लॉकडाउन के दौर में कॉमिक्स के ऑनलाइन रूप ने लिया अवतार, पढ़िए एक नजर
कॉमिक्स के ये किरदार इतने दिनों बाद चर्चा के साथ सपनों में भी आए नींद में सही लेकिन चोरी-छिपे पढ़ने पर आनंद के पल दोबारा अहसास कराए।
प्रियम, नोएडा। ब्लैकी भालू और चंचल गिलहरी आज सपने में आए तो साबू के घूंसे ने राका को दिन में तारे दिखाए। उधर, नागराज की नागरस्सी से सीमैन कैद हुआ तो विशालगढ़ की तरफ बढ़ते राजा विक्रम सिंह का बांकेलाल के सपने से फिर बंटाधार हुआ। अब सारे किरदारों ने अगले पड़ाव की ओर कदम बढ़ाया। उधर, अगला सपना पूरा होने के पहले ही चिड़ियों की चहचहाहट ने बांकेलाल के साथ मुझे भी जगाया। कॉमिक्स के ये किरदार इतने दिनों बाद चर्चा के साथ सपनों में भी आए, नींद में सही लेकिन चोरी-छिपे पढ़ने पर आनंद के पल दोबारा अहसास कराए।
अब जब इन दिनों ऑनलाइन कॉमिक्स के जरिये ये किरदार दोबारा जिंदा हो गए हैं, विक्रम बेताल, चंदा मामा दोबारा कहानियों में आ गए हैं, ऐसे में किताबों में छिपाकर कॉमिक्स पढ़ने का वो वक्त अपना हक मांग कर रहा है, तौर तरीकों से पढ़ी जाने वाली कॉमिक्स की आचार संहिता आज के बच्चों को बताने के लिए ललकार रही है। पढ़िए कॉमिक्स के नाम उस जमाने का पैगाम : कॉमिक्स...
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है दृश्य कला रूप। जिसमें चित्रों और शब्दों के मिश्रण से कहानी पढ़वाई जाती है लेकिन असल में दिखाई और सुनाई दोनों जाती है। हंसाने की इस विधा में तमाम किरदारों का चित्रण उनकी विशेषताओं के आधार पर किया जाता है और अगर एक बार पढ़ना शुरू कर दिया तो बीच में छोड़ा नहीं जाता। नियम के अनुसार सबसे पहले मशहूर कॉमिक किरदारों से आपका परिचय कराती हूं। उनकी खासियत से रूबरू कराती हूं। चंपक की दुनिया में जानवर ही जानवर हैं। इसमें रोचक कहानियां तो हैं ही, बिंदु से बिंदु मिलाओ जैसी प्रतियोगिताएं भी हैं। यहां मटकू गिरगिट की अपनी खासियत है तो डोडो गधा तो पूरा का पूरा गधा है।
चीकू खरगोश बच्चों का पसंदीदा रहता तो गागा हाथी से कौन जीता है। नंदन में फैंटम के फौलादी घूंसे से बच्चे अपना हाथ नापते तो मैंड्रक के सममोहिनी जादू पर सबसे ज्यादा भरोसा रहा है। लोटपोट के मोटू पतलू तो आज भी प्रासंगिक हैं तो तमाम षड्यंत्र करके भी बौना वामन और ग्रैंडमास्टर रोबो धु्रव से कहां जीते हैं। इनमें पशु-पक्षियों की कहानियां हैं तो प्रेरक प्रसंग भी, कई प्रतियोगिताएं हैं तो पढ़ने के रोचक नियम भी। जी हां, वो दौर कॉमिक्स पढ़ने के तरीकों का भी गवाह रहा है। इस मामले में हमेशा झगड़ने वाले बच्चों में भी भाईचारा रहा है।
आज मोबाइल में जितनी आसानी से कॉमिक्स पढ़ने की सुविधा मिल जाती है, उस दौर में इसे पढ़ना बहुत कठिन होता था। जिद करने पर भी कॉमिक्स कभी बड़ों के हाथों घर नहीं आती थी और पॉकेटमनी में से चवन्नी बचाकर भी कई बार किराए पर लाई कॉमिक्स का भुगतान दोस्तों से मांगकर चुकाना पड़ता था। अगर घर में इसकी भनक भी लग जाती थी तो दो चांटों के साथ तुरंत बैग में छिपाई कॉमिक्स भी जब्त कर ली जाती थी। फिर उसे देने के बदले बड़े अपने पसंदीदा हर काम करवाते थे, टाइम टेबल बनवाते थे और चैप्टर के चैप्टर रटवाते थे।
बच्चों को बाकायदा शर्तों पर यह उपलब्ध कराई जाती थी। पिछले झगड़े के बदले कई दिनों बाद पड़ोसी के बेटे से माफी मंगवाई जाती थी। पिता को न बताने की शर्त पर मां चक्की पर आटा भी डलवाती थीं तो सब्जी भी कटवाती थीं। बड़े भाई बहनों को अगर इसका पता चल गया फिर उनका होमवर्क भी रातभर जागकर करना पड़ता था, उनके कई तरह के झूठ का सहभागी बनना पड़ता था। फिर अगली बार और सतर्क होकर कॉमिक्स किताबों में छिपकर पढ़ते थे तो रात में छत पर लैंप जलाकर बांकेलाल की कहानियों पर मुंहबंद करके हंसते थे। नागराज का फुस्स और बांकेलाल का बहूहूहू मुंह में ही रह जाता था तो धु्रव का दिमाग और बाहुबल सपने में आता था। यदि आपने कॉमिक्स पढ़ी और ऐसा संघर्ष नहीं किया तो आप इसका पूरा आनंद नहीं ले सके और खुद को सच्चा पाठक नहीं साबित किया।
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