य़ूपीः नोएडा के नलगढ़ा भूमि घोटाले में मंडलायुक्त ने खंगाले अभिलेख
1952 से अब तक के राजस्व अभिलेख खंगाले गए। जमीन से जुड़े अभिलेखों में कई तरह के आदेश हुए। सबसे पहले देशभक्त आदि के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज किए गए।
नोएडा (जेएनएन)। नोएडा के नलगढ़ा भूमि घोटाले की जांच के लिए सोमवार को मेरठ मंडलायुक्त डॉ. प्रभात कुमार ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ अहम बैठक की। इसमें जिलाधिकारी बीएन सिंह समेत सभी प्रशासनिक और चकबंदी विभाग के अधिकारी मौजूद रहे।
करीब दो घंटे तक जमीन से जुड़े अभिलेखों की जांच पड़ताल की गई। अभिलेखों में कई तरह के आदेश होने की वजह से अधिकारी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके। यह मामला इस समय उप संचालक चकबंदी (डीडीसी) की अदालत में भी विचाराधीन है।
कमिश्नर ने कड़े शब्दों में निर्देश देते हुए कहा कि एसडीएम सदर मौके पर जाकर जमीन का सर्वे करें। यह पता लगाया जाना चाहिए कि कितनी जमीन खाली और कितनी पर कब्जा है। डीडीसी की अदालत में चल रहे मामले को एक माह के अंदर निस्तारित करने के भी निर्देश दिए गए।
जिलाधिकारी को जिम्मेदारी सौंपते हुए निर्देश दिए गए कि वह डीडीसी की अदालत में मजबूती से पैरवी कर सरकार के पक्ष में निर्णय कराएं।
कमिश्नर ने दावा किया कि डीडीसी के स्टे आर्डर के आधार पर इस समय जमीन ग्राम समाज में दर्ज है। जिन लोगों के नाम सीओ चकबंदी के आदेश पर अभिलेखों में दर्ज किए गए थे, उन पर डीडीसी ने रोक लगा दी थी। मामले की अब नए सिरे से तह तक जांच कराई जाएगी।
वहीं सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी नलगढ़ा भूमि घोटाले के खिलाफ विक्रम सिंह द्वारा डाली गई जनहित याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन नंबर पर न आने की वजह से सुनवाई नहीं हो सकी।
कमिश्नर ने हाईकोर्ट के आदेश के तहत भी कार्रवाई करने के निर्देश दिए। कोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के बाद प्रशासन अगला कदम उठाएगा।
उल्लेखनीय है कि एक्सप्रेस-वे से सटे नलगढ़ा गांव में तीन हजार बीघा जमीन ग्राम समाज की थी। सीओ चकबंदी ने कब्जे के आधार पर इसे 64 लोगों के नाम दर्ज कर दिया।
हालांकि, उप संचालक चकबंदी ने इस पर स्टे आर्डर कर दिया था। मेरठ मंडलायुक्त डा. प्रभात कुमार ने इसकी जांच के आदेश दिए थे। सोमवार को उन्होंने प्रशासनिक और चकबंदी विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर मामले की जानकारी ली।
उन्होंने 1952 से अब तक के राजस्व अभिलेख खंगाले। जमीन से जुड़े अभिलेखों में कई तरह के आदेश हुए। सबसे पहले देशभक्त आदि के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज किए गए। इसके बाद सूरजमल आदि ने कब्जे के आधार पर जमीन को अपने नाम दर्ज करा लिया।
भीम सिंह आदि ने भी पट्टों के आधार पर जमीन पर दावा ठोका। एक व्यक्ति के नाम साढ़े बारह हेक्टेयर से अधिक जमीन होने की वजह से यह मामला सीलिंग में भी गया, लेकिन बाद में इसे सीलिंग से बाहर कर दिया गया।
मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक भी गया। कई तरह के आदेश होने की वजह से सोमवार की बैठक में मंडलायुक्त व अन्य अधिकारी कोई अंतिम फैसला नहीं ले सके। 1986 में चकबंदी विभाग ने जमीन को ग्राम समाज में दर्ज कर दिया।
वर्ष 2000 में हटाया गया था जमीन से कब्जा
चकबंदी विभाग के आदेश पर 1986 में जमीन को ग्राम समाज में दर्ज कर दिया गया था, लेकिन मौके पर कब्जा नहीं हटवाया गया था। वर्ष 2000 में तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक कुमार व तत्कालीन एडीएम वित्त डा. अरुण वीर सिंह के आदेश पर मौके से अवैध कब्जा हटाया गया था।
अरुणवीर सिंह के नेतृत्व में तीन दिन चली कार्रवाई में जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराकर प्रशासन के अधीन कर लिया गया था। 2002 में संबंधित लोगों ने फिर से अवैध कब्जा कर लिया। 2006 में चकबंदी विभाग ने फिर से जमीन को ग्राम समाज में दर्ज कर दिया।
इसके खिलाफ संबंधित व्यक्ति हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने सीओ मोदीनगर को जांच का निर्णय लेने के निर्देश दिए। सीओ चकबंदी ने जमीन के दावेदारों के पक्ष में निर्णय सुनाया।
इस पर तत्काल बंदोबस्त अधिकारी ने रोक लगा दी थी। तभी से मामला चकबंदी विभाग में चल रहा था। कुछ दिन पहले सीओ चकबंदी ने फिर से आदेश सुनाते हुए 64 लोगों के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज कर दिए। सीओ के आदेश को 11 मार्च को डीडीसी ने रोक लगा दी थी।
मंडलायुक्त (मेरठ) डा. प्रभात कुमार का कहना है कि मामले की तह तक जांच कर डीडीसी की अदालत में मजबूती से साक्ष्य पेश कर सरकार के पक्ष में फैसला कराने के निर्देश प्रशासनिक अधिकारियों को दिए गए हैं। मामला काफी पुराना होने की वजह से जांच पूरी करने में थोड़ा समय लग सकता है। हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई पर भी प्रशासन की नजर रहेगी। कोर्ट के आदेश के बाद अगला कदम प्रभावी तरीके से उठाया जाएगा।
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