भौती गौशाला कानपुर ने गोबर से मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया। इसके पहले भौती गौशाला ने गोबर से प्लाई, लट्ठे आदि बनाने का सफल प्रयोग किया है। गोबर में मसूर की कच्ची दाल व कुछ अन्य पदार्थ मिलाकर मिट्टी की ही तरह सांचे में गोबर का मिश्रण भरकर मूर्तियां तैयार कर दी जाती हैं। फिर इन्हें प्राकृतिक रंगों से रंग दिया जाता है। पीलीभीत में भी कुछ दुकानदारों ने पहली बार गोबर की बनी गणेश मूर्तियां मंगाई हैं। इनायतगंज के मूर्ति दुकानदार हेमंत कुमार बताते हैं कि पहले वे गोरखपुर व लखनऊ से मिट्टी की बनी मूर्तियां लाते थे। इस बार उन्होंने भौती गौशाला कानपुर से गोबर की गणेश मूर्तियां मंगाईं। कहते हैं कि इस मूर्ति के बारे में जिसे भी पता चलता है, वह शुद्धता एवं अपनी प्राचीन परंपराओं से जुड़ने के लिए इसे ही खरीदता है। मूर्ति दुकानदार मुन्नालाल कहते हैं कि हमने गोबर की जितनी मूर्तियां मंगाईं थीं, वे सब बिक गईं। गोबर की मूर्ति खरीदने वाले निरंजन कुंज निवासी संजीव मिश्र बताते हैं कि गोबर से गौरी-गणेश बनाने की परंपरा बहुत ही प्राचीन है। वर्तमान दौर में यदि हर कोई फिर उस परंपरा से जुड़कर गोबर की मूर्तियां स्थापित करने लगें तो नदियों को काफी हद तक प्रदूषण से बचाया जा सकता है।

    भौती गौशाला में बीते तीन वर्ष से गोबर से गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां बनाई जा रही हैं। इन मूर्तियों को रंगने में भी प्रकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार ये पूरी तरह इकोफ्रैंडली होती हैं। गोबर की मूर्तियों की बेहद डिमांड है। दीपावली के दौरान भी जितनी मूर्तियां तैयार कराई गई थीं, सब बिक गई थीं। गणेशोत्सव से पहले भी जब डिमांड आई तो गोबर की गणेश मूर्तियां तैयार कराई गईं। अन्य गौशालाएं भी गोबर की मूर्तियां बनाकर नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने में अपना योगदान दे सकती हैं।

    -पुरुषोत्तम तोषनीवाल, महामंत्री भौती गौशाला

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