जब पाकिस्तानियों को धूल चटाकर विजयंत ने फहराया था तिरंगा, पिता ने सुनाई बेटे के अदम्य साहस की कहानी
Kargil Vijay Diwas बलिदानी कैप्टन विजयंत थापर ने जान की परवाह किए बिना दुश्मनों को धूल चटाने में अहम भूमिका निभाई थी। भारत माता की जय के जयकारों के साथ आगे बढ़ रहे जांबाजों में शामिल कैप्टन विजयंत थापर के शरीर में गोली लग गई थी। जिसके बाद वे हमेशा के लिए भारत मां की गोद में सो गए थे। पिता ने जांबाज बेटे के साहस की पूरी कहानी सुनाई।

अजय चौहान, नोएडा। Kargil Vijay Diwas पाकिस्तानियों को पस्त कर भारतीय सेना एक के बाद एक कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहरा रही थी। इसी क्रम में एक टुकड़ी 28 जून की रात उसके नेतृत्व में नाल पहाड़ी से दुश्मनों को धूल चटाते हुए आगे बढ़ रही थी। सामने से दुश्मन की गोलियों की बौछार जारी थी।
वहीं, जांबाज जवान जान की परवाह किए बिना भारत माता की जय के जयकारों के साथ आगे बढ़ रहे थे। तभी एक गोली उसके शरीर में लग गई। वह हवलदार तिलक सिंह की बाजुओं में गिर सदा के लिए मां भारती की गोद में सो गया।
यह कहना है 22 वर्ष की आयु में देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले बलिदानी कैप्टन विजयंत थापर के पिता कर्नल वीएन थापर का। कारगिल विजयी दिवस की रजत जयंती पर प्रस्तुत है अमर बलिदानी विजयंत थापर की शौर्यगाथा। सैन्य साहस और अनुशासन कैप्टन विजयंत को जन्मजात मिला था। उनकी तीन पीढ़ी सेना में रही थी।
बताया गया कि घर के सैन्य परिवेश को इससे समझ सकते हैं कि उनका नाम भी भारतीय सेना के गौरवशाली टैंक विजयंत के नाम पर पड़ा था। उनकी मां तृप्ता थापर बताती है कि उसका लक्ष्य एकदम स्पष्ट था। सेना में जाकर अपने देश की रक्षा करनी है। सेना में जाने को लेकर उसका जो समर्पण था। वह उसके हर कदम पर झलकता था।
बताया कि पहली बार में वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाया था, लेकिन उसके बाद उसने पढ़ाई में इतना फोकस किया कि संयुक्त रक्षा परीक्षा (सीडीएस) उत्तीर्ण किया और इंडियन मिलिट्री अकादमी (आइएमए) पहुंच गया। भारत सरकार ने उनको वीर चक्र से सम्मानित किया है।
साहसी के साथ बेहद संवेदनशील
तृप्ता थापर बताती है कि मेरे बेटे के साहस से तो पूरी दुनिया का परिचित है, लेकिन वह जितना बहादुर था। उतना ही संवेदनशील भी था। जब वह स्कूल में पढ़ता था तो उसके पापा 50 रुपये जेब खर्च देते थे। एक बार कोई जरूरतमंद दिखा तो उसने उनको पूरे पैसे दे दिए। हमारे टोकने पर साफ कहा कि आपने मुझे दिए थे। वह मेरे पैसे थे। आप मुझे अगली बार ही पैसे देना। मैं बीच में पैसे नहीं मागूंगा। इसी तरह घाटी में तैनाती के दौरान एक बच्ची के पिता (आम नागरिक) की आतंकी हमले में मौत हो गई थी। तब रुखसाना नाम की उस बच्ची और स्वजन से हमेशा उसका ध्यान रखने का वादा किया था।
हर कदम पर झलकती थी देशभक्ति
कर्नल वीएन थापर बताते हैं कि वह बहादुर होने के साथ समर्पित देशभक्त भी था और यह चीजें उसके हर कदम पर झलकती थी। वह बताते हैं कि एक बार अमेरिका से उनके परिचित उसके लिए टी-शर्ट लेकर आए थे। टी-शर्ट में अमेरिका का मानचित्र बना देख विजयंत ने पहनने से मना कर दिया था।
तोलोलिंग विजयी में निभाई अहम भूमिका
तोलोलिंग पर कब्जा करने के बाद पाकिस्तानी सेना की तरफ से जमकर बमबारी हो रही थी। भारतीय सेना उनका सामना करते हुए नीचे से ऊपर चढ़ रही थी। आगे की लड़ाई में तोलोलिंग विजय बेहद महत्वपूर्ण थी। इसमें विजयंत थापर और उनकी यूनिट सेकंड राजपूताना राइफल्स की अहम भूमिका रही। उन्होंने पाकिस्तान की पोस्ट को खत्म करते हुए बंकर पर कब्जा जमाया था। इस बंकर से पाकिस्तानी भारतीय सेना को मिल रही खाद्य सामग्री को निशाना बना रहे थे।
छह माह पहले ही मिली थी तैनाती
विजयंत थापर वीरगति प्राप्त होने से मात्र छह माह पहले ही प्रशिक्षण पूरा कर कमीशंड हुए थे। 12 दिसंबर 1998 को कमीशन मिलने के बाद उनको ग्वालियर में सेकंड राजपुताना राइफल्स में शामिल किया गया था। एक माह बटालियन में रहने के बाद उनको आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए कुपवाड़ा में भेज दिया गया।
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