Nithari Kand: कोर्ट में सीबीआई पेश नहीं कर सकी साक्ष्य, पुलिस से भी हुई बड़ी लापरवाही
निठारी कांड के आरोपियों मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरेंद्र कोली को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत मिली। सीबीआई साक्ष्य जुटाने में नाकाम रही जिसके चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले ही 12 मामलों में बरी कर दिया था। पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सका क्योंकि पुलिस और सीबीआई दोनों ही ठोस सबूत पेश करने में विफल रहीं।

धर्मेंद्र चंदेल, नोएडा। बहुचर्चित निठारी कांड के आरोपितों को सजा दिलाने के लिए देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई एक बार फिर नाकाम साबित हुई। इस प्रकरण में पहले पुलिस और बाद में सीबीआई द्वारा साक्ष्य जुटाने में बरती गई लापरवाही का ही नतीजा है कि निठारी कांड के आरोपित मोनिंदर सिंह पंधेर व उसका घरेलू सहायक सुरेंद्र कोली को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत मिल गई।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी साक्ष्यों के अभाव में 17 अक्टूबर 2023 को 12 मामलों में बरी कर दिया था। मृतक 19 बच्चों के स्वजन को उम्मीद थी कि सीबीआई देश की सर्वोच्च अदालत में साक्ष्य पेश करने में जरूर कामयाब होगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
सुरेंद्र कोली पर अब सिर्फ बचा एक मामला
सुप्रीम कोर्ट में भी अभियोजन पक्ष अपराध साबित करने में नाकाम रहा। नतीजन निठरी कांड से मोनिंदर सिंह पंधेर पूरी तरह से अपराध मुक्त हो गया। सुरेंद्र कोली पर भी अब सिर्फ एक मामला शेष रह गया है। उसमें वह गौतमबुद्ध नगर की जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। अन्य सभी मामलों में वह भी बरी हो चुका है।
क्या है निठारी कांड?
दिसंबर 2006 को नोएडा के निठारी गांव के समीप पंधेर के मकान के पीछे एक नाले में 19 बच्चों के कंकाल मिले थे। पुलिस ने इकबालिया बयान के आधार पर मोनिंदर सिंह पंधेर व सुरेंद्र काेली को आरोपित मानते हुए जेल भेजा।
एक महीने तक दोनों को अभिरक्षा में रखने के बाद भी पुलिस ठोस साक्ष्य नहीं जुटा पाई। पुलिस ने कंकाल बरामदगी में निर्धारित कानूनी प्रक्रिया भी नहीं अपनाई थी। आरोपितों को गिरफ्तार करने के बाद मेडिकल जांच तक नहीं कराई गई।
फोरेंसिक टीम भी साक्ष्य जुटाने में नाकाम रही थी। पंधेर के मकान के अंदर बाथरूम की दीवारों के अलावा किसी भी कपड़े पर खून के धब्बे नहीं मिले। कोई भी ऐसा सबूत पुलिस और फारेंसिक टीम जुटाने में असफल रही थी, जिससे यह साबित हो सकें कि बच्चों की हत्या पंधेर की कोठी के अंदर हुई।
कोठी के अंदर मिली थी हड्डियां
मांस, हड्डियां और इंसानी खाल के कटे,फटे टुकड़े भी कोठी के अंदर से बरामद नहीं हुए। पुलिस ने सिर्फ इकबालिया बयान के आधार पर ही दोनों को आरोपित बनाया। कबूलनामें में बताया गया कि आरोपित कई घटों तक शवों को बाथरूम में रखते थे, लेकिन न तो पुलिस और न ही बाद में सीबीआई इसका साबूत कोर्ट पेश कर पाई। इसका लाभ आरोपितों को कोर्ट में मिला।
लंबी जांच के बाद भी सीबीआई मानव अंगों की तस्करी में दोनों की संलिप्ता भी उजागर नहीं कर सकी। सीबीआई की एक और लापरवाही तब सामने आई कि दोनों आरोपितों के कबूलनामे की ऑडियो-विडियो हाईकोर्ट में पेश की थी, लेकिन वह असली चिप नहीं थी।
कोर्ट ने कहा भी था कि जिस कमरे में रिकॉर्डिंग की गई, उसकी असली चिप कभी सुनवाई के दौरान पेश नहीं की गई। लापरवाही का ही नतीजा रहा कि कबूलनामें के दस्तावेज पर सुरेंद्र कोली के हस्ताक्षर भी नहीं मिले। इससे अदालत में यह साबित नहीं हो पाया कि कबूलनामा सुरेंद्र कोली का ही है अथवा पुलिस ने बनाया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2023 में गाजियाबाद सीबीआई अदालत के फैसले को बदल दिया था। 12 मामलों में दोनों को बरी कर दिया। इसके बाद सीबीआई जांच पर सवाल खड़े हुए। सीबीआई ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती तो दी, लेकिन हाईकोर्ट की तरह यहां भी ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सकी। जिससे दोनों को लाभ मिल गया।
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