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    देश में शहरों को अब मेट्रो से जोड़ना होगा आसान, इस मशीन से रेल निर्माण में आई क्रांति

    टीबीएम मशीन मेट्रो रेल निर्माण में क्रांति ला रही है। चेन्नई स्थित जर्मन कंपनी हेरेनकनेक्ट ने बौमा कानेक्सपो में उन्नत टीबीएम मॉडल का प्रदर्शन किया। यह मॉडल पूरी तरह इलेक्ट्रिक है और सुरंग निर्माण में लागत कम करता है। टीबीएम मशीन एक घंटे में दो मेगावाट बिजली खपत करती है और सुरंग बनाने के साथ-साथ सीसी का काम भी करती है।

    By gyanendra shukla Edited By: Monu Kumar Jha Updated: Thu, 19 Dec 2024 06:33 PM (IST)
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    एक किलोमीटर मेट्रो रेलवे ट्रैक बिछाने में चार महीने का समय लगाएगी उन्नत टीबीएम। फाइल फोटो

    ज्ञानेंद्र कुमार शुक्ल, ग्रेटर नोएडा। देश में बड़े शहरों जिनकी आबादी 40 लाख से अधिक है वहां पर मेट्रो रेल का संचालन किए जाने के प्रस्तावों पर जहां निर्माण कार्य आगे बढ़ गया है। वहीं कई बड़े शहर जिसमें कानपुर, बरेली, लखनऊ में मेट्रो रेल का काम प्रगति पर है।

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    नई दिल्ली, नोएडा व ग्रेटर नोएडा में काफी हद तक क्षेत्रों को मेट्रो रेल से जोड़ा जा चुका है। ऐसे में इस मेट्रो रेल ट्रैक को एलीवेटेड बनाने में जहां कम परेशानी होती है। वहीं भूमिगत सुरंग बनाने या मेट्रो ट्रैक बिछाना काफी कठिन होता है।

    हर साल 12 से 13 बनाई जा रही टीबीएम मशीन 

    इनका निर्माण आसानी से हो इसके लिए टीबीएम मशीन यानी टनल बोरिंग मशीन का प्रयोग किया जाता है। जो लगातार विकसित रूप में आ रही है। देश में चेन्नई स्थित जर्मन की कंपनी ने एक मात्र प्लांट लगाया है। जिसमें हर वर्ष 12 से 13 टीबीएम मशीन बनाई जा रही हैं।

    बीते सप्ताह ही खत्म हुए बौमा कानेक्सपो में टीबीएम मशीन (tbm machine) के उन्न्त मॉडल का प्रदर्शन किया गया। यह टीबीएम एक किलोमीटर का मेट्रो ट्रैक चार महीने में बनाकर तैयार कर देगी।

    कंपनी के सीईओ मनोज गर्ग। जागरण

    चेन्नई स्थित संयंत्र में टीबीएम मशीन का निर्माण कर रही जर्मन कंपनी हेरेनकनेक्ट ने बौमा कानेक्सपो में जिस उन्नत माडल का प्रयोग प्रदर्शन किया है। वह मेट्रो रेल ट्रैक व हाईड्रो प्रोजेक्ट के लिए है। यह पूरी तरह इलेक्ट्रिक से संचालित है जिसमें किसी तरह के बाहरी ईंधन जैसे डीजल का प्रयोग नहीं हो रहा है।

    इससे न केवल वायु प्रदूषण को कम करने में सहायता मिलेगी वहीं सुरंग या मेट्रो ट्रैक के निर्माण में लागत भी कम आएगी। कंपनी के सीईओ मनोज गर्ग ने बताया कि उनकी कंपनी हर वर्ष 12 से 13 टीबीएम मशीन बना रही है। यह पूरी तरह मांंग के आधार पर है। क्योंकि यह काफी महंगी है और बाजार सीमित है।

    बाजार में कुछ ही कंपनियां मैदान में

     कुछ बड़ी कंपनियां ही देश के अंदर सुरंग निर्माण का काम कर रही हैं। इसके संचालन के लिए तकनीकी स्टाफ भी दक्ष चाहिए। एक घंटे में टीबीएम मशीन दो मेगावाट की बिजली खपत करती है।

    इसको तकनीकी तौर पर आटोमेटिक, सुरक्षा के लिहाज से बेहतर बनाया गया है। प्लांट में 80 करोड़ रुपये से 250 करोड़ रुपये तक की टीबीएम मशीन बनाई जा रही है। इसकी मांग आने वाले दिनों में बढ़ेगी। भविष्य को लेकर हम लगातार मशीन में उन्नत परिवर्तन कर रहे हैं।

    सुरंग की ड्रिलिंग, दीवारों की सीसी फिंशिंग एक साथ करती है मशीन

    टीबीएम मशीन सुरंग बनाने में जहां ड्रिलिंग कर मिट्टी की खुदाई, सुरंग की दीवारों के दोनो तरफ सीसी करने का काम एक साथ करती चलती है। यह पूरी तरह ऑटोमेटिक है जिसको समय के साथ उन्नत किया जाता रहा है।

    ट्रैक बिछाए जाने के साथ ही वायरिंग के लिए यह जगह छोड़कर चलती है और इसमें एक साथ कई तकनीकी टीमें काम करती हैं। सीईओ ने बताया कि निर्माण क्षेत्र में कम समय में गुणवत्ता के साथ पर्वतीय राज्यों में सुरंग बनाने में यह कारगर सिद्ध हो चुकी है।

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