जागरण विशेष : अस्पताल में मौजूद बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण का टूटेगा ‘चक्रव्यूह’, हुई पहचान
1928 में पेनिसिलिन की खोज के बाद से बैक्टीरिया के संक्रमण से निपटने को एंटीबायोटिक्स आज के समय में एक महत्वपूर्ण दवा है। इतने लंबे समय से मानव शरीर एंटीबायोटिक्स का सेवन कर रहे हैं जिस कारण बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित हो गए हैं।

ग्रेटर नोएडा, जागरण संवाददाता। पिछले कुछ वर्षों से विश्वभर के अस्पतालों के सामने एक समस्या विकराल रूप ले रहे ही है। ये समस्या है बैक्टीरिया, जो अस्पतालों में भर्ती उन मरीजों के लिए काफी खतरनाक है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है।
अस्पतालों में मौजूद बैक्टीरिया के समूह को इस्केप (ईएसकेएजीई) कहते हैं, जो एंटरोकोकस फेकियम, स्टैफिलोकोकस आरियस, क्लेबसिएला न्यूमोनिया, एसिनेटोबैक्टर बामनी, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा और एंटरोबैक्टर का शॉर्ट फॉर्म है।
इसमें से एक बैक्टीरिया एसिनेटोबैक्टर बामनी के उस एन्जाइम की पहचान हो गई है, जो इसके पनपने का सबसे बड़ा कारण है। इसकी पहचान की है ग्रेटर नोएडा के प्रोफेसर अमित कुमार सिंह ने। इन एन्जाइम की पहचान होने से बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद मिलेगी और ड्रग बनाई जा सकेगी। इसके लिए इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ने उनके इस शोध के बाद ड्रग तैयार करने के लिए एक करोड़ रुपये के करीब की ग्रांट को मंजूरी दी है।
हर साल 90 हजार लोगों की होती मौत
डॉ. अमित बताते हैं कि 1928 में पेनिसिलिन की खोज के बाद से बैक्टीरिया के संक्रमण से निपटने को एंटीबायोटिक्स आज के समय में एक महत्वपूर्ण दवा है। इतने लंबे समय से मानव शरीर एंटीबायोटिक्स का सेवन कर रहे हैं जिस कारण बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित हो गए हैं। मधुमेह, तनाव, आटोइम्यून और गुर्दे की बीमारी जिन्हें पहले से हैं, ऐसे मरीजों में इम्यिनिटी काफी कमजोर होती है।
अस्पताल में होने वाले संक्रमणों की चपेट में आने का खतरा इन्हें ज्यादा होता है। अस्पताल में होने वाले संक्रमणों में सेंट्रल लाइन से होने वाले रक्त संक्रमण, कैथेटर से होने वाले मूत्र पथ के संक्रमण, सर्जिकल साइट पर होने वाले संक्रमण, वेंटीलेटर से निमोनिया और क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण शामिल हैं। एक शोध के मुताबिक हर वर्ष 20 लाख लोग अस्पताल संक्रमण के शिकार होते हैं। इनमें से 90 हजार लोगों मौत हो जाती है।
एन्जाइम की पहचान से दूर होगी समस्या
डॉ. अमित ने बताया कि बैक्टीरिया खुद को सुरक्षित और मजबूत बनाए रखने के लिए कालोनी (समूह) में रहते हैं। बैक्टीरिया में मौजूद एन्जाइम कालोनी के चारों ओर एक सुरक्षित परत (बायोफिल्म) बना लेते हैं। ए. बामनी बैक्टीरिया के उस एन्जाइम की पहचान कर ली गई है जो कालोनी को सुरक्षित रखते हैं। इसकी पहचान होने से बैक्टीरिया की बायोफिल्म को तोड़कर उसे निष्क्रिय किया जा सकेगा, जिसके लिए ड्रग तैयार की जाएगी। आइसीएमआर ने इस शोध को व्यावहारिक पाया, जिसके बाद ड्रग तैयार करने के लिए ग्रांट दिया है।
अस्पतालों में भर्ती मरीजों के लिए मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट का कारण बन रहे ए. बामनी बैक्टीरिया को लेकर हुए इस शोध से बैक्टीरिया के खिलाफ शक्तिशाली अवरोधक को डिजाइन करने में मदद मिलेगी। इन अवरोधक प्रोटीनों को चिकित्सीय एंटी-बैक्टीरियल एजेंट में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे ए. बामनी से पीड़ित मरीजों का स्वस्थ करने के साथ ही उनकी उनकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकेंगे। इससे कई लोगों की जान बचाई जा सकेगी।- डॉ. भुवनेश कुमार, सेवानिवृत्त निदेशक डीआरडीओ (डीआइपीएएस व डीआइएचएआर)
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