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    Lok Sabha Elections: गैर कांग्रेसी दलों ने भी गौतमबुद्ध नगर सीट पर दिखाई धमक, कई बार हुई कांटे की टक्कर

    गौतमबुद्ध नगर सीट पर लोस चुनाव में कई बार नजदीकी मुकाबला देखने को मिला है। गैर कांग्रेसी दलों के उम्मीदवारों ने कई बार कांग्रेस के प्रत्याशियों को पटकनी दी। पहले तीन चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी कन्हैया लाल आसानी से जीत गए थे। 1980 में भी गैर कांग्रेसी दल के त्रिलोक चंद ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता। उन्होंने कांग्रेस के हरिसिंह को पराजित किया।

    By Dharmendra Kumar Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Thu, 28 Mar 2024 09:36 AM (IST)
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    Lok Sabha Elections: गैर कांग्रेसी दलों ने भी गौतमबुद्ध नगर सीट पर दिखाई धमक

    धर्मेंद्र चंदेल, नोएडा। आजादी के बाद गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट पर (पूर्व में खुर्जा के नाम से) कांग्रेस का अन्य विपक्षी दलों ने एकछत्र राज कभी नहीं होने दिया था। यह खुर्जा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। नए परिसीमन के बाद इसे सामान्य कर दिया गया।

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    भाजपा के उदय से पहले गैर कांग्रेसी दलों के उम्मीदवारों ने कई बार कांग्रेस के प्रत्याशियों को पटकनी दी। कई बार कड़ा मुकाबला भी देखने को मिला। पहले तीन चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी कन्हैया लाल आसानी से जीत गए, लेकिन 1967 के चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट के रामचरण ने कांग्रेस के कन्हैया लाल को कड़े मुकबाले में 1017 वोटों से पराजित कर पहली बार इस सीट से गैर कांग्रेसी सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया।

    हालांकि, 1971 के चुनाव में कांग्रेस के हरिसिंह एक लाख से अधिक वोटों से जीतने में कामयाब रहे, लेकिन इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी विरोधी लहर का लाभ उठाते हुए भारतीय लोकदल के मोहन लाल फिर से इस सीट पर गैर कांग्रेसी सांसद बने।

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    मोहन लाल के नाम बना मत प्रतिशत का रिकॉर्ड

    इस चुनाव में मोहन लाल के नाम मत प्रतिशत का रिकॉर्ड भी बना जो अभी तक कायम है। मोहन लाल को कुल पड़े मतों में 80.53 प्रतिशत मत मिले। खुर्जा और बाद में गौतमबुद्ध नगर के नाम से इस सीट पर अभी तक किसी भी दल के प्रत्याशी की जीत का अंतर इतना बड़ा मत प्रतिशत में नहीं रहा।

    1980 में भी गैर कांग्रेसी दल के त्रिलोक चंद ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता। उन्होंने कांग्रेस के हरिसिंह को पराजित किया। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर में कांग्रेस के वीरसेन भले ही चुनाव जीत गए, लेकिन इसके बाद गैर कांग्रेसी दल के प्रत्याशी ने फिर से यह सीट कांग्रेस से छीन ली।

    कई बार देखने को मिले कड़े मुकाबले

    लोस चुनाव में कई बार नजदीकी मुकाबला देखने को मिला। 1967 में प्रजा सोशलिस्ट के रामचरण ने कांग्रेस के कन्हैया लाल को 1017 वोटों से हराया। 1962 में भी कांग्रेस के कन्हैया लाल और प्रजा सोशलिस्ट के यादराम में कड़ा मुकाबला रहा।

    1980 में जनता पार्टी के त्रिलोक चंद व कांग्रेस के हरिसिंह में दिलचस्प चुनाव हुआ। 1991 में जनता दल के रोशन लाल व कांग्रेस के त्रिलोक चंद में कांटे का मुकाबला दिखा। 2004 में भाजपा के अशोक प्रधान व बसपा के रवि गौतम व 2009 में बसपा के सुरेंद्र नागर व भाजपा के महेश शर्मा के बीच नजदीकी मुकाबला रहा।

    महेंद्र और नरेंद्र की जोड़ी ने जनता दल का बजवाया डंका

    1989 में जब लोस चुनाव हुआ, उस समय जिले की सारी राजनीति दादरी-नोएडा के तत्कालीन विधायक महेंद्र सिंह भाटी व सिकंदराबाद के विधायक नरेंद्र भाटी के इर्द-गिर्द घूमती थी। दोनों की जुगलबंदी से 1989 के चुनाव में जनता दल के भगवान दास राठौर को क्षेत्र में हर जगह वोट मिले।

    उन्होंने कांग्रेस के त्रिलोक चंद को हराया। 1991 के लोस चुनाव में रोशन लाल को फिर इस जोड़ी का फायदा मिला। फिर महेंद्र भाटी व नरेंद्र भाटी की जोड़ी ने रोशन लाल को हर जगह वोट दिलवाकर संसद पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। रोशन लाल ने भाजपा के लक्ष्मीचंद को पराजित किया।