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    नोएडा के चाइल्ड PGI में होगा पेनक्रियाज में पथरी का इलाज, वेस्ट यूपी सहित 5 राज्यों के मरीजों को मिलेगी बड़ी राहत

    By Jagran NewsEdited By: Abhishek Tiwari
    Updated: Tue, 17 Jun 2025 10:50 AM (IST)

    पश्चिमी यूपी के बाल मरीजों को पेनक्रियाज की पथरी के इलाज के लिए अब लखनऊ या दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा। चाइल्ड पीजीआई नोएडा में जल्द ही ईआरसीपी मशीन स्थापित होगी जिसकी लागत लगभग 70-80 लाख रुपये है। इस मशीन से यूपी हरियाणा राजस्थान दिल्ली समेत कई राज्यों के मरीजों को राहत मिलेगी। यह मशीन पित्त और अग्नाशय नली की समस्याओं का पता लगाने में मददगार है।

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    मरीजों को पेनक्रियाज की पथरी के इलाज के लिए लखनऊ या दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा।

    सुमित शिशोदिया, नोएडा। पश्चिमी यूपी के बाल मरीजों को पेनक्रियाज में पथरी के इलाज के लिए लखनऊ या दिल्ली तक दौड़ लगाकर मोटी रकम खर्च नहीं करनी पड़ेगी। सेक्टर-30 के चाइल्ड पीजीआई में अगले तीन-चार माह में एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंजियोपैन्क्रिएटोग्राफी (ईआरसीपी) मशीन आएगी।

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    प्रबंधन ने टेंडर से पहले की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस मशीन की कीमत 70 से 80 लाख रुपये बताई गई है। हालांकि, प्रबंधन ने अभी टेंडर की कीमत तय नहीं की है। विशेष बात है कि मशीन के आने से यूपी, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड और अन्य राज्यों के मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी।

    ईआरसीपी से पित्त और अग्नाशय नली की समस्या का पता कर इलाज में मदद मिलती है। पीडियाट्रिक और गैस्ट्रोएंट्रोलाजी विभाग के डॉ. उमेश शुक्ला ने बताया कि एंडोस्कोपिक में एक पतली टयूब मुंह से अंदर डालते हैं। रेट्रोग्रेड में एंडोस्कोप को विपरीत दिशा में ले जाता है, जिससे पित्त और अग्नाशय नली तक पहुंचा जा सके।

    जानलेवा हो जाती है बीमारी

    वहीं, कोलेंजियोपैन्क्रिएटोग्राफी में एक्स-रे से पित्त और अग्नाशय नलिकाओं की तस्वीर लेकर चिकित्सक उसका आंकलन करते हैं। प्रबंधन ने मशीन के पार्ट्स की मंगाने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है।

    डॉ. सुशील कुमार का कहना है कि पेनक्रियाज पाचन एंजाइम को बनाती है, जो खाने को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करते हैं। साथ ही इंसुलिन और ग्लूकागन जैसे हार्मोन बनाते हैं। बच्चे जब लंबे समय तक बाहर का खाना खाते हैं। तब पेनक्रियाज में पथरी बनने लगती है। समय पर इलाज नहीं कराने से नली बंद होने का खतरा रहता है।

    यह बीमारी जानलेवा भी हो जाती है। फिलहाल तीन-चार महीने में मशीन आते ही बाल मरीजों को बड़ी सुविधा मिलेगी। डॉ. उमेश शुक्ला का कहना है कि ओपीडी में तीन से चार बच्चों में यह दिक्कत देखने को मिलती है। उन्हें लखनऊ या फिर दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल रेफर किया जाता है।

    पीडियाट्रिक एंड गैस्ट्रोएंट्रोलाजी विभाग के लिए ईआरसीपी मशीन लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इससे बाल मरीजों को इलाज में बड़ी राहत मिलेगी। अगले महीने टेंडर प्रक्रिया पूरी कर खरीदारी शुरू कर दी जाएगी। मरीजों को लखनऊ या दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा। - प्रो. डॉ. अरूण कुमार सिंह- निदेशक- चाइल्ड पीजीआई