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    Year Ender 2025: करोड़ों का बजट और जुर्माना, फिर भी नोएडा की हवा नहीं हो सकी साफ; क्या है प्रदूषण की मुख्य वजह?

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 11:39 AM (IST)

    नोएडा में करोड़ों का बजट और जुर्माना लगने के बाद भी 2025 में हवा साफ नहीं हो पाई। प्रदूषण की मुख्य वजहों की तलाश अभी भी जारी है। शहर में वायु गुणवत्ता ...और पढ़ें

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    21 अक्टूबर को स्मॉग से ढका शहर। जागरण आर्काइव

    चेतना राठौर, नोएडा। वर्ष की शुरुआत प्रदूषण के साथ हुई। अंतिम दिनों में वायु की गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में हैं। यह स्थिति हर वर्ष की है। किराए के संसाधनों और अधूरी कार्ययोजना के साथ प्रदूषण पर नकेल कसना तो दूर काबू पाने में भी असफल साबित हुए र्हैं। सभी प्रयास बेअसर साबित हुए। शहर की हवा बेहद खराब स्थिति में अभी भी है।

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    सड़कों पर धूल, पेड़ों पर जमी परत, आरएमसी प्लांट, यातायात जाम, वाहनों से होता प्रदूषण का मुख्य कारण माना जाता है। हर वर्ष प्रदूषण का बढ़ता स्तर लोगों की सांसों को कम कर रहा है। विभागों की ओर से टीमों का गठन और कागजी खेल हवा को स्वच्छ करने में सक्षम नहीं हुई। वर्ष 2025 भी प्रदूषण में न तो सुधार नजर आया व न ही जिम्मेदारों के कोई अतिरिक्त प्रयास दिखे। प्राधिकरण के पास सीमित संसाधन हैं।

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    प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तो इनका संचालन होता है। उपयोग और हवा में चलाए जा रहे हर तीर खाली होते हैं और रफ्तार से बढ़ता हुआ प्रदूषण सबसे आगे निकल जाता है। जिम्मेदारों के तरकश से अभी तक कोई ऐसा तीर नहीं निकला जिससे प्रदूषण को मात दी जा सके। करोड़ों के जुर्माने में से महज तीन प्रतिशत की ही वसूली कर सके।

    55.70 करोड़ का मिला बजट पर खर्च हुआ 13 प्रतिशत

    नोएडा प्राधिकरण को 55.70 करोड़ का फंड मिला, लेकिन पिछले तीन वर्षों में महज नौ करोड़ बारह लाख खर्च कर सके। आठ ट्रक माउंट स्प्रिकंलर टैंकर, चार मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनें, पांच एंटी स्मॉग, 10 माउंटेड एंटी स्मॉग गन के साथ शहर के प्रदूषण को कम करने के लिए हुए प्रयास सफल नहीं हो सके।
    नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत मिले 55.70 करोड़ रुपये में से संसाधन खरीदने में सिर्फ 13 प्रतिशत बजट ही खर्च हो सका। संसाधन खरीदने के लिए प्राधिकरण की ओर से टेंडर प्रक्रिया भी पूरा नहीं की जा सकी।

    नौ वर्ष में 2161 पर जुर्माना वसूली तीन प्रतिशत

    नौ वर्ष में प्रदूषण नियंत्रण करने के बड़े-बड़े दावे हवा हवाई हो गए हैं। 2161 जगहों पर प्रदूषण फैलाने के लिए 28,00,24,375 करोड़ का लगाए जुर्माना हुआ। जुर्माने के सापेक्ष वसूली एक करोड़ रुपये ही की जा सकी। यह जुर्माने का तीन फीसदी हिस्सा है।

    प्रदूषण के लिए जुर्माने करने के बाद वसूली में नोएडा प्राधिकरण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड काफी पीछे रहा। वर्ष 2017 से 2025 तक 2161 प्रदूषण फैलाने वाली निर्माण साइट्स पर लगाया गया था। वहीं 2025 में जनवरी से नवंबर तक 120 निर्माण साइट्स पर 60,443,500 करोड़ का जुर्माना लगाया गया है। इस साल महज 10 प्रतिशत का भुगतान कर सकें हैं।

    ई-चार्जिंग के दावे खोखले

    ईवी को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2018 में 54 चार्जिंग स्टेशन बनाने की योजना बनाई गई। यह योजना आज भी पूरी तरह से धरातल पर उतर नहीं सकी है। सार्वजनिक जगहों पर ईवी वाहन के लिए कोई चार्जिंग स्टेशन नहीं हैं।

    डीजी सेट में भी नहीं हुआ बदलाव

    डीजल जनरेटर (डीजी) को रेट्रोफिटेड और हाइब्रिड फ्यूल में बदलने के लिए वर्ष 2020 से तैयारी शुरू की गई। इसके बाद शहर में संचालित सभी डीजी सेट को बदलाव के लिए योजना बनाई लेकिन शहर में संचालित सिर्फ 10 फीसदी डीजी सेट में ही अब तक बदलाव हो सका है। गैस कनेक्शन और रेट्रोफिटेड या हाइब्रिड मोड में बदलाव के लिए आवेदन करने के बाद उद्यमियों और लोगों को लंबा वक्त मिल रहा है। ग्रेप की पाबंदियों के बाद भी शहर में डीजी सेट का संचालन हो रहा है।

    डस्ट फ्री जोन में उड़ रही धूल

    2019 में डस्ट फ्री जोन की योजना तैयार की थी। फिर डस्ट फ्री जोन बनाए जाने लगे। प्राधिकरण ने अक्टूबर-2020 में यह सूचना जारी की थी कि शहर के सभी सड़कों के किनारे डस्ट फ्री जोन के रूप में संवारे जा रहे हैं। 206 किमी का डस्ट फ्री जोन बन चुका है। 40 किलोमीटर का डस्ट फ्री जोन बनाने के लिए काम चल रहा है।

    मौजूदा स्थिति यह है कि सेवन एक्स सेक्टरों समेत अन्य जगहों पर बने यह डस्ट फ्री जोन उजड़ चुके हैं। सड़क किनारे पानी, बिजली, इंटरनेट समेत अन्य यूटिलिटी लाइन डालने के लिए खोदाई की गई। कार्य पूरा होने के बाद सड़कों को नहीं संवारा गया। नतीजतन डस्ट फ्री जोन पूरी तरह से उजड़ चुका है।

    नदियों हो रही दूषित नहीं सुधरा जल के स्तर

    एक्शन प्लान तैयार करने के लिए केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कई बिंदुओं पर आदेश दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि हरनंदी के डूब क्षेत्र से अतिक्रमण को खत्म किया जाए। अवैध निर्माण पर अंकुश लगाया जाए।

    संचालित अवैध फैक्ट्री बंद कराई जाएं। केमिकल युक्त पानी नदी में जाने से रोका जाए। इनमें किसी बिंदु पर पूरा कार्य नहीं हो सका। हरनंदी अब भी अतिक्रमण में जकड़ी हुई है। इससे सटे गांवों में संचालित डाइंग इंडस्ट्री से केमिकल युक्त गंदा पानी नदी में छोड़कर प्रदूषण बढ़ाया जा रहा है।

    आवासीय क्षेत्रों में अधिक शोर, साइलेंट जोन में आवाज दे रह सिरदर्द

    आवासीय क्षेत्रों में सेक्टर 19 में नवंबर में दिन के समय 71.6 डेसिबल (डीबी) और रात में 62.7 डीबी और दिसंबर में दिन के समय 76.3 डीबी और रात में 65.2 डीबी।

    वहीं, सेक्टर 75 में नवंबर में दिन के समय 68.9 डीबी और रात में 58.5 डीबी और दिसंबर में दिन के समय 69.8 डीबी और रात में 61.5 डीबी दर्ज किया गया, यह तय मानकों से कई डेसिबल अधिक है। जबकि आवासीय क्षेत्रों में दिन के समय शोर का स्तर 55 डीबी और रात के समय 45 डीबी होना चाहिए। साइलेंट जोन में बढ़ रहा शोर लोगों के सिरदर्द में बन रही है। यह साइलेंट जोन अस्पतालों के पास हैं।

    मानसून जाते ही ग्रीन जोन में हवा मिलना दुर्लभ

    शहर का प्रदूषण पूरी तरह से हवा पानी के भरोसे है। मानसून के दिनों में शहर की हवा ग्रीन जोन में जरूर दर्ज होती है। मानसून बीतने के बाद शहर में साफ हवा मिलना दुर्लभ भरा है। सर्दियों में हवा की गति हम होने के बाद प्रदूषण बुलेट या मेट्रो रेल की रफ्तार से बढ़ता है। बीते कई वर्षों से शहर में यह स्थिति बनी हुई है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए जा रहे इंतजाम इससे राहत दिलाने में कोसों दूर हैं।

    विकास और पर्यावरण के चौराहे पर खड़ा एनसीआर: रामवीर तंवर (पोंडमेन)

    विगत एक वर्ष दिल्ली और एनसीआर, विशेषकर गौतम बुद्ध नगर जिले के लिए, उपलब्धियों और चुनौतियों का एक मिला-जुला अध्याय रहा है। एक विशेषज्ञ के तौर पर जब मैं पिछले 12 महीनों का अवलोकन करता हूं, तो मुझे कंक्रीट का बढ़ता जंगल और सिकुड़ती हुई सांसें, दोनों एक साथ दिखाई देती हैं। अधूरी परियोजनाएं और उनके प्रभाव सबसे बड़ी कसक उन परियोजनाओं की है जो प्रदूषण नियंत्रण और सार्वजनिक परिवहन से जुड़ी थीं।

    यदि दिल्ली और एनसीआर के बीच लास्ट-मॉइल कनेक्टिविटी और मेट्रो विस्तार की लंबित परियोजनाएं समय पर पूरी हो जातीं, तो सड़कों पर निजी वाहनों का दबाव कम होता और वायु गुणवत्ता (एक्यूआइ) में सुधार होता। इसके अलावा, यमुना और हरनंदी की सफाई को लेकर किए गए दावे धरातल पर पूर्णतः नहीं उतर पाए।

    यदि ये नदियां स्वच्छ होतीं, तो न केवल जिले की जैव-विविधता बचती, बल्कि जल संकट से जूझ रहे किसानों और आम लोगों को सिंचाई व निस्तारण के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध होता। कचरा प्रबंधन के प्लांट भी अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य नहीं कर सके, जिससे लैंडफिल साइट्स की समस्या जस की तस बनी हुई है। सकारात्मक बदलाव और आर्थिक सुदृढ़ीकरण दूसरी ओर, ढांचागत विकास के मामले में यह वर्ष मील का पत्थर साबित हुआ है।

    जेवर में नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का काम युद्धस्तर पर बढ़ा है, जिसने जिले की आर्थिकी में जान फूंक दी है। रियल एस्टेट और एमएसएमई (एमएसएमई) सेक्टर में बूम आया है, जिससे स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़े हैं। तालाबों और जल निकायों की स्थिति एक जल संरक्षणवादी के रूप में, मैं जल निकायों की स्थिति को लेकर चिंतित भी हूं और आशान्वित भी।

    पिछले एक वर्ष में ''अमृत सरोवर योजना'' के तहत कई तालाबों का सौंदर्यीकरण तो हुआ, लेकिन कई जगह यह केवल कास्मेटिक (सतही) बदलाव बनकर रह गया। कई ऐतिहासिक जोहड़ और तालाब अभी भी अतिक्रमण और सीवेज डंपिंग का शिकार हैं। हालांकि, जागरूकता बढ़ी है। अब आरडब्ल्यूए और ग्रामीण अंचल के लोग स्वयं तालाबों को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं।

    यदि हम वास्तविक जल सुरक्षा चाहते हैं, तो तालाबों को केवल ''पिकनिक स्पाट'' बनाने के बजाय उनके प्राकृतिक कैचमेंट एरिया को पुनर्जीवित करना होगा, तभी भूजल स्तर में सुधार संभव है। निष्कर्ष आने वाला समय केवल ''स्मार्ट सिटी'' का नहीं, बल्कि ''सस्टेनेबल सिटी'' का होना चाहिए। विकास की रफ़्तार तभी सार्थक होगी जब हम अपनी मिट्टी और पानी को भी साथ लेकर चलेंगे।