अब नोएडा में ऐसे होगा 1500 मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण, बैठक में तैयार हुआ मास्टर प्लान
नोएडा प्राधिकरण वैज्ञानिक तरीके से कचरा प्रबंधन के लिए 300 टीडीपी क्षमता का प्लांट लगाएगा जिसे भविष्य में 500 टीडीपी तक बढ़ाया जा सकता है। इस प्लांट में कचरे से पानी बिजली और खाद बनाई जाएगी। प्लांट सेक्टर-145 या अस्तौली में लगेगा जिसके लिए प्राधिकरण जमीन खरीदेगा। एनटीपीसी के साथ कचरा निस्तारण का अनुबंध हुआ है और विकेंद्रीकृत प्लांट भी लगेंगे।

जागरण संवाददाता, नोएडा। वैज्ञानिक पद्धति से कचरा निस्तारण के लिए नोएडा प्राधिकरण पहला इंट्रीग्रेटेड सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाएगा। इसकी क्षमता 300 टीडीपी होगी। भविष्य में इसकी क्षमता बढ़ाकर 500 टीडीपी की जाएगी। प्लांट में कचरे से पानी, बिजली और कंपोस्ट बनाया जा सकेगा।
वहीं, शुक्रवार को प्राधिकरण बोर्ड बैठक में चेयरमैन दीपक कुमार ने इसे अनुमोदित कर दिया। प्लांट का संचालन होने पर एक ही स्थान पर गीले और सूखे कूड़े का निस्तारण हो जाएगा। यह सेक्टर-145 में 19.5 एकड़ अथवा ग्रेटर नोएडा के अस्तौली में 16.66 एकड़ पर प्रस्तावित कूड़ा निस्तारण केंद्र पर लगाया जाएगा। 30 एकड़ जमीन को प्राधिकरण ने 64 करोड़ रुपये देकर खरीदेगा।
बता दें कि नोएडा में 1200 मीट्रक टन कचरा निकल रहा है, लेकिन भविष्य में 1500 टीडीपी कचरा निकलेगा। प्राधिकरण ने एनटीपीसी विद्युत व्यापार निगम लिमिटेड कुल 600 टीडीपी के निपटारे का अनुबंध किया है। प्लांट लगाने का 40 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। इसके अलावा डिसेंट्रलाइजड इंटीग्रेटेड म्यूनिसिपल सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट 40 टीडीपी के छह यानी 240 टीडीपी लगाए जाएंगे।
प्राधिकरण सीईओ डा. लोकेश एम ने बताया कि नोएडा में निकलने वाले वेस्ट से एक साथ तीन प्रोडक्ट तैयार होंगे। पहला बायोगैस से बिजली, दूसरा कंपोस्ट और तीसरा पानी। इस पानी का प्रयोग कार वाशिंग, कंस्ट्रक्शन और सिचाई के लिए किया जाएगा।
गोवा में इसी टेक्नोलाजी का प्रयोग किया जा रहा है। प्लांट में कचरे से जैविक पदार्थों को अलग किया जाता है। उन्हें बायोगैस के रूप में परिवर्तित किया जाता है। जो विद्युत ऊर्जा उत्पादन में सहायक होता है। रेस्टोरेंट्स से निकलने वाले गीले कचरे को महत्वपूर्ण बायो-प्रोडक्ट्स मीथेन युक्त जैसे बायो-गैस में बदला जाता है। साथ ही सूखे कचरे से रिसाइकिल करने योग्य सामग्री मिलती है। प्लांट में 300 मीट्रिक टन कचरे का इसी तरह निपटारा किया जाएगा। इससे पानी भी निकलेगा।
इसके अलावा प्लांट प्रतिदिन 7-8 टन खाद भी उत्पन्न होगा। करता है। उन्होंने बताया कि गीले सूखे कचरे को इस टेक्नोलाजी से निपटारा करने से हमें लिचेड (एक प्रकार का गंदा पानी) मिलता है। इस पानी को शोधित कर प्रयोग में लाया जा सकता है। प्राधिकरण इस पानी का प्रयोग करेगा। इसके लिए इंटीग्रेटेड सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट के साथ ही एक एसटीपी भी बनाया जाएगा। यह लिचेड एसटीपी में शोधित होगा।
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एक आकलन के अनुसार, 100 टन कचरे से रोजाना करीब दो टन पानी बनाया जा सकता है। इसका प्रयोग कार वाशिंग, सिचाई और कंस्ट्रक्शन में हो सकता है। अस्तौली या सेक्टर-145 में लगने वाला प्लांट को पीपीपी माडल पर लगाया जाएगा। यानी कंपनी बिजली, कंपोस्ट और पानी को बेचकर प्लांट का खर्चा निकालेगी और संचालन करेगी। साथ ही अनुबंध के तहत प्राधिकरण को हैंडओवर करेगी। इसके लिए जल्द ही आरएफपी जारी की जाएगी।
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