UP का एक ऐसा जिला... जहां ये गलतियां बयां कर रहीं मातृभाषा हिंदी की दुर्दशा, सवालों के घेरे में सरकारी विभाग
गौतमबुद्धनगर जिसे एजुकेशन हब कहा जाता है में हिंदी की दुर्दशा चिंताजनक है। चौराहों और सोसायटियों में लगे बोर्डों पर हिंदी के वाक्यों में गलतियां हैं। हिंदी पखवाड़े में हिंदी को सशक्त बनाने के दावे किए जाते हैं पर प्राधिकरणों द्वारा लगाए गए बोर्डों में भी अशुद्धियां हैं। छात्रों को सही और गलत में फर्क करने में भ्रम हो रहा है।

गजेंद्र पांडेय, ग्रेटर नोएडा। गौतमबुद्धनगर उत्तर प्रदेश का एजुकेशन हब होने का दावा किया जा रहा है। दूसरी तरफ चौक चौराहों, प्रमुख मार्गाें, सेक्टर सोसायटियों में लगे विभिन्न विभागों के बोर्ड और सूचना पट पर अंकित वाक्यों में लगीं बिंदी-पाई की गलतियां मातृभाषा हिंदी की दुर्दशा बयां कर रही हैं।
ऊपर से शैक्षणिक संस्थानों, समेत तमाम स्थानों पर साहित्यकार व शिक्षा विद हिंदी पखवाड़ा पर विचार गोष्ठियों में हिंदी को समृद्ध और सशक्त बनाने के दावे करने में जरा भी नहीं हिचक रहे। यह सभी रोजाना इन्हीं रास्तों से होकर आवाजाही करते हैं, लेकिन हिंदी के लिखे गलत वाक्यों को सही कराने की दिशा में कोई पहल नहीं कर रहे हैं।
जिलेभर में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया गया था। अब 26 सितंबर तक हिंदी पखवाड़ा मनाया जाएगा। हिंदी को सशक्त व समृद्ध करने के लिए कार्यक्रमों में जोर दिया जाएगा, नए-नए विचार भी सुझाए जाएंगे।
फिलहाल सवाल है कि हिंदी की किस तरह दुर्दशा हो रही है और सही गलत की पहचान करने में लोग क्यों भ्रमित हो रहे हैं? बता दें विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा विकास कार्याें के बोर्ड लगवाए गए हैं। किसी में बोर्ड में नौएडा लिखा है।
ठीक इसी तरह कहीं पर नालेज पार्क लिखा है तो किसी बोर्ड में नालिज पार्क लिखा है। किसी बोर्ड में सेक्टर लिखा है तो कहीं पर सैक्टर लिखा दिया गया है। प्रमुख सड़कों के किनारे लगे बोर्ड में किसी में एक्सप्रेस वे लिखा है तो कहीं पर एक्सप्रैस वे लिखा दिया गया है।
वहीं, ठीक इसी तरह गांव में एक बोर्ड पर मकोड़ा और दूसरे पर मकोडा लिखा है। इसी तरह की तस्वीर जिले के कई अन्य गांवों में भी है।
सैकड़ों स्थानों पर हिंदी के वाक्यों में गलतियां
हिंदी के इस तरह से गलत वाक्य कोई दो चार स्थानों पर नहीं लिखे हैं, बल्कि सैकड़ों स्थानों पर लिखे हैं। लेकिन अभी तक कभी इस विषय को किसी भी सरकारी विभाग के अधिकारी या गांव के जागरूक प्रबुद्धजन ने नहीं उठाया है। जबकि हर वर्ष हिंदी दिवस के बाद अगले 12 दिन तक हिंदी पखवाड़ा पर आयोजित कार्यक्रमों में हिंदी के उत्थान को लेकर दावे किए जाते हैं, दावा करने वाले हिंदी को समृद्ध करने के लिए कितने गंभीर हैं, इन गलतियों से समझा जा सकता है।
छात्र-छात्राएं सबसे अधिक भ्रमित हो रहे
वर्तमान में अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। ऐसे में कुछ स्कूल ऐसे भी हैं, जिनमें बच्चों को हिंदी में बात करने तक से परहेज रखने की हिदायत दी जाती है। यह बच्चे आवाजाही करते समय एक ही वाक्य अलग-अलग बिंदी पाई के साथ लिखा देख अधिक भ्रमित होते हैं। ऐसे में वह खुद कैसे तय करेंगे कि नोएडा बोलें या फिर नौएडा।
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