बेलगाम धूल के गुबार पर नियंत्रण का एकमात्र विकल्प कृत्रिम वर्षा
बेलगाम धूल के गुबार पर नियंत्रण का एकमात्र विकल्प कृत्रिम वर्षा
बेलगाम धूल के गुबार पर नियंत्रण का एकमात्र विकल्प कृत्रिम वर्षा
लोकेश चौहान, नोएडा :
सुपरटेक के दोनों टावर को ध्वस्त करने की सभी तैयारी पूरी हो चुकी हैं। विस्फोटक लगाने से विस्फोट होने तक की सभी स्थितियां अब तक एजेंसियों के नियंत्रण में हैं, लेकिन कुतुबमीनार से भी ऊंचे इन टावरों के ध्वस्त होने के बाद उठने वाले धूल के गुबार पर किसी का नियंत्रण नहीं होगा। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस पर नियंत्रण के बारे में कोई योजना तक नहीं बनाई गई है। ऐसे में सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि धूल के गुबार को सिर्फ वर्षा ही नियंत्रित कर सकती है। वर्षा स्वयं न हो तो धूल को नियंत्रित करने का एकमात्र विकल्प कृत्रिम वर्षा हो सकती है।
टावर ध्वस्त होने के साथ ही करीब 150 मीटर ऊंचा धूल का गुबार उठेगा, जो करीब 100 मीटर के ही दायरे में फैलेगा। धूल का गुबार कितना ऊंचा और कितनी दूर तक जाएगा, यह हवा की गति और दिशा पर निर्भर करेगा। मौसम विभाग के अनुसार माना जा रहा है कि 28 अगस्त को दोपहर ढाई बजे जिस समय विस्फोट किया जाएगा, उस समय हवा की रफ्तार करीब 15 किलोमीटर प्रतिघंटा पूर्व से पश्चिम की तरफ होगी। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि धूल का गुबार करीब आधा किलोमीटर दूर तक अपना प्रभाव कर सकता है।
नोएडा प्राधिकरण सीईओ रितु माहेश्वरी ने साफ किया है कि धूल का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण करना संभव नहीं है। इसके लिए यूपीपीसीबी और डिमोलिशन एजेंसी कुछ नहीं कर पा रही है। जो भी धूल होगी, वह बहुत जल्द ही बैठ जाएगी। स्माक गन और वाटर टैंकर और मैकेनिकल स्वीपिंग प्राधिकरण से धूल हटाने का कार्य प्राधिकरण द्वारा कराया जाएगा।
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ऐसे होती है कृत्रिम वर्षा
कृत्रिम वर्षा वह प्रक्रिया है, जिसमें बादलों की भौतिक अवस्था में आर्टिफिशियल तरीके से बदलाव लाया जाता है। जो इसे वर्षा के अनुकूल बनाता है। यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है। बादल पानी के बहुत छोटे-छोटे कणों से बने होते हैं। जो कम भार की वजह से खुद ही पानी की शक्ल में जमीन पर बरसने में पूरी तरह सक्षम नही होते हैं। कभी-कभी किसी खास परिस्थितियों में जब ये कण एकत्र हो जाते हैं, तब इनका आकार और भार अच्छा खासा बढ़ जाता है। तब ये ग्रेविटी के कारण धरती पर वर्षा के रूप में गिरने लगते हैं।
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