Air Pollution: हवा-हवाई प्रयासों की खुली पोल, ग्रेटर नोएडा विश्व का 18वां और नोएडा बना 22वां प्रदूषित शहर
आइक्यू एअर की रिपोर्ट के अनुसार ग्रेटर नोएडा दुनिया का 18वां और नोएडा 22वां सबसे प्रदूषित शहर रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में ग्रेटर नोएडा सातवां और नोएडा 13वां सबसे प्रदूषित शहर रहा। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में प्रदूषण के मुख्य कारकों को नियंत्रित नहीं किया जा सका। पाबंदियों के बावजूद शहर में प्रदूषण का स्तर कम नहीं हो सका। एक्यूआई बेहद गंभीर श्रेणी में पहुंचा था।

प्रवेंद्र सिंह सिकरवार, नोएडा। स्विस संस्था आइक्यू एयर की रिपेार्ट के मुताबिक ग्रेटर नोएडा वर्ष 2024 में दुनिया का 18 और नोएडा 13 वां प्रदूषित शहर रहा। इसी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ग्रेटर नोएडा बीते वर्ष सातवां और नोएडा 13 वां प्रदूषित शहर रहा।
आइक्यू एयर हर वर्ष प्रदूषित शहरों के आंकडे जारी करती है। बीते वर्ष की तरह इस बार भी नोएडा व ग्रेटर नोएडा की स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आया। दोनों शहरों के प्रदूषण के मुख्य कारकों को नियंत्रित नहीं किया जा सका।
खास नहीं दिखा ग्रेप की पाबंदी का असर
उड़ती धूल, यातायात जाम, निर्माण कार्यों के दौरान नियमों का उल्लंघन यहां जमकर हुआ। करोड़ों रुपये प्राधिकरण की ओर से प्रदूषण नियंत्रण में खर्च तो हुए, लेकिन इसका असर कुछ खास नजर नहीं आया।
मंगलवार को भी नोएडा का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 184 और ग्रेटर नोएडा का 224 अंक दर्ज हुआ। पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के आधार पर आइक्यू एअर यह रिपोर्ट जारी करता है। इसमें हवा में धूल और धुएं के बहुत छोटे कण होते हैं जो सेहत के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक होते हैं।
ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) के तहत लगी पाबंदियों के बाद प्रदूषण की स्थिति में सुधार नजर नहीं आया। नोएडा-ग्रेटर नोएडा में प्रदूषण के मुख्य कारक निर्माण कार्य, भारी यातायात, सड़कों पर उड़ती धूल, बिना नियम के संचालित हो रहीं इकाइयां मानी जातीं हैं।
नही खर्च कर सके बजट, अब बनाएंगे सड़क
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत नोएडा को प्रदूषण की रोकथाम और जरूरी संसाधन खरीदने के लिए 30 करोड़ रुपये से अधिक का बजट मिला था। प्राधिकरण ने इस बजट का पांच करोड रुपये भी खर्च नहीं किया। अब जो फंड बचा है उससे टूटी और नई सड़कें बनाने की तैयारी है।
निर्माणाधीन इमारतें
नोएडा-ग्रेटर नोएडा में दाे हजार से अधिक इमारतों का निर्माण कार्य हो रहा है। नियम का पालन यहां शायद ही देखने को मिले। साइटों परिसर में पानी का छिड़काव शायद ही देखने को मिले।
निर्माण कार्य के दौरान इमारत को हरे कपडे से भी नहीं ढ़का जा रहा है। निरीक्षण में यह देखा भी गया है। पाबंदियां हटने के बाद फिर से निगरानी बंद कर दी जाती है।
कचरे में लगती आग की घटनाए
सेक्टर-32 स्थित डंपिंग ग्राउंड में पांच दिन से सुलग रही आग से तीन से चार किमी के दायरे में धुआं ही धुआं हैं। ऐसे ही कई जगहों पर क्षेत्र में कचरा डंप किया जाता है और उसको आग के हवाले कर दिया जाता है। गांव और सेक्टरों में भी कचरा जलाने की घटनाएं आमतौर पर देखी जाती हैं। इससे हवा प्रदूषित होती है।
उड़ती धूल
शहर में कई डस्ट फ्री जोन हैं लेकिन वह सिर्फ कागजों पर ही हैं। असल में नोएडा की अधिकांश सड़कों पर धूल उड़ती नजर आती है। मैकेनिकल स्वीपिंग करने वाली मशीन सफाई से ज्यादा धूल उड़ाने का काम करती है। शहर के लोग इस अव्यवस्था को पूर्व में कई बार उजागर भी कर चुके हैं।
भारी यातायात जाम में वाहनों का धुआं
नोएडा-ग्रेटर नोएडा में लाखों वाहन एक साथ सड़कों पर होते हैं। ट्रैफिक का दवाब भी बढ़ा है। हर घर में निजी वाहन हैं। जितने घर में वयस्क लोग हैं सभी के अपने अलग-अलग वाहन हैं। सार्वजनिक परिवहन की अधिकांश सेक्टरों और गांवों में सुविधा नहीं हैं। 15 से अधिक जाम के स्पाट हैं जहां वाहनों के धुएं से प्रदूषण बढ़ता है।
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