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    सेल्हा बाबा दरगाह : उमड़ती है आस्था यहां

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    Updated: Thu, 28 Mar 2013 11:20 PM (IST)

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    पीलीभीत : बराही के जंगल में स्थित प्रख्यात सूफी संत सैय्यद सेल्हा बाबा के 29 मार्च से शुरू होने वाले 52वें उर्स को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। उर्स को लेकर व्यापक इंतजाम किये जा रहे हैं। घने जंगलों में स्थित सेल्हा बाबा की दरगाह सभी मजहबों के लोगों की आस्था का केन्द्र है तभी प्रति वर्ष यहां हजारों अकीदतमंद मन्नतें पूरी होने पर मुर्गे काटकर फातेहा (प्रसाद) दिलाते हैं। प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में सेल्हा बाबा की दरगाह एक अनूठी मिसाल है।

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    जनपद की तराई में बराही के जंगल में स्थित सेल्हा बाबा की दरगाह कभी बियावान जंगल में थी लेकिन वर्तमान में इस दरगाह के एक ओर आबादी बस गई है। आजादी से पूर्व इस इलाके में दरगाह को माधोटांडा कस्बे के नाजिम अली ने देखा था। उस समय बीहड़ जंगल में सिर्फ जानवरों की गौढ़ी बनाकर जानवर चराने वाले ग्वाले या फिर शिकारी ही जाते थे।

    सेल्हा बाबा की दरगाह अनेक किवदंतियों से जुड़ी है जिसमें उनकी शेर की सवारी होना, शिकारियों द्वारा शेर पर गोलियां चलाने के बावजूद शेर के गोली न लगना, गौढ़ी स्वामियों के जानवर जंगल में खो जाने पर उन्हें बाबा द्वारा खोजना आदि शामिल है।

    सेल्हा बाबा की दरगाह पर इस वर्ष 29 मार्च से 52वां उर्स-ए-पाक मनाया जा रहा है। इसको लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। वैसे तो पूरे वर्ष भर जायरीनों के आने का सिलसिला लगा रहता है लेकिन उर्स के दौरान जंगल में सिलसिला लगा रहता है। मेले के दौरान प्रबंध कमेटी की लापरवाही से अव्यवस्थायें हावी रहती हैं। मेले की मोटी कमाई के बावजूद मेला कमेटी उर्स में आने-जाने वाले जायरीनों को कोई सुख सुविधायें मुहैया नहीं करा पाती है। मेला प्रबंधक अ.हफीज खां ने बताया कि दरगाह की रंगाई पुताई हो गई है। मेला क्षेत्र में जायरीनों को बाधा न हो इसके लिये पूरे इंतिजाम किये जा रहे हैं। उनका कहना है कि उर्स में दूरदराज से नामीगिरामी कव्वालों को बुलाया गया है। उर्स में पुलिस, पीएसी, फायर ब्रिगेड आदि भी भारी संख्या में लगानी पड़ती है।

    इन्सेट-

    जंगली रास्तों पर प्रतिबंध जारी

    माधोटांडा: दो वर्ष पहले वन विभाग के डीएफओ वीके सिंह ने वन्य जीव गणना का हवाला देते हुये जंगली रास्तों पर प्रतिबंध लगा दिया था। दरगाह के आसपास लगने वाले खेल तमाशों पर भी वन विभाग ने प्रतिबंध लगा दिया था। इसके चलते जायरीनों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। पुलिस को धुरिया पलिया होकर वैकल्पिक रास्तों की तलाश करनी पड़ी थी। काफी प्रयास करने पर भी जंगली रास्तों पर लगा प्रतिबंध समाप्त नहीं हो सका अब यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है।

    पानी को तरसते हैं जायरीन

    माधोटांडा: वन महकमा अपनी भूमि दिखाकर पानी के लिये नलों को भी नहीं लगने देता है लाखों जायरीन मेले के दौरान पानी को तरस जाते हैं। दूसरी ओर वन विभाग के कर्मचारी जंगली जलौनी लकड़ी को बेचकर जायरीनों व होटलों से मोटी कमाई करते हैं।

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