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    Noida: सिर्फ सौ फीट में उगा सकेंगे केसर, बिना मिट्टी और रसायन के बनेगा कश्मीर वाला वातारवरण; जानिए कैसे

    By Vaibhav TiwariEdited By: Geetarjun
    Updated: Tue, 02 May 2023 07:08 PM (IST)

    सौ स्क्वायर फीट के कमरे में कश्मीर की तरह अनुकूल वातावरण बनाकर केसर उत्पादन करने का नवाचार इंजीनियर रमेश गेरा कर रहे हैं। विशेष ध्यान इस बात का रखा है ...और पढ़ें

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    सिर्फ सौ फीट में उगा सकेंगे केसर, बिना मिट्टी और रसायन के बनेगा कश्मीर वाला वातारवरण; जानिए कैसे

    नोएडा [वैभव तिवारी]। सौ स्क्वायर फीट के कमरे में कश्मीर की तरह अनुकूल वातावरण बनाकर केसर उत्पादन करने का नवाचार इंजीनियर रमेश गेरा कर रहे हैं। विशेष ध्यान इस बात का रखा है कि इस केसर की गुणवत्ता भी कश्मीर के केसर की तरह ही रहे। उनके नवाचार को शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विज्ञानियों का भी सहयोग मिला है।

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    एयरोपोनिक्स तकनीक के प्रयोग से नोएडा में एक कमरे के भीतर केसर की पहली फसल तैयार हो रही है। बिना मिट्टी या रसायन के प्रयोग के हवा की सहायता से अनुकूल वातावरण बनाकर खेती करने की विधि को एयरोपोनिक्स कहा जाता है।

    नोएडा के सेक्टर- 25 स्थित जलवायु विहार में रहने वाले 64 वर्षीय रमेश गेरा वर्ष 1980 में एनआइटी कुरुक्षेत्र से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में छह महीनों के लिए साउथ कोरिया गए तो वहां पर उनका एक सहयोगी हाइड्रोपोनिक फार्मिंग, माइक्रोग्रीन्स, पालीहाउस इंजीनियरिंग और एयरोपानिक्स तकनीकी से केसर की खेती करने पर काम कर रहा था।

    यहां से उन्हें इसके बारे में पता चला। वर्ष 2017 में सेवानिवृत्त होने के बाद एयरोपानिक्स तकनीकी से केसर का उत्पादन करने का प्रयास किया। हालांकि दो बार लगातार सफल नहीं हुए। इसके बाद शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चरल साइंस एंड टेक्नोलाजी के प्रोफेसर की मदद से नोएडा के सेक्टर- 63 में इसकी शुरुआत दोबारा से की, जिसमें सफलता मिली।

    रमेश गेरा बताते हैं कि कश्मीर से मंगाए गए बीज से ही उत्पादन का काम किया जा रहा। इसमें एक कमरे में वर्टिकल तरीके से रैक बनाकर वुडन ट्रे लगाया गया। उनका कहना है कि सौ स्क्वायर फीट के कमरे में छह सौ ग्राम से सात सौ ग्राम तक केसर उत्पादन होता है। इसके साथ ही एक हजार फीट की भूमि पर भी इतना ही उत्पादन होता है।

    साथ ही भूमि में हुई केसर की खेती में बीज को एक इंच की दूरी पर रखा जाता है, जबकि कमरे में की गई केसर में बीज को सटाकर रखा जाता है। अगस्त से नवंबर तक चार माह केसर की फसल के लिए अनुकूल होता है। बाकी आठ महीने बीज को मिट्टी में रखने होता है, जिससे बीज की संख्या बढ़ती है। हालांकि सही बीज मिलने की चुनौती भी बनी रहती है। इसके लिए कश्मीर से बीज मंगाए जा रहे हैं।

    रसायन मुक्त केसर

    कश्मीर के वातावरण को इलेक्ट्रिकली कंट्रोल किया जाता है। इसमें तापमान, हवा, नमी, रोशनी को केसर के पौधों की जरूरत के हिसाब से नियंत्रित किया जाता है। इसमें किसी प्रकार के रसायन व मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता है। कोई प्रदूषण नहीं होने से फसल अच्छी होती है।

    केसर के मामले में एयरोपोनिक्स पर सबसे अधिक उत्पादन का कार्य ईरान में किया जा रहा है। केसर के लिए 100 स्क्वायर फीट के कमरे में चार लाख रुपये का खर्च आता है। इसमें तापमान पांच से दस डिग्री, नमी करीब 85 प्रतिशत, लाइट लो इंटेंसिटी व हवा की स्थिति भी बनाए रखना होता है।

    दूसरों को भी बता रहे तकनीक

    रमेश गेरा केसर उगाने के बाद से लोगों को आनलाइन व आफलाइन प्रशिक्षण देने का काम कर रहे। इसके लिए वह देश के विभिन्न प्रदेश व शहरों के लोगों को प्रशिक्षित कर रहे। साथ ही , दुबई, वियतनाम, सिंगापुर, बंग्लादेश, पाकिस्तान, कनाडा के लोग भी आनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम के जरिए प्रशिक्षित करने का काम कर रहे।

    बाजार में ढाई लाख से पांच लाख रुपये है केसर का दाम

    केसर की मौजूदा समय में बाजार में थोक मूल्य बाजार में ढाई लाख रुपये प्रतिकिलो है। इसमें फुटकर केसर बेचने पर चार से पांच लाख रुपये मिलता है। इसका निर्यात करने पर यह छह लाख रुपये प्रतिकिलो होता है। साथ ही इसको सुखाकर भी शीशे के ग्लास में रखा जा सकता है। देश के केसर की मांग भी अधिक है। केसर इस्तेमाल दवाई, मिठाई, कास्मेटिक इंडस्ट्री सहित पूजा-अर्चना में किया जा रहा।

    शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विज्ञानी डॉ बशीर अहमद अलेई ने बताया कि 10 गुणा 10 वर्ग फीट के कमरे में 300 ट्रे में हम 400 से 500 ग्राम केसर उगा सकते हैं। सामान्य तौर पर आधा एकड़ अथवा चार कनाल जमीन में हम 300-400 ग्राम ही केसर उगा पाते हैं, वह भी मौसम व अन्य परिस्थितियां अनुकूल रहे तब। नियंत्रित वातावरण में आपको पहली ही बार ज्यादा खर्च करना पड़ता है और जब आप दूसरी फसल उगाएंगे तो आपका खर्च पहले के मुकाबले 50 प्रतिशत तक कम होगा। इस केसर की औषधीय गुणवता प्रभावित होने की संभावना नहीं है। इस पर अध्ययन कर रहे हैं।