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    Noida News: बारिश होने पर राइडर बदल लेते हैं मोटो जीपी बाइक, मोटो2 व 3 में सिर्फ बदलते हैं टायर

    By Arpit TripathiEdited By: Shyamji Tiwari
    Updated: Mon, 18 Sep 2023 10:46 PM (IST)

    इंडियन ग्रां प्री बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट पर 22 से 24 सितंबर तक आयोजित होनी है। 24 सितंबर को फाइनल रेस होगी। इन दिनों बारिश का मौसम चल रहा है। यदि रेस से पहले और बीच में बारिश होने लगती है तो रफ्तार के रोमांच में कोई खलल पड़ सकता है? बारिश के मौसम के ट्रैक को वैट यानी गीला ट्रैक घोषित कर दिया जाता है।

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    बारिश होने पर राइडर बदल लेते हैं मोटो जीपी बाइक

    ग्रेटर नोएडा, जागरण संवाददाता। मोटोजीपी इंडियन ग्रां प्री बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट पर 22 से 24 सितंबर तक आयोजित होनी है। 24 सितंबर को फाइनल रेस होगी। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि इन दिनों बारिश का मौसम चल रहा है। यदि रेस से पहले और बीच में बारिश होने लगती है तो रफ्तार के रोमांच में कोई खलल पड़ सकता है? तो जबाव है, ऐसा नहीं होता है।

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    बारिश होने पर गीला ट्रैक घोषित कर दिया जाता

    बारिश के मौसम के ट्रैक को वैट यानी गीला ट्रैक घोषित कर दिया जाता है और ऐसे में मोटोजीपी रेस के राइडर्स बाइक बदल लेते हैं। वहीं मोटो2 व मोटो3 में सिर्फ टायर ही बदले जाते हैं। मोटोजीपी में बाइक इसलिए बदली जाती है, क्योंकि कई बदलाव बाइक में करने पड़ते हैं जैसे कि ब्रेक, टायर, सस्पेंशन, सॉफ्टवेयर आदि जिसमें काफी समय लग जाता है।

    दरअसल वैट ट्रैक होने पर सब कुछ कई गुना बढ़ जाता है, जोखिम, ध्यान और प्रतिक्रिया का समय। टायर, ब्रेक, शाक अब्जार्वर, स्प्रिंग्स, बेहतर राइड के लिए रीबैलेंसिंग, इलेक्ट्रानिक साफ्टवेयर जैसे इंजन कंट्रोल यूनिट (ईसीयू) इनर्शियल मेजरमेंट यूनिट)। आइएमयू एक छोटा बाक्स होता है जिससे ट्रैक्शन कंट्रोल, व्हीली कंट्रोल और एंटी ब्रेक सिस्टम की निगरानी रखी जाती है।

    ईसीयू सिस्टम ईंधन की जानकारी को प्रोसेस करता है और ईंधन आपूर्ति, वायु प्रबंधन, ईंधन इंजेक्शन, इग्निशन और गैस निकासी जैसे विभिन्न कार्यों का प्रबंधन करता है। कार्बन डिस्क ब्रेक में लगने वाले पैड को बदलना पड़ता है। यदि स्टील डिस्क ब्रेक का इस्तेमाल करते हैं, तो कैलीपर्स और हाइड्रोलिक सिस्टम को खाली करने के साथ ही पूरे सिस्टम को बदलने की जरूरत पड़ती है।

    मोटो 2 व 3 के इसलिए बदले जाते टायर

    मोटो2 व 3 की बाइक में कोई बदलाव करने की जरूरत नहीं पड़ती है। इनके सिर्फ चिकने टायर को बदला जाता है। वर्षा के समय वैट ट्रैक के लिए रबर टायर का इस्तेमाल होता है, जिससे कि टायर का तापमान अधिकतम रहे। ये चिकने टायर की तुलना में नरम होते हैं। टायर में बने खांचे हाइड्रोप्लानिंग (एक खतरनाक ड्राइविंग स्थिति जो तब होती है जब पानी के कारण आपकी टायरों का सड़क की सतह से संपर्क टूट जाता है) से बचने के लिए पानी को विस्थापित करते हैं।

    हेलमेट में लग जाता है डबल वाइजर

    वर्षा होने के दौरान हेल्मेट में भी बदलाव किया जाता है। हेल्मेट में डबल वाइजर (हेल्मेट के आगे की तरफ खुलने वाला हिस्सा) लगा दिया जाता है। इन वाइजर में अतिरिक्त उभरी हुई लकीर होती हैं। वाइजर को एक विशेष उत्पाद से रगड़ा जाता है जिससे पानी की बूंदें सतह पर नहीं रुकती। वहीं अंदर पिनलाक सिस्टम होता है जो वाइजर के साथ एयर चैंबर बनाता है जिससे भाप की परत नहीं बनती।

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    सूट के ऊपर लग जाता वाटरप्रूफ कोट

    वर्षा में राइडर द्वारा पहने जाने वाले सूट को भी बदल दिया जाता है। या तो पूरा सूट वाटरप्रूफ होता है या उस पर प्लास्टिक की कोटिंग कर दी जाती है। दरअसल जिस सामग्री से सूट बनता है उसमें महीन छेद होते हैं जो राइडर्स के शरीर के तापमान को संतुलित रखते हैं। यदि सूट वाटरप्रूफ नहीं होगा तो काफी मात्रा में पानी सोख लेगा जिससे सूट का वजन बढ़ जाएगा, जिसका विपरीत असर बाइक की गति पर पड़ेगा।

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